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महामृत्युंजय मंत्र जाप विधि

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Om namo Bhagwate Vasudevay Om -Alka Singh

यह वेबसाइट अद्वितीय और शिक्षण में सहायक है। -रिया मिश्रा

आपकी वेबसाइट से बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है। -दिशा जोशी

वेदधारा की वजह से हमारी संस्कृति फल-फूल रही है 🌸 -हंसिका

सनातन धर्म के भविष्य के प्रति आपकी प्रतिबद्धता अद्भुत है 👍👍 -प्रियांशु

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हनुमान चालीसा का महत्व क्या है?

हनुमान चालीसा गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित एक भक्ति गीत है जो हनुमान स्वामी के गुणों और कार्यों का महिमामंडन करता है। आप सुरक्षा, साहस और आशीर्वाद की आवश्यकता के समय या दैनिक दिनचर्या के हिस्से के रूप में इसका पाठ कर सकते हैं।

मरने के बाद बाल क्यों देते हैं?

मानव के सारे पाप उसके बालों पर स्थित रहते हैं। इसलिए शुद्ध होने और पापों से मुक्त होने के लिए बन्धु बान्धव जन अंत्येष्टि के बाद बाल देते हैं।

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शिव जी को ब्रह्महत्या दोष किस कारण से लगा था?

आगे के पृष्ठों में विभिन्न भाँति की पूजा प्रणाली का
प्रस्तुतीकरण किया गया है जो कि महामृत्युञ्जय मन्त्र से संजीवनी
लाभ प्रदान करने में पूर्णतः सक्षम है। इसी पूजन प्रणाली के
बाद प्रयोग समर्पण से पहले साधकगण स्तोत्र कवचादि का पाठ करके समुचित लाभ उठाते हैं परन्तु कभी-कभी यह उपासना काम्य उपासना के रूप में भी की जाती है ।
काम्य उपासना में महामृत्युञ्जय मन्त्रों का जपादि किया जाता है। इसमें कौन-कौन से मन्त्र जपे जाते हैं यह तथ्य सर्व साधारण के लिए जान लेना अत्यधिक आवश्यक है अतः ध्यान दें कि-
महामृत्युञ्जय एकाक्षरी मन्त्र 'ह्रौं' |
महामृत्युञ्जय का त्र्यक्षरी मन्त्र 'ॐ जूं सः ' ।
महामृत्युञ्जय का चतुरक्षरी मन्त्र 'ॐ वं जूं सः ' । महामृत्युञ्जय का नवाक्षरी मन्त्र ॐ
पालय' ।
जूं सः पालय
महामृत्युञ्जय का दशाक्षरी मन्त्र ॐ जूं सः मां पालय पालय' । इस मन्त्र का स्वयं के लिए जप इसी भाँति होगा । यदि किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह जप किया जा रहा हो तो 'मां' के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लें।
महामृत्युञ्जय का पंच दशाक्षरी मंत्र-ॐ जूं सः मां (या अमुक) पालय पालय सः जूं ॐ ।'
महामृत्युञ्जय का द्वात्रिंशाक्षरी मन्त्र वेदोक्त मन्त्र है जो कि निम्नलिखित है-
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्युत्योर्मुक्षीय माऽमृतात ॥ उपरोक्त द्वात्रिंशाक्षरी मन्त्र का विचार-
इस मन्त्र में आए प्रत्येक शब्द का स्पष्ट करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि शब्द ही मन्त्र है और मन्त्र ही शक्ति है । इस मन्त्र में से सबसे पहले 'त्र' शब्द आता है यह शब्द ध्रुव वसु का बोधक है।
इसके बाद 'यम' शब्द आता है जो कि अध्वर वसु का
बोधक है।
इसी भाँति क्रमशः 'ब' सोम वसु का
'कम' वरुण का ।
'य' वायु का ।
'ज' अग्नि का ।
'म' शक्ति का ।
'हे' प्रभास का ।
'सु' वीरभद्र का ।
'ग' शम्भु का।
'न्धिम' गिरीश का |
'पु' अजैक का । 'ष्टि' अहिर्बुध्न्य का।
' व' पिनाक का ।
'ध' भवानी पति का ।
'नम' कापाली का |
'उ' दिकपति का ।
'र्वा' स्थान का । 'रु' मर्ग का ।
'क' धाता का । 'मि' अर्यमा का।
' व' मित्रऽदित्य का ।
'ब' वरुणऽदित्य का । 'न्ध' अंशु का । 'नात' भगऽदित्य का ।
'मृ' विवस्वान का । 'त्यो' इन्द्रऽदित्य का ।
'मु' पूषऽदिव्य का ।
'क्षी' पर्जन्य दिव्य का ।
'य' त्वष्टा का ।
'मा' विष्णुऽदिव्य का ।
'मृ' प्रजापति का ।
'तात' वषट् का बोधक है ।

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