सन्त्यन्येऽपि बृहस्पतिप्रभृतयः

सन्त्यन्येऽपि बृहस्पतिप्रभृतयः सम्भिविताः पञ्चषा-
स्तान् प्रत्येष विशेषविक्रमरुची राहुर्न वैरायते |
द्वावेव ग्रसते दिवाकरनिशाप्राणेश्वरौ भास्वरौ
भ्रातः पर्वणि पश्य दानवपतिः शीर्षावशेषाकृतिः ||

 

आकाश में गुरु, मंगल आदि पांच छह और भी ग्रह हैं | फिर भी राहु उनसे कोई दुश्मनी रखते हुए ग्रहण के समय उनको नहीं ढकता | सिर्फ दो प्रकाशमान ग्रह चंद्र और सूर्य का ही ग्रहण होता है | जो प्रसिद्ध या विक्रमी पुरुष होते हैं उन पर ही दुर्जन आक्रमण करते हैं |

 

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