हनुमान साठिका अर्थ सहित

hanuman ji

वीर बखानौं पवनसुत,जनत सकल जहान ।

धन्य-धन्य अंजनि-तनय , संकर, हर, हनुमान्॥

 

हे हनुमान जी ! हे अंजनी पुत्र ! हे पवन पुत्र ! हे रुद्र के अवतार ! आप धन्य हैं।

आपकी कीर्ति का मैं वर्णन करता हूँ । आपके बारे में संपूर्ण जगत जानता है।

 

जय जय जय हनुमान अडंगी ।

महावीर विक्रम बजरंगी ॥

 

हे परम वीर हनुमान जी ! 

आपको कोई नहीं रोक सकता ।

आपके मार्ग में कोई बाधा नहीं डाल सकता ।

आपके अंग वज्र के समान मजबूत हैं ।

आपकी जय हो । 

 

जय कपीश जय पवन कुमारा ।

जय जगबन्दन सील अगारा ॥

 

हे कपीश ! हे पवन कुमार ! सारा संसार आपको प्रणाम करता है ।

आप गुणों के भंडार हैं ।

आपकी जय हो ।

 

जय आदित्य अमर अबिकारी ।

अरि मरदन जय-जय गिरधारी ॥

 

हे हनुमान जी ! आप कान्ति में आदित्य के समान हैं ।

आप अमर हैं ।

आप में क्रोध जैसे विकार नहीं हैं ।

आप शत्रुओं का विनाश करते हैं ।

आप में इतनी शक्ति है कि आपने द्रोणाचल को उठाया ।

आपकी जय हो ।

 

अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा ।

जय-जयकार देवतन कीन्हा ॥

 

हे हनुमान जी ! जब आप ने अंजनी के गर्भ से जन्म लिया तब देवताओं ने आपकी जय - जयकार की थी ।

 

बाजे दुन्दुभि गगन गम्भीरा ।

सुर मन हर्ष असुर मन पीरा ॥

 

आकाश में दुन्दुभी जैसे वाद्य बजे ।

देवता लोग खुश हुए ।

असुर भय से पीडित हो गये ।

 

कपि के डर गढ़ लंक सकानी ।

छूटे बंध देवतन जानी ॥

 

आप से लंका के सारे राक्षस डरे ।

आपके कारण देवता मुक्त हो गये ।

 

ऋषि समूह निकट चलि आये ।

पवन तनय के पद सिर नाये ॥

 

ऋषि जन आपके पास आये ।

उन्होंने आपका प्रणाम किया ।

 

बार-बार अस्तुति करि नाना ।

निर्मल नाम धरा हनुमाना ॥

 

सब ने आपकी स्तुति की।

आपका नाम हनुमान रखा गया। 

 

सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना ।

दीन्ह बताय लाल फल खाना ॥

 

ऋषियों ने आपको लाल रंग का फल खाने को कहा ।

 

सुनत बचन कपि मन हर्षाना ।

रवि रथ उदय लाल फल जाना ॥

 

लाल रंग का फल का नाम सुनकर आप बहुत खुश हुए ।

सूर्य को ही आप ने लाल रंग का फल समझा ।

 

रथ समेत कपि कीन्ह अहारा ।

सूर्य बिना भए अति अंधियारा ॥

 

आपने सूर्य को रथ समेत पकड़ कर अपने मुँह के अंदर डाला ।

सब डर गये और हाहाकार करने लगे ।

 

विनय तुम्हार करै अकुलाना ।

तब कपीस की अस्तुति ठाना ॥

 

देवताओं और ऋषियों ने आपकी स्तुति की ।

 

सकल लोक वृतान्त सुनावा ।

चतुरानन तब रवि उगिलावा ॥

 

ब्रह्मा जी ने सूर्य को उगलवाने के लिए आपको मना लिया ।

 

कहा बहोरि सुनहु बलसीला ।

रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ॥

 

