भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के बहुत ही महत्वपूर्ण दिव्य स्थान है नन्दगाँव।
यह उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित है।
कंस द्वारा भेजे गए असुरों के उपद्रव से बचने के लिए नन्दबाबा अपने परिवार के साथ यहां आकर बसे थे।
यहां भगवान कृष्ण की बहुत सी लीलास्थलियां हैं।
देवमीढ नाम के एक मुनि थे।
उनकी दो पत्नियाँ थी, एक क्षत्रिय वंश की और एक गोप वंश की।
इनमें से क्षत्रिय पत्नी ने शूरसेन को जन्म दिया।
शूरसेन के पुत्र थे भगवान श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव।
गोप पत्नी ने पर्जन्य गोप को जन्म दिया।
पर्जन्य गोप अपनी पत्नी के साथ नन्दीश्वर पर्वत के पास रहते थे।
उनकी सन्तान नहीं थी।
नारद महर्षि को प्रसन्न करके उन्होंने लक्ष्मीनारायण मंत्र का उपदेश पाया।
उस मंत्र की महिमा से उनके पाँच पुत्र और दो कन्याएँ हुए।
पुत्रों में से बीच वाले थे नन्दबाबा।
पर्जन्य गोप गोपालन और कृषि करते थे।
कुछ समय बाद, वे केशी असुर के उपद्रव के कारण गोकुल महावन में जाकर बसने लगे।
मथुरा में जन्म के बाद वसुदेव ने गोकुल में ही भगवान को नन्दबाबा के घर छोड आये थे।
गोकुल में पूतना, तृणावर्त, शकटासुर इत्यादि असुर उत्पात मचाने लगे।
तब नन्दबाबा अपने परिवार, गोप और गोपियों के साथ नन्दगाँव लौट आये और वहां रहने लगे।
नन्दगाँव नन्दीश्वर पहाडी पर बसा हुआ है।
भोलेनाथ शंकर जी श्रीमन्नारायण के परम भक्त हैं।
शंकर जी एक बार श्रीमन्नारायण से कहा कि मैं आपकी बाल्य लीलाऒ को देखना चाहता हूं।
श्रीमन्नारायण ने कहा कि आप एक पर्वत बन जाइए, मैं उस पर आकर रहकर आपको मेरी लीलाओं का दर्शन कराता हूं।
शंकर जी पर्वत बन गये।
यही हैं नन्दीश्वर।
उस विशाल भवन के अवशिष्ट आज भी देखने के लिए मिलते हैं जहां नन्दबाबा यशोदा, रोहिणी, श्रीकृष्ण और बलदेव के साथ रहते थे।
इस भवन के रसोईघर, शयनघर, भोजनघर इत्यादि आज भी देखने को मिलते हैं।
राधारानी यहां जावट गाँव से चलकर आती थी और भगवान के लिए स्वादिष्ट भोजन पकाती थी।
नन्दगाँव में श्रीकृष्ण लीलाओं से संबन्धित ५६ स्थान मिलते हैं।
राधाबाग
यह राधारानी का विश्रामस्थल और कृष्ण के साथ रहस्य मिलन का स्थान है।
दधिमन्थन स्थान
यहां यशोदा माता प्रतिदिन दधिमन्थन करती थी।
वनगमन स्थान
माता यशोदा यहीं से कृष्ण और बलदेव को गोचारण के लिए जाते समय विदा करती थी।
राधा विदा स्थान
यहां से यशोदा माता रोती हुई राधा रानी को जावट गाँव के लिए विदा करती थी।
गोचारण मार्ग
कृष्ण और बलदेव इसी मार्ग से गौओं के लेकर जाते थे।
नन्दकुण्ड
नन्दबाबा इस कुण्ड में स्नान इत्यादि करते थे।
यशोदा कुण्ड
यह यशोदा माता का स्नान इत्यादि का स्थान था।
हाऊबिलाऊ
खेलते हुए कृष्ण को हाउओं का नाम लेकर डराकर ही कभी कभी भोजन के लिए घर लाना पडता था।
यह उसका स्थान है।
मधुसूदन कुण्ड
यहां कृष्ण भ्रमरों के साथ उनके गुञ्जन का अनुकरण करते थे।
पनघट कुण्ड
यहां गोपियां पानी भरने के बहाने कृष्ण से मिलने आती थी।
नन्दराय मंदिर
यह मंदिर १८वीं शताब्दी का है।
इसे भरतपुर के राजा रूपसिंह ने बनवाया था।
नन्दीश्वर मंदिर
भगवान भोलेनाथ एक बार एक साधु के वेश में आकर कृष्ण का जूठा भोजन मांगकर खाया था।
इसके स्मरण में कृष्ण को चढाये जानेवाला भोग नंदीश्वर मंदिर के शिव लिंग को भी चढाया जाता है।
मोती कुण्ड
वृषभानु ने यहां पर नन्दबाबा को सोना और मोती भेंट किया था।
गुप्त कुण्ड
यहां राधारानी और भगवान कृष्ण के रहस्य मिलन होता था।
चरण पहरी
यहां भगवान कृष्ण के चरण के चिह्न हैं।
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