दुर्गा सप्तशती - अध्याय ७
ॐ ऋषिरुवाच । आज्ञप्तास्ते ततो दैत्याश्चण्डमुण्डपुरोगम....
Click here to know more..मारवाड़ी भजन
मेरो मन गमहि गम रटै रे। गम नाम जप लीजै प्राणी, कोटिक पाप कट....
Click here to know more..सप्तश्लोकी गीता अर्थ सहित
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्याहरन्मामनुस्मरन्। यः प्रयात....
Click here to know more..दस महाविद्याओं में काली प्रथम हैं।
महाभागवतके अनुसार महाकाली ही मुख्य हैं और उन्हीं के उग्र और सौम्य दो रूपों में अनेक रूप धारण करनेवाली दस महाविद्याएँ हैं।
विद्यापति भगवान् शिव की शक्तियाँ ये महाविद्याएँ अनन्त सिद्धियाँ प्रदान करने में समर्थ हैं। दार्शनिक दृष्टि से भी कालतत्त्व की प्रधानता सर्वोपरि है।
इसलिये महाकाली या काली ही समस्त विद्याओं की आदि हैं अर्थात् उनकी विद्यामय विभूतियाँ ही महाविद्याएँ हैं। ऐसा लगता है कि महाकाल की प्रियतमा काली ही अपने दक्षिण और वाम रूपों में दस महाविद्याओं के नाम से विख्यात हुईं। बृहन्नीलतन्त्र में कहा गया है कि रक्त और कृष्णभेद से काली ही दो रूपों में अधिष्ठित हैं। कृष्णाका नाम दक्षिणा'और रक्तवर्णाका नाम सुन्दरी है।
कालिकापुराण में कथा आती है कि एक बार हिमालय पर अवस्थित मतंग मुनि के आश्रम में जाकर देवताओं ने महामाया की स्तुति की।
स्तुति से प्रसन्न होकर मतंग-वनिता के रूप में भगवती ने देवताओं को दर्शन दिया और पूछा कि तुम लोग किस की स्तुति कर रहे हो। उसी समय देवी के शरीरसे काले पहाड़ के समान वर्णवाली एक और दिव्य नारी का प्राकट्य हुआ।
उस महातेजस्विनी ने स्वयं ही देवताओं की ओर से उत्तर दिया कि ये लोग मेरा ही स्तवन कर रहे हैं। वे काजल के समान कृष्णा थीं, इसीलिये उनका नाम काली पड़ा।
दुर्गासप्तशती के अनुसार एक बार शुम्भ-निशुम्भ के अत्याचार से व्यथित होकर देवताओं ने हिमालय पर जाकर देवीसूक्त से देवी की स्तुति की, तब गौरी की देह से कौशिकी का प्राकट्य हुआ। कौशिकी के अलग होते ही अम्बा पार्वती का स्वरूप कृष्ण हो गया, जो काली नाम से विख्यात हुईं। काली को नीलरूपा होने के कारण तारा भी कहते हैं। नारद-पाञ्चरात्र के अनुसार एक बार काली के मन में आया कि वे पुनः गौरी हो जायें। यह सोचकर वे अन्तर्धान हो गयीं। शिवजी ने नारदजी से उनका पता पूछा। नारदजी ने उनसे सुमेरु के उत्तर में देवी के प्रत्यक्ष उपस्थित होने की बात कही। शिवजी की प्रेरणासे नारदजी वहाँ गये। उन्होंने देवी से शिवजी के साथ विवाह का प्रस्ताव रखा। प्रस्ताव सुनकर देवी क्रुद्ध हो गयीं और उनकी देह से एक अन्य षोडशी विग्रह प्रकट हुआ और उससे छायाविग्रह त्रिपुरभैरवी का प्राकट्य हुआ।
काली की उपासना में सम्प्रदायगत भेद है। प्रायः दो रूपोंमें इनकी उपासनाका प्रचलन है। भवबन्धन-मोचन में कालीकी उपासना सर्वोत्कृष्ट कही जाती है। शक्ति-साधना के दो पीठों में काली की उपासना श्याम-पीठपर करनेयोग्य है। भक्तिमार्ग में तो किसी भी रूपमें उन महामाया की उपासना फलप्रदा है, पर सिद्धिके लिये उनकी उपासना वीरभाव से की जाती है। साधना के द्वारा जब अहंता, ममता और भेद-बुद्धिका नाश होकर साधकमें पूर्ण शिशुत्व का उदय हो जाता है, तब काली का श्रीविग्रह साधक के समक्ष प्रकट हो जाता है। उस समय भगवती काली की छबि अवर्णनीय होती है। कज्जल के पहाड़ के समान, दिग्वसना, मुक्तकुन्तला, शवपर आरूढ़, मुण्डमालाधारिणी भगवती काली का प्रत्यक्ष दर्शन साधक को कृतार्थ कर देता है। तान्त्रिक-मार्ग में यद्यपि काली की उपासना दीक्षागम्य है, तथापि अनन्य शरणागति के द्वारा उनकी कृपा किसीको भी प्राप्त हो सकती है। मूर्ति, मन्त्र अथवा गुरुद्वारा उपदिष्ट किसी भी आधारपर भक्तिभाव से, मन्त्र-जप, पूजा, होम और पुरश्चरण करने से भगवती काली प्रसन्न हो जाती हैं। उनकी प्रसन्नतासे साधक को सहज ही सम्पूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति हो जाती है।
Please wait while the audio list loads..
Ganapathy
Shiva
Hanuman
Devi
Vishnu Sahasranama
Mahabharatam
Practical Wisdom
Yoga Vasishta
Vedas
Rituals
Rare Topics
Devi Mahatmyam
Glory of Venkatesha
Shani Mahatmya
Story of Sri Yantra
Rudram Explained
Atharva Sheersha
Sri Suktam
Kathopanishad
Ramayana
Mystique
Mantra Shastra
Bharat Matha
Bhagavatam
Astrology
Temples
Spiritual books
Purana Stories
Festivals
Sages and Saints