ब्रह्मा जी ने आपसे कहा -  हे महावीर हनुमान ! भगवान श्री रामचंद्र जी महान लीलाएं करनेवाले हैं ।

 

तब तुम उन्हकर करेहू सहाई ।

अबहिं बसहु कानन में जाई ॥

 

तब आप उनकी मदद कीजिए ।

तब तक वन में जाकर रहिए ।

 

असकहि विधि निजलोक सिधारा ।

मिले सखा संग पवन कुमारा ॥

 

ब्रह्मा जी अपने लोक वापस गये ।

वन में आपको अपने मित्र मिले ।

 

खेलैं खेल महा तरु तोरैं ।

ढेर करैं बहु पर्वत फोरैं ॥

 

आपने खेलते खेलते बडे वृक्षों को गिराया और पर्वतों को चूर चूर कर दिया

 

जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई ।

गिरि समेत पातालहिं जाई ॥

 

जिस भी पर्वत पर आप पैर रखते थे वह पाताल तक दब जाता है ।

 

कपि सुग्रीव बालि की त्रासा ।

निरखति रहे राम मगु आसा ॥

 

सुग्रीव जी बाली से डरे हुए थे ।

श्रीराम जी आएंगे यही उनकी आशा थी ।

 

मिले राम तहं पवन कुमारा ।

अति आनन्द सप्रेम दुलारा ॥

 

आपने ही सुग्रीव को श्रीराम जी से मिलाया । 

इस से उन्होंने बडा आनंद पाया ।

 

मनि मुंदरी रघुपति सों पाई ।

सीता खोज चले सिरु नाई ॥

 

श्रीराम जी की अंगूठी को लेकर आप सीता मैया की खोज में निकले । 

 

सतयोजन जलनिधि विस्तारा ।

अगम अपार देवतन हारा ॥

 

आपके सामने सौ योजन लंबा समुद्र था जिसे देवता भी नहीं पार कर सके ।

 

जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा ।

लांघि गये कपि कहि जगदीशा ॥

 

श्रीराम जी का नाम लेकर आपने उस विशाल समुद्र को गौ के खुर के बराबर पोखर जैसे पार कर लिया ।

 

सीता चरण सीस तिन्ह नाये ।

अजर अमर के आसिस पाये ॥

 

लंका पहुंचकर सीता माता की चरण वंदना करने पर उन्होंने  आपको अजर और अमर होने का आशीर्वाद दिया | 

 

रहे दनुज उपवन रखवारी ।

एक से एक महाभट भारी ॥

 

लंका में भयंकर राक्षस उस उपवन की रक्षा करते थे जिस में सीता माता थी ।

 

तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा ।

दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा ॥

 

आपने उन राक्षसों का वध किया, उस उपवन को नष्ट किया, और लंका को जला डाला ।

रावण तक आपसे डरने लगा ।

 

सिया बोध दै पुनि फिर आये ।

रामचन्द्र के पद सिर नाये।

 

आप सीता माता को धीरज देकर श्रीराम जी के चरणों में वापस चले आये ।

 

मेरु उपारि आप छिन माहीं ।

बांधे सेतु निमिष इक मांहीं ॥

 

समुद्र के ऊपर पल भर में आपने सेतु बंधवाया।

 

लछमन शक्ति लागी उर जबहीं ।

राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ॥

 

युद्ध के बीच लक्ष्मण जी को चोट लगी तो श्रीराम जी बहुत दुखी हो गये।

 

भवन समेत सुषेन लै आये ।

तुरत सजीवन को पुनि धाये ॥

 

लंका के वैद्य सुषेण को आप घर समेत ले आये।

लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाने आप तुरंत निकल गये।

 

मग महं कालनेमि कहं मारा ।

अमित सुभट निसिचर संहारा ॥

 

रास्ते में आप ने कालनेमि को मारा ।

जिसने भी आपको रोकने की कोशिश की सबको मार दिया ।

 

