एकादशी सनातन धर्म में आचरण किये जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण व्रतों में से एक है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि एकादशी व्रत के पीछे क्या है? एकादशी व्रत क्यों किया जाता है?
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मुर नाम का एक दैत्य था। रावण और कंस की तरह वह भी बडा आतंक मचाता था। स्वर्ग में देवों सहित सभी को पीडा देता था।
सब लोग उससे रक्षा मांगकर श्रीमन नारायण के शरण में गये।
भगवान ने कहा- मैं उसे सम्हालता हूं, चिंता मत करो।
भगवान मुर के साथ युद्ध करने लगे। लेकिन अपनी सारी शारीरिक शक्ति लगाकर भी भगवान कुछ नहीं कर सके।
भगवान को युद्ध के मैदान से पलायन करना पड़ा।
वे हिमालय की एक गुफा में छिप गये। मुर भी उनका पीछा करते हुए वहां पहुंच गया।
भगवान ने ध्यान करना शुरू किया और उनके मन से एक शक्ति उत्पन्न की - उनकी मानसिक शक्ति।
इस शक्ति ने बाहर आकर मुर को अपनी तलवार से मार डाला।
हम जानते हैं कि शरीर में दस इंद्रिय हैं- पांच ज्ञानेंद्रिय और पांच कर्मेंद्रिय।
ग्यारहवीं इंद्रिय है मन।
संस्कृत में एकादशी का अर्थ है ग्यारह।
चूंकि यह देवी उनके मन, भगवान की ग्यारहवीं इंद्रिय से निकली थी, इसलिए भगवान ने उन्हें एकादशी के नाम से पुकारा।
एकादशी माता की उत्पत्ति का दिन उनके नाम से ही जाने जाने लगा।
माता एकादशी के अंतिम चरण के दौरान उत्पन्न हुई थी।
इसे जयंती कहते हैं। और उन्होंने द्वादशी के पहले चरण के दौरान दैत्य को मार डाला था।
इसे स्मरंती कहते हैं।
भगवान ने घोषणा की कि एकादशी के दौरान देवी के इस महान कार्य के कारण, पूरे जगत में कोई भी पाप नहीं रहेगा।
लेकिन पाप तो पहले से ही हैं। जब उसने यह सुना, पाप-पुरुष आश्रय की तलाश में इधर-उधर भागने लगा।
एकादशी के दौरान वह कहां रहेगा?
वह जहां भी गया, सभी ने उसे आश्रय देने से इनकार कर दिया।
अंत में अन्न (भोजन) एकादशी के दौरान उसे आश्रय देने के लिए सहमत हुआ।
यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्यादिकानि च।
अन्नमाश्रित्य सर्वाणि तिष्ठन्ति हरिवासरे।
अघं स केवलं भुङ्ते यो भुङ्ते हरिवासरे।
तो एकादशी के दौरान सभी पाप भोजन में आश्रय लेते हैं।
जो कोई एकादशी के दौरान भोजन करता है, ये पाप उस व्यक्ति में प्रवेश करेंगे और रोग, समस्या, हानि, परेशानी इत्यादि बन जाएंगे।
एकादशी देवी को विष्णु-कन्या भी कहा जाता है क्योंकि वह भगवान की मानसपुत्री हैं।
उनकी मूर्ति पुरी जगन्नाथ मंदिर और द्वारका धाम में हैं।
भगवान के धर्म की रक्षा के लिए जितने भी अवतार हैं, वे सभी एकादशी के दिन ही हुए हैं।
इसलिए यह इतना पवित्र दिन है।
गालव मुनि का भद्रशील नाम का एक पुत्र था।
भद्रशील ने छोटी उम्र से ही एकादशी व्रत का पालन करना शुरू कर दिया।
मुनि ने उन्हें ऐसा करने के लिए कभी नहीं कहा था। एक बार मुनि ने भद्रशील से पूछा कि उन्हें इस व्रत को करने किसने कहा है।
भद्रशील ने कहा कि मैं कई जन्मों से एकादशी व्रत करता आ रहा हूं।
आमतौर पर किसी को भी पिछला जन्म याद नहीं रहता।
जब तक आप मां के गर्भ में होंगे तब तक आपको अपने पिछले जन्मों की याद रहेगी।
लेकिन जन्म से ठीक पहले यह स्मृति मिट जाती है।
लेकिन भद्रशील को अपने पिछले जन्म की याद उस समय भी थी।
यह एकादशी व्रत की शक्ति थी जिसका वे पालन करते थे।
वे एक पूर्व जन्म में धर्मकीर्ति नामक राजा थे।
धर्मकीर्ति बहुत क्रूर था।
उसे कोई पसंद नहीं करता था।
ऐसा कोई पाप नहीं था जो उसने नहीं किया हो।
एक बार वह अपने सैनिकों के साथ शिकार पर गया।
उसने एक हिरण को देखा और अपने सैनिकों को उस हिरण को चारों ओर से घेरने के लिए कहा। राजा ने कहा कि जो भी हिरण को भागने देगा, उसका पूरा परिवार मार डाला जाएगा।
हिरण ने यह सुना और सोचा- बेचारे सैनिक, मैं उनमें से किसी को भी कुछ होने नहीं दूंगा।
हिरण राजा के पास से निकल भागा।
राजा ने हिरण का पीछा किया।
सूर्यास्त होते राजा एक घने जंगल के अंदर फस गया ।
हिरण कहीं दिखाई नहीं दे रहा था।
राजा ने एक पेड़ के नीचे रात बिताई।
उसने दिन भर में कुछ भी नहीं खाया था।
उसे चारों ओर से खतरनाक जानवरों के गुर्राने की आवाज सुनाई दे रही थी।
वह सो नहीं सका। राजा ने डर से श्री हरि परमात्मा से प्रार्थना करना शुरू कर दिया।
फिर सुबह होते ही उसकी मृत्यु हो गई।
यमदूत आए और उसे यमराज के पास ले गए।
यमराज ने पूछा: तुम लोग इन्हें यहाँ क्यों लाए हो?
