इस प्रवचन से जानिए- १. इससे पहले के चतुर्युगों में व्यास कौन कौन थे? २. संतान राहित्य को लेकर व्यास जी कैसे चिन्ता में पड गये

पुराणों की रचना करने के बाद व्यास जी ने उन विषयों को ही महाभारत में विस्तार किया। इसमें एक आश्चर्य वाली बात है। हमें पता है कि युगांत प्रलय में सब कुछ महत तत्व में लीन हो जाता है। उसके बाद सत्य युग और त्रेता युग समाप्त होकर ....

पुराणों की रचना करने के बाद व्यास जी ने उन विषयों को ही महाभारत में विस्तार किया।
इसमें एक आश्चर्य वाली बात है।
हमें पता है कि युगांत प्रलय में सब कुछ महत तत्व में लीन हो जाता है।
उसके बाद सत्य युग और त्रेता युग समाप्त होकर जब द्वापर युग आता है तो व्यास जी पुराणों की रचना करते हैं।
जब जब द्वापर युग आता है तो पुराणों की रचना होती है, बार बार।
एक मन्वन्तर के अन्दर इकहत्तर महायुग होते हैं और एक कल्प में १४ मन्वन्तर,अर्थात एक कल्प में १४X७१=९९४ बार पुराणों की रचना होती है।
व्यास एक व्यक्ति नहीं है, व्यास एक पद है।
हर चतुर्युग में अलग अलग व्यास होते हैं।
हम जो सत्यवती पुत्र व्यास को अभी मान रहे हैं, वे केवल वर्तमान चतुर्युग के व्यास हैं।
इनका निज नाम है कृष्णद्वैपायन।
वर्तमान मन्वन्तर का नाम है वैवस्वत मन्वन्तर।
इसमें २७ महायुग हो चुके हैं।
इस मन्वन्तर के पहले द्वापर में व्यास थे स्वयं ब्रह्मा।
दूसरे में प्रजापति।
तीसरे में शुक्राचार्य।
ऐसे आगे: बृहस्पति, सूर्य, यमराज, इन्द्र, वसिष्ठ, सारस्वत, त्रिधामा, त्रिवृष, भरद्वाज मुनि, अन्तरिक्ष, धर्मराज, त्रय्यारुणि, धनंजय, मेधातिथि, व्रती, अत्रि, गौतम, हर्यात्मा, वाजश्रवा वेन, सोम, तृणबिंदु, भार्गव और शक्ति व्यास बने।
अबसे पहले के द्वापर में सत्ताइसवां द्वापर के व्यास थे जातुकर्ण।
और उनतीसवें द्वापर के व्यास होंगे द्रौणी।
सूत जी के गुरु थे कृष्णद्वैपायन जो वर्तमान व्यास हैं।
सूत जी कहते हैं: व्यास जी के पुत्र थे शुकदेव और उनका जन्म अरणी के गर्भ से हुआ था, उनकी जैविक माता नहीं थी।
बडे विद्वान महात्मा और वैरागी थे शुकदेव।
सूत जी और शुकदेव एक साथ सुने थे श्रीमद देवी भागवत व्यास जी के मुख से।
शुकदेव द्वारा प्रश्न किये जाने पर व्यास जी ने उन्हें श्रीमद् देवी भागवत सुनाया था ।
उस समय सूत जी भी साथ में बैठे थे और उन्होंने पूरी कहानी कंठस्थ कर ली।
श्रीमद् देवी भागवत को भक्ति श्रद्धा पूर्वक सुनने के बाद कलिकाल के संकटों से मुक्त नहीं हुआ हो ऐसा कोई हो सकता है क्या? पूछते हैं सूत जी।
किसी भी बहाने, ट्रेन से जा रहे हो, बगल में बैठा हुआ आदमी अपने मोबाइल से देवी भागवत का प्रवचन सुन रहा है, पाखंडी भी, नास्तिक भी, अधमों में अधम भी, किसी भी बहाने श्रीमद् देवी भागवत सुन लेता है तो उसे समस्त सुख प्राप्त होते हैं और वह परम पद को भी प्राप्त कर लेगा।
तो जो भक्ति श्रद्धा से सुनता है, उसका क्या कहना ?
जो हर दिन दिल से, मन से, प्रेम से सुनेगा उसके हृदय में देवी भगवती निवास करने लगेगी।
सूत जी कहते हैं: संसार सागर को पार करने श्रीमद् देवी भागवत एक नाव की तरह है।
इसे सुनने का मौका मिलने पर भी जो नहीं सुनता उस से बडा मूर्ख कौन हो सकता है ?
ऐसा मनुष्य तो दैविक शक्ति द्वारा वंचित और उपेक्षित ही हो सकता है।
दो दो कान होने पर भी जिसका मन श्रीमद् देवी भागवत सुनने पर नहीं बल्कि दूसरों की बुराई सुनने में है उसे भला कौन बचा सकता है ?
ऋषिगण ने शुकदेव के बारे में और जानने की इच्छा प्रकट की।
एक बार व्यास जी ने अपने आश्रम में चिड़ियों के एक जोड़े को देखा।
उस जोडे का उसी समय एक शिशु भी पैदा हुआ था।
अपने नवजात बच्चे के प्रति उनकी ममता और प्यार देखकर व्यास जी विस्मित हो गये।
दोनों ही दूर दूर जाकर उसके लिए चारा लाते हैं, उसके चोंच में डालते हैं उसके शरीर को अपने शरीर से रगड़ते हैं, और उसके सुंदर लाल मुख को चूमते हैं।
व्यास जी चिन्ता मे पड गये।
क्या यह चिड़िया अपने बच्चे का विवाह देखने वाले हैं?
अपनी बहु का सुन्दर चेहरा देख पाएंगे ये चिडिया?
तब भी उनका प्यार देखो अपने बच्चे के प्रति।
यह बच्चा तो बुढ़ापे में अपने माता-पिता की सेवा भी नही करने वाला है, इन चिडियों की यह भी आशा नहीं है।
तब भी उनका प्यार देखो।
मनुष्य स्वार्थी है, अपना लाभ देखकर ही सब कुछ करता है।
माता-पिता विश्वास रखते हैं कि बेटा बड़ा होकर हमारी सेवा करेगा और उसके द्वारा पुण्य कमाएगा।
मरण के बाद पुत्र हमारा क्रिया कर्म करेगा और उत्तम गति प्राप्त कराएगा।
यदि चिडियों में इतना प्यार है बच्चे के प्रति तो मनुष्य में कितना होना चाहिए?
किसकी इच्छा नहीं है अपने बच्चे का लालन–पालन के लिये?
संसार के सबसे बड़े सुखों में से एक है वह।
परलोक में भी सुख पाने के लिये अपने संतान के अलावा और कोई उपाय नहीं है।
संतानहीन व्यक्ति मृत्यु शय्या में पडा सोचता है, मेरे पास जो कुछ भी है मेरे बाद इन सबका स्वामी कौन बनेगा?
जब मन ऐसे भ्रान्त हो जाएगा तो उसे सद्गति कैसे प्रप्त होगी?
ये सब सोचकर व्यास जी बहुत दुखी हो गये कि उनका संतान नहीं है।
वे मेरुपर्वत की ओर निकल पडे तपश्चर्या के लिये।

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