महाकाली जीवन की सर्वश्रेष्ठ साधना है और दस महाविद्याओं में श्रेष्ठतम महाविद्या है। यह जीवन को समृद्धिमय, ऐश्वर्यमय बनाने वाली शत्रु संहारिणी, बाधा, अभाव, कष्ट, पीड़ा, तनाव, चिन्ता और समस्याओं को दूर करने वाली, जीवन को निरापद और आनन्दयुक्त बनाने वाली एकमात्र ऐसी देवी हैं, जो संन्यासियों के लिए भी सर्वाधिक पूज्य और आराध्य हैं; गृहस्थ व्यक्तियों के लिए भी यह आवश्यक, अनिवार्य और अद्वितीय महाविद्या है, जिसकी साधना, उपासना, सेवा और पूजा करना जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य और ध्येय है।
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महाकाली के बारे में शास्त्रों में स्पष्ट रूप से बताया गया है, कि जीवन को निरापद बनाने के लिए एकमात्र काली ही ऐसी शक्ति हैं, जो अपने आप जीवन को पूर्ण सुरक्षित और उन्नतिशील बनाती हैं। पग-पग पर हमें बाधाओं, कष्टों और पीड़ाओं का सामना करना पड़ता है। आकस्मिक संकट और राज्य भय से हरदम भयभीत रहना पड़ता है। चिंता व तनाव से जीवन घुल जाता है, रोग से जीवन जर्जर हो जाता है, घर में कलह और अशांति की वजह से असमय बुढ़ापा और विविध समस्याएं आकर हमें घेर लेती हैं। ऐसे समय में अन्य किसी देवता की उपासना इतनी फलप्रद सिद्ध नहीं होती, जितनी कि महाकाली की उपासना अपने-आप में फलप्रद और सुखदायक होती है।
कई साधकों को यह भ्रम है, कि महाकाली एक तीक्ष्ण देवी है और इसकी साधना में कोई भी त्रुटि रह जाती है, तो विपरीत परिणाम भोगने को तत्पर रहना चाहिए या विपरीत परिणाम भोगने को मिल जाता है। जबकि ऐसी बात नहीं है, महाकाली अत्यन्त सौम्य और सरल महाविद्या हैं, जिनका रूप भले ही विकराल हो, गले में भले ही नरमुण्ड की मालाएं पहनी हुई हों, लाल-लाल आंखें और बिखरे हुए बाल हों, भगवान शिव की छाती पर पैर रखे हुए खड़ी हों, जिनके हाथों में खड्ग और आयुध हों, मगर इसके बावजूद भी उनके हृदय में करुणा, दया, ममता, स्नेह और अपने साधकों के प्रति अत्यधिक ममत्व है। ऐसी महाविद्या, ऐसी देवी तो अपने आप में सर्व सौभाग्यदायक कही जाती हैं, जिनकी उपासना और साधना ही जीवन की श्रेष्ठतम उपलब्धि है।
यदि किसी कारणवश महाकाली साधना में न्यूनता रह जाय या किसी दिन मंत्र जप नहीं हो सके या अनुष्ठान में किसी प्रकार की बाधा आ जाय, तो उसका कुछ भी विपरीत परिणाम भोगने को नहीं मिलता, अपितु जो कुछ भी आपने किया है, उसका फल तो आपको मिलता ही है; इसलिए महाकाली साधना तो अपने-आप में उतनी ही आनन्दप्रद है, जितनी कि मां की गोद, जितना मां का ममत्व, जितना मां का स्नेह, जितनी मां की सामीप्यता । इसलिए भक्तों ने और साधकों ने महाकाली को मां शब्द से सम्बोधित किया है।
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति
शंकराचार्य की यह उक्ति महाकाली पर पूर्णरूप से लागू होती है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है, कि बेटा कुपुत्र हो सकता है, निर्लज्ज हो सकता है, झूठा हो सकता है, असत्य हो सकता है, छलमय हो सकता है, किन्तु कुमाता न भवति फिर भी मां कुमाता नहीं हो सकती, क्योंकि उसके हृदय में तो पुत्र के प्रति वात्सल्य, प्रेम बना ही रहता है, चाहे पुत्र कितना ही बड़ा क्यों न हो जाय !
