क्या श्रीरामजी का सीताजी को त्याग देना उचित था?

 

श्रीराम जी का सीता माता को त्याग देना और उन्हें जंगल में भेजना - क्या यह उचित था?

मुख्य रूप से पृथ्वी पर श्रीराम जी की क्या भूमिका थी?

एक राजा, एक शासक।

क्या लोकतंत्र बहुमत की इच्छा का शासन है?

नहीं।

यदि ऐसा था, तो अयोध्या के विशाल बहुमत ने सीता देवी की शुद्धता पर भरोसा किया था।

केवल कुछ ही लोगों ने सवाल उठाया।

देवी ने रावण के पास महीनों बिताए हैं।

आप निश्चिंत उनकी पवित्रता को कैसे मान सकते हैं?

आज के लोकतंत्र में इसे केवल नज़र अंदाज़ कर दिया गया होता।

या ऐसे कहनेवाले मानहानि या देशद्रोह के मामलों में फस जाते।

केवल कुछ ही लोग हैं, उन्हें कई तरीकों से चुप कराया जा सकता है।

धर्मशास्त्र के अनुसार राजधर्म का सख्ती से पालन करने वाले श्रीराम जी का शासन शुद्ध लोकतंत्र के समान था।

उन्होंने अपने परिवार के लोगों के लाभ या आनंद के लिए शासन नहीं किया।

शासक को अपनी प्रजा में से सबसे कमजोरों की भी आवाज सुननी चाहिए, अल्पसंख्यकों की भी आवाज सुननी चाहिए।

उन लोगों की असली चिंता क्या थी?

बेशक, जो कुछ भी सीता जी के साथ हुआ उसमें अनका कोई दोष नहीं था ।

लेकिन यह एक मिसाल बन सकता था।

कल, कोई भी व्यक्ति , स्त्री या पुरुष जब तक चाहे तब तक परिवार से दूर रहेगा, जो चाहे वह करेगा और जब चाहे तब वापस भी आएगा।

यदि आप उनसे पूछें, तो वे कहेंगे, क्या सीता जी ने भी यही नहीं किया है ?'

यदि धर्म के प्रतीक राम ने कोई आपत्ति नहीं ली, तो अब क्या समस्या है?

यही असली चिंता थी।

तब केवल एक या दो या दस लोग थे।

लेकिन यह जल्द ही बढकर परिवार प्रणाली की स्थिरता को प्रभावित करने वाला एक सामाजिक मुद्दा बन जाएगा।

तो, क्या श्रीराम जी बयान देकर इसे सुलझा सकते थे?

इसे सिर्फ शासकीय प्रचार के रूप में लिया गया होता।

लोग बुद्धिमान हैं, वे हमेशा बुद्धिमान रहे हैं।

यहां तक कि यह कहते हुए कि सीता देवी लंका में अग्नि - परीक्षा से गुजरी थीं और उन्होंने अपनी शुद्धता को साबित किया, शायद यह भी मदद नहीं किया।

इसे किसने देखा है?

आम जनता ने इसे नहीं देखा है।

तो उनकी पवित्रता को स्थापित करने का एकमात्र तरीका क्या है?

कोई भी स्पष्टीकरण किसी स्वतंत्र स्रोत से आना चाहिए।

एक स्रोत जो किसी भी चीज़ या किसी व्यक्ति से प्रभावित नहीं होता।

तो जंगल में, ऋषि वाल्मीकि सीता देवी को अपने आश्रम में ले गए।

लव और कुश का जन्म वहीं हुआ था।

वाल्मीकि जी ने उन्हें धनुर्वेद और गांधर्ववेद सहित वेद और शास्त्र सिखाए।

सबसे महत्वपूर्ण बात, उन्होंने उन्हें अपना रामायण सिखाया।

उन्होंने उन्हें वीणा के साथ रामायण गाना सिखाया।

बालकों ने खूबसूरती से गाया, उनका गायन दिल को छू लेता था ।

श्रीरामजी नैमिषारण्य में अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे।

ऋषि वाल्मीकि को आमंत्रित किया गया था और वे अपने शिष्य लव और कुश सहित गए थे।

महर्षि ने लवऔर कुशा को अयोध्या भेजा।

उन्हें अयोध्या के निवासियों को रामायण सुनाना था।

उनके पास महर्षि का निर्देश था कि वे किसी से कुछ भी स्वीकार न करें।

वे अपने साथ फल ले जाते थे और केवल उन्हें खाते थे।

बालकों ने अयोध्या कांड से शुरुआत की और अयोध्या के लोग तुरंत कथा से मुग्ध हो गये।

सब कुछ वैसा ही था जैसा हुआ था।

पूरी तरह से निष्पक्ष।

उनकी अपनी आँखों के सामने हुई घटनाओं का शुद्ध वर्णन।

यह कुछ ऐसा था जिस पर पूर्ण रूप से भरोसा कर सकते हैं।

लोग, प्रस्तुति, कथन - १००% भरोसेमंद।

इसलिए जब लव और कुश ने लंका में वास्तव में जो कुछ हुआ था, उसका वर्णन किया, तो सब कुछ स्पष्ट हो गया।

किसी को भी कोई और संदेह नहीं था।

क्योंकि यह एक ऐसा स्रोत से आया था जो बिलकुल निःस्पृह था।

विश्वसनीयता निःस्पृहता से उत्पन्न हुई।

सभी ने देखा कि बालक कैसे व्यवहार करते थे, पेड़ों की खाल पहनते थे, फल खाते थे, और कुओं और नदियों का पानी पीते थे।

वे प्रायोजित वाहनों में प्रायोजित कार्यक्रमों में प्रवचन देने नहीं आए थे।

वे श्रीराम जी के प्रचार के दूत नहीं थे।

यह उनके आचरण से स्पष्ट था।

यह उनकी कथा से स्पष्ट था।

यदि लोग सोचते हैं कि आप एक निश्चित, निहित स्वार्थ का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, या आप एक निश्चित पंथ, या एक निश्चित राजनीतिक दल के साथ जुडे हुए हैं, तो वे आप पर पूरी तरह से भरोसा नहीं करेंगे।

एक सेलिब्रिटी अभिनेता, जिस क्षण वह खुद को एक राजनीतिक पार्टी के साथ जोड़ता है, तब उसकी विश्वसनीयता प्रभावित होती है।

हो सकता है कि आपने इस पर ध्यान दिया हो।

जो कुछ हुआ उसका वर्णन एक स्रोत से आया जो १००% विश्वसनीय था।

यहां तक कि अगर यह राजगुरु वशिष्ठ से आया होता, तो भी लोग इतना विश्वास नहीं करते।

क्योंकि वशिष्ठ राज परिवार से जुडे हुए थे।

जो लोग सीता जी का विरोध करते थे, वे भी उनके भक्त बन गए।

और दूसरी तरफ, श्रीराम जी ने अपना हिस्सा निभाया।

उन्होंने दोबारा विवाह नहीं किया।

उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन किया।

वे अगले ११,००० वर्षों तक ब्रह्मचारी बने रहे।

और उन्होंने केवल सीता माता की पवित्रता को बिना किसी संदेह के हमेशा के लिए स्थापित करने का ऐसा मार्ग भी बनाया।

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जय श्रीराम

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