इनका स्थान वैकुंठ में भगवान महाविष्णु के बगल में है।
लेकिन राजन, यह तो महापापी है।
नहीं, वह सब चला गया है। ये अब पवित्र हैं।
जिस दिन उनकी मृत्यु हुई वह एकादशी थी।
उन्होंने दिन भर उपवास किया और रात में जागते हुए श्री हरि का स्मरण किया।
उनके सारे पाप दूर हो गए, वे पवित्र हो गये।
यमराज ने स्वयं एक स्वर्ण रथ बुलवाया और राजा को वैकुंठ भेज दिया।
जब लोगों को इस बारे में पृथ्वी पर पता चला तो वे सभी एकादशी का पालन करने के लिए और अधिक उत्साहित हो गए।
पितरों के लिए कृष्ण पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व है।
श्राद्ध करने यह दिन अच्छा है।
यदि किसी कारणवश आप मृत्यु की तिथि पर श्राद्ध नहीं कर पाते हैं तो अगली कृष्ण पक्ष एकादशी को कर सकते हैं।
पितृलोक में कृष्ण पक्ष दिन का समय होता है।
पितृलोक में एक दिन की अवधि १५ मानव दिन और रात की अवधि भी १५ मानव दिन होती है।
उनके लिए दिन पृथ्वी पर कृष्ण पक्ष के १५ दिनों का है।
जब तक एकादशी होती है, तब तक उनके लिए दिन का २/३ भाग समाप्त हो जाता है।
दोपहर २ बजे के करीब, जो उनके खाने का समय होता है।
पृथ्वी पर कृष्ण पक्ष की एकादशी वह समय है जब पितृलोक में पितरों का भोजन होता है।
उन्हें भोजन और पानी देने का यह उत्तम समय है।
वैष्णवों और दूसरों के लिए एकादशी में एक अंतर है।
वैष्णव सभी एकादशियों का पालन करते हैं।
लेकिन अन्य लोग, अगर वे शादीशुदा हैं और उनके बच्चे हैं, तब उन्हें देवशयनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी के बीच वाली कृष्ण पक्ष एकादशियों का ही पालन करना चाहिए।
विवाहित महिलाओं द्वारा उपवास के पालन का एक और नियम है।
उन्हें पूर्ण उपवास नहीं करना चाहिए।
व्रत के दौरान उन्हें फलाहार अवश्य करना चाहिए।
पुरुष पूर्ण उपवास कर सकते हैं।
लेकिन महिलाओं को फलाहार जरूर करना चाहिए।
महिलाओं को पति की सहमति लेकर ही व्रत करना चाहिए।
अन्यथा, इसका कोई लाभ नहीं होगा।
जिस भी देवता की आप पूजा करते हैं, उनके बारे में जानना जरूरी है।
आपको यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि कोई भी धार्मिक कार्य क्यों किया जाता है।
तभी फायदा होगा।
परिचीय पुरा देवं ततः पूजापरो भवेत्।
देवे परिचयो नास्ति वद पूजा कथं भवेत्।
आदर, प्रेम इत्यादि किसी की महानता को जानने से होता है।
सिर्फ भगवान की ही नहीं।
हम महान नेताओं की पूजा करते हैं।
हम उनकी समाधि पर फूल चढ़ाते हैं।
क्योंकि हम उन महान कामों को जानते हैं जो उन्होंने किया है।
भगवान की महानता को जाने बिना की गयी पूजा केवल एक यांत्रिक क्रिया है, जिसका कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होगा।
इसलिए जिस देवी या देवता की आप पूजा करते हैं, उनके बारे में जानने की कोशिश करें।
तभी लाभ होगा।
उनकी महानता को कैसे जानें?
उन्होंने जो किया है उसके बारे में सुनकर या पढकर।
इसके साथ पूजा करके देखिए, आपको जल्द ही एहसास होगा कि आपकी प्रार्थनाओं का उत्तर जल्दी मिलने लगा है।
आप महसूस करेंगे कि आपकी पूजा कहीं अधिक सुखद और लाभकारी है।
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