आरती करने की विधि

aarti thali

पूजा के अंत में देवता को प्रसन्न करने आरती की जाती है।

देवता के गुणगान के साथ अनेक दीप बत्तियां जलाकर मूर्त्ति के चारों ओर घुमाने को आरती कहते हैं।

 

आरती कैसे करनी चाहिए

  • सबसे पहले देवता के मूल मंत्र से तीन बार फूल चढायें।
  • ढोल, नगारे, शङ्ख, घण्टा आदि वाद्यों के साथ आरती करनी चाहिए।
  • बत्तियों की संख्या विषम (जैसे १, ३, ५, ७) होनी चाहिए।
  • आरती में दीप जलाने के लिए घी का ही प्रयोग करें।
  • कपूर से भी आरती की जाती है।
  • दीपमाला को सब से पहले देवता की चरणों में चार बार घुमाये, दो बार नाभिदेश में, एक बार चेहरे के पास और सात बार समस्त अङ्गोंपर घुमायें।
  • दीपमाला से आरती करने के बाद, क्रमशः जलयुक्त शङ्ख, धुले हुए वस्त्र, आम और पीपल आदि के पत्तों से भी आरती करें।
  • इसके बाद साष्टाङ्ग दण्डवत् प्रणाम करें।

 

अरती क्यों करते हैं?

आरती करने के तीन उद्देश्य हैं।

१. नीरांजन - देवता के अङ्ग-प्रत्यङ्ग चमक उठें ताकि भक्त उनके स्वरूप को अच्छी तरह समझकर अपने हृदय में बैठा सकें।

२. कष्ट निवारण - पूजा के समय देवता का भव्य स्वरूप को देखकर उनके ऊपर भक्तों की ही नज़र पड सकती है। छोटे बच्चों की माताएँ जैसे नज़र उतारती हैं, ठीक वैसे ही आरती द्वारा देवता के लिए नज़र उतारी जाती है।

३, त्रुटि निवारण - पूजा में अगर कोई त्रुटि रह गई हो तो आरती से उसका निवारण हो जाता है।

 

आरती करने से लाभ

जो आरती करता है या देखता है वह अनेक उत्तम जन्म लेकर अंत में मोक्ष को पाता है।

आरती करनेवाले की करोड पीढियों का उद्धार होता है।

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भजन एवं आरती

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