आधिभौतिक, आध्यात्मिक और आधिदैविक यज्ञ

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हमने देखा कि श्रीमद्भगवद्गीता कैसे एक उपनिषद है। उपनिषद शब्द का अर्थ क्या है, यह भी हमने देखा। उपनिषदों में रहस्य हैं, प्रकृति के, जगत के रहस्य हैं। मौलिक रहस्य हैं। छान्दोग्य उपनिषद कहता है - नाना तु विद्या चाविद्या ....

हमने देखा कि श्रीमद्भगवद्गीता कैसे एक उपनिषद है।
उपनिषद शब्द का अर्थ क्या है, यह भी हमने देखा।
उपनिषदों में रहस्य हैं, प्रकृति के, जगत के रहस्य हैं।
मौलिक रहस्य हैं।
छान्दोग्य उपनिषद कहता है -
नाना तु विद्या चाविद्या च।
स यदेव विद्यया करोति, श्रद्धया, उपनिषदा, तदेव वीर्यवत्तरं भवति।
यहां भी उपनिषद शब्द है।
यहां पर इस शब्द का रहस्य इस अर्थ में प्रयोग किया गया है।
जो भी करो उसके बारे में सही जानकारी प्राप्त करके, जानकारी मतलब विधि, कैसे करना है यह विधि, श्रद्धा के साथ कि मुझे इसका फल जरूर मिलेगा, यह है श्रद्धा, श्रद्धा का एक और अर्थ है - ध्यान देकर करो।
इसके बाद उपनिषद के साथ करो, उसके मौलिक रहस्य को जानकर करो।
विधि का ज्ञान, विधि के पीछे के मौलिक रहस्य का ज्ञान और श्रद्धा - तीनों ही महत्त्वपूर्ण हैं।
तब जाकर कर्म वीर्यवत्तर बनेगा।
बलवान बनेगा।
क्या है विधि का ज्ञान और मौलिक रहस्य का ज्ञान?
यज्ञ की प्रक्रिया को ही लीजिए।
अग्निहोत्र को लीजिए।
यज्ञ की वेदी में तीन कुण्ड होते हैं।
पूर्व में चतुष्कोण आकार में आहवनीय कुण्ड।
पश्चिम में वृत्ताकार गार्हपत्य कुण्ड।
इन दोनों के बीच दक्षिण में एक और अर्धवृत्ताकार कुण्ड, दक्षिणाग्नि।
आहुतियां दी जाती है आहवनीय कुण्ड में।
गार्हपत्य कुण्ड में चौबीसों घंटे अग्नि रहती है।
किस द्रव्य से आहुती देनी है, उसका परिमाण, कब देनी है , किस मंत्र का उच्चार करना है - यह है विधि, यज्ञविद्या।
अब ऐसे ही क्यों?
आहवनीय कुण्ड का आकार चतुष्कोण क्यों है?
गार्हपत्य कुण्ड वृत्ताकार क्यों है?
जो यज्ञ हम करते हैं वह अगर आधिभौतिक यज्ञ है तो इसके पीछे का रहस्य है आध्यात्मिक यज्ञ।
यह इसलिए है - पुरुषो वै यज्ञः।
यज्ञ का स्वरूप पुरुष का स्वरूप है, मनुष्य का स्वरूप है।
हमारे शरीर को देखिए, नाभि के भीतर वस्तिगुहा वृत्ताकार है।
यज्ञ में इसके स्थान में ही गार्हपत्य कुण्ड है।
वस्तिगुहा में अपान वायु की मुख्यता है ।
गार्हपत्याग्नि भी अपान प्रधान है ।
शरीर में जहां सिर है उसके स्थान में यज्ञ वेदी में आहवनीय कुण्ड है।
सिर के चार पटल हैं।
आहवनीय कुण्ड चतुष्कोण है।
इसमें प्राण प्रधान है ।
शरीर के पित्ताशय के स्थान में दक्षिणाग्नि कुण्ड है।
इस प्रकार विधि हर एक भाग के पीछे शरीर से संबन्धित एक रहस्य है।
तो शरीर में जो अध्यात्मिक यज्ञ होता रहता है, वही आधिभौतिक यज्ञ का आधार है, रहस्य है ।
आध्यात्मिक यज्ञ का रहस्य है आधिदैविक यज्ञ।
विश्व का आकार भी मानव के शरीर जैसा है।
गोल नहीं है।
विश्व का ही लघु रूप है मानव का शरीर।
विश्व में भी एक यज्ञ होता ही रहता है जिसे कहते हैं आधिदैविक यज्ञ।
आधिदैविक यज्ञ आध्यात्मिक यज्ञ का उपनिषद है, रहस्य है।
मनुष्य शरीर में क्या होता है, इसे जानना है तो यज्ञ की प्रक्रिया को देखिए।
उल्टा भी - यज्ञ में क्या होता है, इसे जानने उसी मनुष्य शरीर से सम्बन्ध करके देखिए।
विश्व के रहस्य को जानने मनुष्य शरीर को देखिए जो विश्व का ही एक लघु रूप है।
या विश्व के रहस्यों को जानकर मनुष्य के शरीर में क्या क्या होता है उसे देखिए।
आधिभौतिक का आधार है आध्यात्मिक।
आध्यात्मिक का आधार है आधिदैविक।
आध्यात्मिक का यहां अर्थ है, आत्मा से संबन्धित, अपने आप से संबन्धित।

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