मोक्ष और स्वर्ग में क्या अंतर है?

शौनक महर्षि सूत जी से कहते हैं: यह हमारा सौभाग्य है कि आप यहाँ हमारे बीच नैमिषारण्य में आये हैं।
यहां पर आपसे बडा पुराणों के जानकार और कोई नहीं है।
इसलिए कि आपको स्वयं पुराणों के रचयिता व्यास जी ने सिखाया है।
और आप पूरे अठारह पुराणों के सारे रहस्य भी जानते हैं।
हम सब आपसे श्रीमद् देवी भागवत पुराण सुनने की इच्छा रखते हैं।
मनुष्य यदि कान होते हुए भी हमेशा अपनी जीभ को ही सुख देने में लिप्त रहता है, उससे ज्यादा दुर्भाग्यवान कौन हो सकता है?
जिस ने पुराण सुना नहीं समझ लेना उसका जीवन व्यर्थ हो गया।
जैसे माधुर्य से, जैसे षड्रस से, जीभ को आनंद मिलता है वैसे ही विद्वान लोगों की बातें सुनकर कानों को भी आनंद मिलता है।
साँप के कान नहीं है।
पर सपेरा जब बीन बजाने लगता है तो वह आकर्षित होकर सुनने लगता है।
यदि मनुष्य जिसके कान हैं, उसने पुराण नहीं सुना तो उसे बहरा नहीं तो क्या कहें?
हम सब यहाँ पर आये है कलि से बचने।
हमें समय बिताना है अगले सत्ययुग तक।
मूर्ख लोग ही व्यसनों में समय बिताते हैं।
विद्वान लोग अपने समय शास्त्र विचार में लगाते हैं।
लेकिन शास्त्र में बहुत तर्क वितर्क होता है।
वेदांत-शास्त्र सात्विक है तो मीमांसा-शास्त्र राजसिक और न्याय-शास्त्र तामसिक।
वाद विवाद करते करते बहुत से विद्वान घमंडी या आशु कोपी बन जाते हैं।
आपने बताया कि श्रीमद् देवी भागवत पाँचवाँ पुराण है, पवित्र है, वेद के समान है और पुराणों के सभी लक्षणों से युक्त है।
पहले भी आपने इस पुराण की प्रशंसा, परम अद्भुत, मुक्तिप्रद इन शब्दों से की थी।
आपने कहा कि श्रीमद् देवी भागवत के श्रवण से सारी कामनाएँ पूरी हो जाती हैं और यह पुराण धर्म में रुचि बढा देता है।
अब हमें उस पुराण को विस्तार से सुनाइए, हम सब उसे शीघ्र ही पूर्ण रूप से सुनने की इच्छा रखते हैं।
आप अब तक हमें बहुत सारी कहानी सुना चुके हैं।
लेकिन जैसे देवता लोग जितना भी अमृत पियो उससे तृप्त नहीं होते वैसे हम भी दिव्य कथाओं से तृप्त नहीं हैं।
हमें वह अमृत नहीं चाहिए जिससे अमरत्व प्राप्त होता है।
हमें चाहिए मोक्ष जो इस कथा श्रवण से ही मिल सकता है।
यज्ञ तो कई कर चुके हैं हम।
यज्ञ से क्या मिलता है?
पुण्य और स्वर्ग।
लेकिन जैसे जैसे स्वर्ग का सुख भोगते जाएँगे उस पुण्य का भी क्षय होता जाएगा।
यह पुण्य और स्वर्गवास समझ लेना एक विदेशी यात्रा के जैसी है, जो मनोरंजन के लिए करते हैं, जैसे स्विट्सर्लंड, सिंगापुर।
तुमने कमाया, पैसे से विदेश जाकर आनन्द लिया, और अवधि या पैसा समाप्त होने पर वापस घर लौटा।
स्वर्ग का आनन्द भी ऐसा ही है।
नियत समय के लिए है, जो कमाया हुआ पुण्य का आनुपातिक है।
शाश्वत नहीं है।
और पुण्य का क्षय होने पर वापस मनुष्य लोक में जन्म लेकर आना पडेगा।
शौनक महर्षि कहते हैं: हमें चाहिए मोक्ष जो केवल ज्ञान के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है।
तो हमें सारे रसों से युक्त पवित्र, मुक्तिप्रद उस श्रीमद् देवी भागवत सुनाइए।
श्रीमद् देवी भागवत में चारों वेदों का तात्पर्य है।
सारे शास्त्रों के और आगमों के रहस्य इसमें है।
नत्वा तत्पदपङ्कजं सुललितं मुक्तिप्रदं योगिनां।
ब्रह्माद्यैरपि सेवितं स्तुतिपरैर्ध्येयं मुनीन्द्रैः सदा।
वक्ष्याम्यद्य सविस्तरं बहुरसं श्रीमत्पुराणोत्तमं।
भक्त्या सर्वरसालयं भगवतीनाम्ना प्रसिद्धं द्विजाः।
देवी के चरण कमल की सेवा ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर करते हैं।
मुनि जन उन पर ही ध्यान करते हैं।
वही चरण कमल योगियों को मुक्ति प्रदान करते हैं।
योगी लोग उन पर ही ध्यान करके मुक्ति पा लेते हैं।
उन चरण कमलों को प्रणाम।

हिन्दी

हिन्दी

देवी भागवत

Click on any topic to open

Copyright © 2025 | Vedadhara | All Rights Reserved. | Designed & Developed by Claps and Whistles
| | | | |
Vedahdara - Personalize
Whatsapp Group Icon
Have questions on Sanatana Dharma? Ask here...