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मैंने, सैकड़ों साधकों ने, योगियों ने और यतियों ने यह अनुभव किया है, कि यदि जीवन में महाकाली साधना नहीं होती, तो जीवन अपने आप में रसहीन हो जाता; यदि जीवन में धन, ऐश्वर्य, भोग, विलास, सौभाग्य प्राप्त करना है और शत्रु बाधा, कष्ट, पीड़ा व रोग इन सभी से मुक्ति प्राप्त करनी है, तो उन लोगों के लिए केवल एकमात्र उपाय महाकाली साधना ही है। जो एक बार महाकाली साधना सम्पन्न कर लेता है, उसके लिए अन्य दूसरी साधना करने की आवश्यकता ही नहीं रह पाती, क्योंकि वह अपने आप में पूर्ण साधना है। भोगं च मोक्षं च करस्थ एव भोग और मोक्ष दोनों को प्रदान करने वाली अगर किसी साधना को हम कहें, तो वह महाकाली साधना ही है।
यद्यपि महाकाली साधना पर कई ग्रन्थ लिखे हुए हैं, मंत्र महार्णव है, मंत्र महोदधि है, मंत्र चैतन्य है, मंत्र मंथन है- इन सभी ग्रन्थों में महाकाली के रूपों और साधनाओं का वर्णन है, किन्तु साधना तो वही सही होती है, जिसे हम स्वयं अनुभव करें। पोथियों में लिखी हुई बातों पर यकीन करने से साधनाओं में सफलता नहीं मिल पाती हो सकता है, कि किसी समय इन साधनाओं से किसी को सफलता मिली हो; परन्तु मुझे किस साधना से, किस युक्ति से, किस तरकीब से सफलता मिलेगी, वह मेरे लिए ज्यादा उपयुक्त है। आज पूरे भारतवर्ष में सैकड़ों ऐसे लोग हैं, जो केवल उस लकीर फकीर बने हुए हैं, जो कुछ पोथियों में लिखा है; उन्होंने अपने जीवन में अनुभव नहीं किया।
और जिसने अनुभव किया, वह थोड़ा सा परे हट कर कुछ लिख देता है, तो सभी अपने-आप में विचलित और बेचैन हो जाते हैं, क्योंकि उनके अहम् पर ठोकर जो लग जाती है। मगर मुझे जो कुछ युक्ति, जो कुछ तरकीब, जो कुछ क्षमता, जो कुछ ज्ञान, जो कुछं चैतन्यता गुरुदेव ने दी है, मैंने उसी प्रकार से साधना को सम्पन्न किया और साधना की इस तरीके से सम्पन्न करने पर पहली ही बार में मुझे सफलता मिल गई। मेरे लिये यह आश्चर्य की बात थी, कि अन्य साधनाएं चार-चार बार, छः-छः बार करने पर भी सफलता प्रद नहीं हो रही थीं, वहीं महाकाली साधना पहली ही बार में सफल हो गई।
इसका मूल कारण यह था, कि गुरुदेव ने स्वयं इस महाकाली को उस रूप में सम्पन्न किया, जो कि उन पुस्तकों से कुछ हटकर है। जो उनका अनुभव गम्य है। इस साधना को उन्होंने अपने संन्यासी शिष्यों को सिद्ध करवाया था और वही मंत्र, वही साधना उन्होंने मुझे भी दी । इस पुस्तक में भी उसी मंत्र, उसी साधना का पूर्णता के साथ समावेश है और इसलिए इस पुस्तक की महत्ता अन्य ग्रंथों की अपेक्षा लाख-लाख गुना बढ़ जाती है। यह ग्रंथ एक छोटी सी पुस्तक के कुछ पन्नों का संग्रह मात्र नहीं है, अपितु आपके जीवन की एक अमूल्य धरोहर है । मैं इसके लिए अपने गुरुदेव के प्रति समर्पित हूं, कि उन्होंने इस गुह्य साधना को पूर्णता के साथ मुझे दिया, जिसे सम्पन्न कर मैंने सफलता प्राप्त की ।
इस दृष्टि से कहा जाय, तो यह छोटी सी पुस्तक अपने-आप में दस हजार पत्रों के ग्रंथों से भी ज्यादा मूल्यवान और महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें जो भी साधना अंकित है, वह अपने-आप में पोथिन देखी नहीं अपितु आखिन देखी है, अनुभव गम्य है, जो कुछ अनुभव किया है, उसी को इस पुस्तक में संजोया है ।
मेरा अनुभव तो यह है, कि हम चाहे शैव हों, चाहे वैष्णव हों, चाहे शाक्त हों अथवा किसी भी धर्म को मानने वाले हों, किन्तु यदि हमारे जीवन में महाकाली साधना नहीं है, तो जीवन अपने आप में अपूर्ण और न्यून है। हमारे जीवन में यदि महाकाली का स्वरूप अंकित नहीं है, तो जीवन भयग्रस्त है। यदि हमें महाकाली का मंत्र स्मरण नहीं है, तो हम हर समय भय से आक्रांत रहते हैं। इन सभी दृष्टियों से यह मंत्र, यह साधना, यह विधि, यह पुस्तक अपने-आप में पूर्ण श्रेष्ठ, अद्भुत और तेजस्वी है ।
इस पुस्तक को आपके हाथों में देते हुए मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है। आप में से प्रत्येक इस साधना को सम्पन्न करें, आप खुद देखेंगे कि आपको पहले ही दिन से कितनी अनुकूलता प्राप्त होती है। यह एक ऐसी विशिष्ट क्रिया है, जिसके माध्यम से आदमी एकदम से उस ऊंचाई पर पहुंच जाता है, जहां पहुंचने में कई वर्ष लगते हैं। यह एक ऐसी साधना है, जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है - वह चाहे अमीर हो, चाहे गरीब हो । पूज्यपाद गुरुदेव का जो आशीर्वाद मुझे प्राप्त हुआ है, उसके लिए तो मेरा रोम-रोम उनका ऋणी है; मैं हजार-हजार जन्म लेकर भी उनके ऋण को नहीं उतार सकता, मैं भक्तिभाव से उनको प्रणाम करता हूं। इस पुस्तक के माध्यम से प्रत्येक शिष्य, पाठक, साधक व गुरुभाई को समझाने का मेरा यह प्रयत्न है, कि हमारे जीवन का आधार महाकाली साधना है और इस नवीनतम साधना विधि को अपनाकर आप अपने जीवन को पूर्णता दे सकेंगे।
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