गणेश अथर्व शीर्ष - त्वं गुणत्रयातीतः

त्वं गुणत्रयातीतः – सत्व रजस्तमो गुण।
सृष्टि से सम्बंधित है रजो गुण,
स्थिति से सम्बंधित है सत्व गुण,
और संहार से सम्बंधित है तमो गुण
इन तीनों गुणों से भी अतीत हैं श्री गणेश।

कुण्डलिनी योग के जानकारों ने गणेशजी की स्थान-कल्पना मूलाधार चक्र पर की है।
स्वाधिष्ठान में रजोगुण, मणिपुर में तमोगुण, और आज्ञा चक्र में सत्व गुण प्रबल है।
और गणेशजी का स्थान है मूलाधार में – इन सब गुणों से भी पहले, अतिरिक्त।

त्वं अवस्था त्रयातीतः – जाग्रत, स्वप्न, और सुषुप्ति अवस्था।
जागा हुआ, सोया हुआ, या सपना देखता हुआ – प्राणी इन तीनों में से किसी एक अवस्था में रहता है।
परंतु गणेशजी की अवस्था इन तीनों से अतीत है।

त्वं देहत्रयातीतः – तीन तरह के शरीर हैं:
ये एक ही शरीर के तीन कोश हैं –

  1. स्थूल शरीर – जो बाहर दिखाई देता है – हाथ, पैर, आँखें, नाक।
  2. सूक्ष्म शरीर – मन, चिंतन, आवेग, भावनाएँ – यह भी एक शरीर है। इसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं। यह दृष्टिगोचर नहीं है, लेकिन जब तक शरीर में प्राण है, सूक्ष्म शरीर भी उसमें रहता है। यह सूक्ष्म शरीर ही देहांत के समय आतिवाहिक शरीर के साथ जुड़कर परलोक जाता है।
  3. कारण शरीर – यह इन दोनों शरीरों का आधार है, जिसका अस्तित्व ज्ञानी लोग समझते हैं।

श्री गणेश इन तीनों शरीरों से भी अतीत हैं।
त्वं देहत्रयातीतः।

त्वं कालत्रयातीतः – भूत, वर्तमान, और भविष्य।
यह तो केवल माया है। माया से अतीत श्री गणेश काल के इस विभाग से भी अतीत हैं।

त्वं मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम्
जैसे पहले बताया गया – तीनों गुणों से अतीत होकर गणेशजी मूलाधार में नित्य निवास करते हैं।

त्वं शक्तित्रयात्मकः
तीन प्रकार की शक्तियाँ – सृष्टि करने की शक्ति, पालन करने की शक्ति, और संहार करने की शक्ति।
इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, और क्रियाशक्ति।

  1. इच्छाशक्ति – यह एक शक्ति है। जहाँ इच्छाशक्ति नहीं है, वहाँ कुछ भी नहीं होता। कुछ महात्मा लोग जो भी इच्छा करते हैं, वह पूर्ण हो जाती है। यह है इच्छाशक्ति।
  2. ज्ञानशक्ति – जो भी इच्छा है, उसे पाने के लिए ज्ञान चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि मानसरोवर जाने की इच्छा है – तो मार्ग, समय, और अन्य जानकारी चाहिए – यह ज्ञानशक्ति है।
  3. क्रियाशक्ति – इसे कार्य रूप देने की शक्ति। उदाहरण के लिए: चाय पीना है – यह इच्छाशक्ति है। दूध, चायपत्ती और चीनी को मिलाकर गर्म करना – यह ज्ञानशक्ति है। चाय बनाना – इसे कार्य रूप देने की शक्ति – यह क्रियाशक्ति है।

ये सारी शक्तियाँ गणेशजी के ही प्रभाव हैं। इन सारी शक्तियों का स्रोत श्री गणेश ही हैं।

त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम्
योगीजन जिस तथ्य का नित्य ध्यान करते हैं – वह तथ्य आप ही हैं।

त्वं ब्रह्मा...
ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, इन्द्र, अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्रमा – ये सब आप ही हैं।

ब्रह्म भूर्भुवस्सुवरोम्’
सच्चिदानन्द परब्रह्म आप ही हैं।
भूः – भूमि,
भुवः – अन्तरिक्ष,
स्वः – स्वर्गलोक।
ये सब आप ही हैं।
और ॐकार भी आप ही हैं।

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