पुराणों के अनुसार, पृथ्वी ने एक समय पर सभी फसलों को अपने अंदर खींच लिया था, जिससे भोजन की कमी हो गई। राजा पृथु ने पृथ्वी से फसलें लौटाने की विनती की, लेकिन पृथ्वी ने इनकार कर दिया। इससे क्रोधित होकर पृथु ने धनुष उठाया और पृथ्वी का पीछा किया। अंततः पृथ्वी एक गाय के रूप में बदल गई और भागने लगी। पृथु के आग्रह पर, पृथ्वी ने समर्पण कर दिया और उन्हें कहा कि वे उसका दोहन करके सभी फसलों को बाहर निकाल लें। इस कथा में राजा पृथु को एक आदर्श राजा के रूप में दर्शाया गया है, जो अपनी प्रजा की भलाई के लिए संघर्ष करता है। यह कथा राजा के न्याय, दृढ़ता, और जनता की सेवा के महत्व को उजागर करती है। यह कथा मुख्य रूप से विष्णु पुराण, भागवत पुराण, और अन्य पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित है, जहाँ पृथु की दृढ़ता और कर्तव्यपरायणता को दर्शाया गया है।
जिसने इहलोक में जितना अन्नदान किया उसके लिए परलोक में उसका सौ गुणा अन्न प्रतीक्षा करता रहता है। जो दूसरों को न खिलाकर स्वयं ही खाता है वह जानवर के समान होता है।
ॐ ह्रीं ह्सौं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः....
ॐ ह्रीं ह्सौं ह्रीं ॐ सरस्वत्यै नमः
अथर्ववेद का रुद्र सूक्त
भवाशर्वौ मृडतं माभि यातं भूतपती पशुपती नमो वाम् । प्रति....
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ॐ आवोराजा। नमध्व। रस्यरुद्राम्। हो। ता। राम्। स। त्ययजा....
Click here to know more..स्वामिनाथ स्तोत्र
श्रीस्वामिनाथं सुरवृन्दवन्द्यं भूलोकभक्तान् परिपालयन....
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