भगवान रुद्र सबके अन्दर विराजमान होकर उनका नियंत्रण करते हैं।
उनको पहचानना ही जीवन का लक्ष्य है।
वे सौम्य हैं।
वे घोर हैं।
वे घोरों से भी घोरतर हैं।
वे सर्वसंहारी हैं।
उनके सारे स्वरूपों को नमस्कार।
हे महादेव! मुझे अजेय होने का आशीर्वाद दो।
ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय
तीन नेत्रों वाले शंकर जी, जिनकी महिमा का सुगन्ध चारों ओर फैला हुआ है, जो सबके पोषक हैं, उनकी हम पूजा करते हैं। वे हमें परेशानियों और मृत्यु से इस प्रकार सहज रूप से मोचित करें जैसे खरबूजा पक जाने पर बेल से अपने आप टूट जाता है। किंतु वे हमें मोक्ष रूपी सद्गाति से न छुडावें।
क्यों कि शिव जी ही ब्रह्मा के रूप में सृष्टि, विष्णु के रूप में पालन और रुद्र के रूप में संहार करते हैं।
Shloka 13. Chapter 2
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