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दस महाविद्या Book PDF

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Comments

sevnv
Yes -Juman Das

Nice book -Monu shah

वेदधारा की वजह से मेरे जीवन में भारी परिवर्तन और सकारात्मकता आई है। दिल से धन्यवाद! 🙏🏻 -Tanay Bhattacharya

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पुष्पादि चढ़ानेकी विधि

फूल, फल और पत्ते जैसे उगते हैं, वैसे ही इन्हें चढ़ाना चाहिये'। उत्पन्न होते समय इनका मुख ऊपरकी ओर होता है, अतः चढ़ाते समय इनका मुख ऊपरकी ओर ही रखना चाहिये। इनका मुख नीचेकी ओर न करे । दूर्वा एवं तुलसीदलको अपनी ओर और बिल्वपत्र नीचे मुखकर चढ़ाना चाहिये। इनसे भिन्न पत्तोंको ऊपर मुखकर या नीचे मुखकर दोनों ही प्रकारसे चढ़ाया जा सकता है । दाहिने हाथ करतलको उतान कर मध्यमा, अनामिका और अँगूठेकी सहायतासे फूल चढ़ाना चाहिये।

गोदान संकल्प क्या है?

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीभगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य, अद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीय परार्धे श्वेतवराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमे पादे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे......क्षेत्रे.....मासे....पक्षे......तिथौ.......वासर युक्तायां.......नक्षत्र युक्तायां अस्यां वर्तमानायां.......शुभतिथौ........गोत्रोत्पन्नः......नामाहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त-सत्फलावाप्त्यर्थं समस्तपापक्षयद्वारा सर्वारिष्टशान्त्यर्थं सर्वाभीष्टसंसिद्ध्यर्थं विशिष्य......प्राप्त्यर्थं सवत्सगोदानं करिष्ये।

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गजेन्द्रमोक्ष की कहानी में इन्द्रद्युम्न को हाथी बनने का शाप किसने दिया था ?

दस महाविद्याओं में काली प्रथम हैं।
महाभागवतके अनुसार महाकाली ही मुख्य हैं और उन्हीं के उग्र और सौम्य दो रूपों में अनेक रूप धारण करनेवाली दस महाविद्याएँ हैं।
विद्यापति भगवान् शिव की शक्तियाँ ये महाविद्याएँ अनन्त सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दार्शनिक दृष्टि से भी कालतत्त्व की प्रधानता सर्वोपरि है।
इसलिये महाकाली या काली ही समस्त विद्याओं की आदि हैं अर्थात् उनकी विद्यामय विभूतियाँ ही महाविद्याएँ हैं। ऐसा लगता है कि महाकाल की प्रियतमा काली ही अपने दक्षिण और वाम रूपों में दस महाविद्याओं के नाम से विख्यात हुईं। बृहन्नीलतन्त्र में कहा गया है कि रक्त और कृष्णभेद से काली ही दो रूपों में अधिष्ठित हैं। कृष्णाका नाम दक्षिणा'और रक्तवर्णाका नाम सुन्दरी है।
कालिकापुराण में कथा आती है कि एक बार हिमालय पर अवस्थित मतंग मुनि के आश्रम में जाकर देवताओं ने महामाया की स्तुति की।
स्तुति से प्रसन्न होकर मतंग-वनिता के रूप में भगवती ने देवताओं को दर्शन दिया और पूछा कि तुम लोग किस की स्तुति कर रहे हो। उसी समय देवी के शरीरसे काले पहाड़ के समान वर्णवाली एक और दिव्य नारी का प्राकट्य हुआ।
उस महातेजस्विनी ने स्वयं ही देवताओं की ओर से उत्तर दिया कि ये लोग मेरा ही स्तवन कर रहे हैं। वे काजल के समान कृष्णा थीं, इसीलिये उनका नाम काली पड़ा।
दुर्गासप्तशती के अनुसार एक बार शुम्भ-निशुम्भ के अत्याचार से व्यथित होकर देवताओं ने हिमालय पर जाकर देवीसूक्त से देवी की स्तुति की, तब गौरी की देह से कौशिकी का प्राकट्य हुआ। कौशिकी के अलग होते ही अम्बा पार्वती का स्वरूप कृष्ण हो गया, जो काली नाम से विख्यात हुईं। काली को नीलरूपा होने के कारण तारा भी कहते हैं। नारद-पाञ्चरात्र के अनुसार एक बार काली के मन में आया कि वे पुनः गौरी हो जायें। यह सोचकर वे अन्तर्धान हो गयीं। शिवजी ने नारदजी से उनका पता पूछा। नारदजी ने उनसे सुमेरु के उत्तर में देवी के प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात कही। शिवजी की प्रेरणासे नारदजी वहाँ गये। उन्होंने देवी से शिवजी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो गयीं और उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट हुआ और उससे छायाविग्रह त्रिपुरभैरवी का प्राकट्य हुआ।
काली की उपासना में सम्प्रदायगत भेद है। प्रायः दो रूपोंमें इनकी उपासनाका प्रचलन है। भवबन्धन-मोचन में कालीकी उपासना सर्वोत्कृष्ट कही जाती है। शक्ति-साधना के दो पीठों में काली की उपासना श्याम-पीठपर करनेयोग्य है। भक्तिमार्ग में तो किसी भी रूपमें उन महामाया की उपासना फलप्रदा है, पर सिद्धिके लिये उनकी उपासना वीरभाव से की जाती है। साधना के द्वारा जब अहंता, ममता और भेद-बुद्धिका नाश होकर साधकमें पूर्ण शिशुत्व का उदय हो जाता है, तब काली का श्रीविग्रह साधक के समक्ष प्रकट हो जाता है। उस समय भगवती काली की छबि अवर्णनीय होती है। कज्जल के पहाड़ के समान, दिग्वसना, मुक्तकुन्तला, शवपर आरूढ़, मुण्डमालाधारिणी भगवती काली का प्रत्यक्ष दर्शन साधक को कृतार्थ कर देता है। तान्त्रिक-मार्ग में यद्यपि काली की उपासना दीक्षागम्य है, तथापि अनन्य शरणागति के द्वारा उनकी कृपा किसीको भी प्राप्त हो सकती है। मूर्ति, मन्त्र अथवा गुरुद्वारा उपदिष्ट किसी भी आधारपर भक्तिभाव से, मन्त्र-जप, पूजा, होम और पुरश्चरण करने से भगवती काली प्रसन्न हो जाती हैं। उनकी प्रसन्नतासे साधक को सहज ही सम्पूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति हो जाती है।

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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