सत्यनारायण कथा

Satyanarayan

॥ श्रीपरमात्मने नमः ।। 

श्री सत्यनारायण कथा

अथ प्रथमोऽध्यायः 

श्रीसत्यनारायणव्रत की महिमा तथा व्रत की विधि

श्रीव्यास उवाच - एकदा नैमिषारण्ये ऋषयः शौनकादयः। 

पप्रच्छुर्मुनयः सर्वे सूतं पौराणिकं खलु॥१॥ 

श्रीव्यासजी ने कहा-एक समय नैमिषारण्य तीर्थ में शौनक आदि अट्ठासी हजार सभी ऋषियों तथा मुनियों ने पुराण एवं शास्त्र के ज्ञाता श्रीसूतजी महाराज से पूछा॥१॥

ऋषय ऊचुः व्रतेन तपसा किंवा प्राप्यते वाञ्छितं फलम् । 

तत्सर्वं श्रोतुमिच्छामः कथयस्व महामुने॥२॥ 

ऋषियों ने कहा-हे महामुने! आप तो इतिहास एवं पुराणों के ज्ञाता है। अतः आपसे एक निवेदन है, कि इस कलियुग में वेद विद्या से रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार से प्राप्त हो, तथा उनका उद्धार कैसे होगा? इसलिये हे मुनिश्रेष्ठ! कोई ऐसा तप कहें, कोई ऐसा व्रत कहें, कोई ऐसा अनुष्ठान कहें, जिससे थोड़े ही समय में पुण्य मिल सके और मनोवाञ्छित फल की भी प्राप्ति हो सके। हमारी सुनने की प्रबल इच्छा है।।२।।

 

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