बदरिकाश्रम में निवास करनेवाले ऋषि नारायण, नरों में उत्तम श्रीनर तथा उनकी लीला प्रकट करनेवाली भगवती सरस्वती को नमस्कार कर जय (पुराण एवं इतिहास आदि सद्ग्रन्थों) का पाठ करना चाहिये। कूर्मरूप धारण करनेवाले अप्रमेय भगवान् विष्णु को नमस्कार कर मैं उस पुराण (कूर्मपुराण) को कहूँगा, जो समस्त विश्व के मूल कारण भगवान् विष्णुके द्वारा कहा गया था॥१॥
नैमिषारण्यवासी महर्षियोंने बारह वर्षतक चलनेवाले सत्र (यज्ञ) के पूर्ण हो जाने पर सर्वथा निष्पाप रोमहर्षण सूतजी से पवित्र पुराण-संहिता के विषय में प्रश्न किया - महाबुद्धिमान् सूतजी महाराज! आपने इतिहास और पुराणों के ज्ञान के लिये ब्रह्मज्ञानियों में परम श्रेष्ठ भगवान् वेदव्यासजी की भलीभाँति उपासना की है। चूंकि आपके वचन से द्वैपायन भगवान् वेदव्यासजी के समस्त रोम हर्षित हो गये थे, इसलिये आप रोमहर्षण कहलाते हैं॥
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