सूरजपुर की दूधवालीयों ने 'ओम' के मंत्र में अपनी श्रद्धा से चमत्कार किया। विश्वास ही असली शक्ति है।
सूरजपुर नाम के रंगीन गांव में पंडित हरिप्रसाद, एक ज्ञानी विद्वान, सभी का सम्मान पाते थे। हर शाम, गांव वाले उनकी बरामदे पर उनके उपदेश सुनने के लिए इकट्ठा होते थे। एक धूप भरी दोपहर को, पंडित हरिप्रसाद ने 'ओम' मंत्र की शक्ति के बारे में बताया।
'अगर आप सच्चे मन से 'ओम' का जाप करें,' उन्होंने कहा, 'तो आप चमत्कार भी कर सकते हैं, जैसे पानी पर चलना।'
श्रोताओं में पास के गांव माधवपुर से लौट रही कुछ दूधवाली भी थीं, जो मक्खन बेचकर आ रही थीं। वे जिज्ञासु तो थीं लेकिन जल्दी में थीं, इसलिए पूरा प्रवचन नहीं सुन सकीं। उन्होंने पानी पर चलने के बारे में सुना और सोचा कि नाव का किराया बचाने के लिए इसे आजमाया जाए।
जब वे नदी के पास पहुंचीं, तो उन्होंने 'ओम... ओम... ओम...' का जाप शुरू कर दिया। वे आसानी से पानी पर चल पड़ीं। अगले दिन भी उन्होंने ऐसा ही किया और उनके मंत्र पर विश्वास और बढ़ गया।
जो पैसे उन्होंने बचाए, उससे खुश होकर दूधवाली पंडित हरिप्रसाद का धन्यवाद करना चाहती थीं। उन्होंने उन्हें अपने गांव आमंत्रित किया और उन्हें साथ चलने का प्रस्ताव दिया। जब वे नदी के पास पहुंचे, तो पंडित हरिप्रसाद ने नाव लेने का सुझाव दिया, लेकिन दूधवालीयों ने 'ओम' का जाप करके पानी पर चलने की जिद की।
पंडित जी हिचकिचाए, लेकिन अपनी कमर के चारों ओर रस्सी बांध ली और गांव वालों से कहा कि अगर जरूरत हो तो खींच लेना। उन्होंने 'ओम' का जाप करते हुए पानी पर कदम रखा, लेकिन उनके संदेह के कारण वे डूबने लगे। गांव वालों ने जल्दी से उन्हें खींच लिया।
कमला, जो मुख्य दूधवाली थी, ने कहा, 'पंडित जी, हमने आपके शब्दों पर विश्वास किया। शायद हमारी श्रद्धा ने यह चमत्कार किया।'
पंडित हरिप्रसाद को एहसास हुआ कि सच्ची श्रद्धा दिल से आती है, केवल शब्दों से नहीं। उन्होंने दूधवालीयों का उनके सबक के लिए धन्यवाद किया, यह समझते हुए कि असली शक्ति ज्ञान में नहीं, बल्कि विश्वास में है।
उस दिन से, दूधवालीयों और विद्वान की कहानी सूरजपुर में एक प्रिय कहानी बन गई, जो सभी को सच्ची श्रद्धा की ताकत की याद दिलाती रही।
यह कहानी हमें दिव्य शक्ति में विश्वास की महत्वपूर्ण सीख देती है। जबकि ज्ञान और समझ महत्वपूर्ण हैं, पर हमारा अटूट विश्वास ही असली चमत्कार ला सकता है। जब आप अपने विश्वास को दिव्य शक्ति में रखते हैं और उसकी बुद्धि और मार्गदर्शन पर भरोसा करते हैं, तो आप असाधारण संभावनाओं के लिए अपने आप को खोल देते हैं। हमेशा याद रखें कि दिव्यता हमारे भीतर और हमारे चारों ओर है, और सच्ची श्रद्धा के साथ, असंभव भी संभव हो सकता है।
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