आनि संजीवन गिरि समेता ।

धरि दीन्हों जहं कृपा निकेता ॥

 

आप ने पर्वत सहित संजीवनी को लाकर श्रीराम जी के पास रख दिया ।

 

फनपति केर सोक हरि लीन्हा ।

वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा ॥

 

इस प्रकार जब आपने लक्ष्मण जी को ठीक किया देवताओं ने आप के ऊपर पुष्प वृष्टि की।

अहिरावण हरि अनुज समेता ।

लै गयो तहां पाताल निकेता ॥

 

अहिरावण श्रीराम जी और लक्ष्मण जी को पकडकर पाताल ले गया ।

 

जहां रहे देवि अस्थाना ।

दीन चहै बलि काढ़ि कृपाना ॥

 

वहां देवी के सामने वह उनकी बलि चढानेवाला था ।

 

पवनतनय प्रभु कीन गुहारी ।

कटक समेत निसाचर मारी ॥

 

तब आप ने अहिरावण और उसकी सेना को मार डाला ।

 

रीछ कीसपति सबै बहोरी ।

राम लषन कीने यक ठोरी ॥

 

उसके बाद आप श्रीराम जी और लक्ष्मण जी को जामवंत और सुग्रीव के पास ले आये ।

 

सब देवतन की बन्दि छुड़ाये ।

सो कीरति मुनि नारद गाये ॥

 

आप ने देवताओं को राक्षसों से मुक्त कराया।

नारद मुनि ने आप का यशोगान किया ।

 

अछयकुमार दनुज बलवाना ।

कालकेतु कहं सब जग जाना ॥

 

अक्षय कुमार नामक राक्षस केतु के नाम से प्रसिद्ध था ।

 

कुम्भकरण रावण का भाई ।

ताहि निपात कीन्ह कपिराई ॥

 

उसका और रावण का भाई कुंभकर्ण का आपने विनाश किया । 

 

मेघनाद पर शक्ति मारा ।

पवन तनय तब सो बरियारा ॥

 

महान बलवान मेघनाद पर आपने शक्ति से आक्रमण किया ।

 

रहा तनय नारान्तक जाना ।

पल में हते ताहि हनुमाना ॥

 

हे हनुमान जी ! रावण का पुत्र नरान्तक नामक राक्षस को भी आप ने पल भर में मार दिया ।

 

जहं लगि भान दनुज कर पावा ।

पवन तनय सब मारि नसावा।

 

हे पवन पुत्र ! जहां जहां राक्षस मिले, आप ने उन सब को मार दिया ।

 

जय मारुत सुत जय अनुकूला ।

नाम कृसानु सोक सम तूला ॥

 

हे मारुति देव ! आप अपने भक्तों के अनुकूल रहते हैं ।

उनके शोक रूपी रूई को आप आग जैसे जला देते हैं ।

 

जहं जीवन के संकट होई ।

रवि तम सम सो संकट खोई ॥

 

घने अंधेरे को सूर्य पल भर में दूर करते हैं ।

ठीक उसी प्रकार आप भक्तों के संकटों को मिटा देते हैं ।

 

बन्दि परै सुमिरै हनुमाना ।

संकट कटै धरै जो ध्याना ॥

 

हे हनुमान जी !  बन्धन में होने पर अगर कोई आपका स्मरण करता है तो आप उसकी रक्षा करने के लिये आ जाते हैं ।

 

जाको बांध बामपद दीन्हा ।

मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा ॥

सो भुजबल का कीन कृपाला ।

अच्छत तुम्हें मोर यह हाला ॥

हे हनुमान जी ! आपके रहते हुए मेरी यह दुर्दशा कैसे हो सकती है? 

 

आरत हरन नाम हनुमाना ।

सादर सुरपति कीन बखाना ॥

 

हे हनुमान जी ! देवराज इन्द्र कहते हैं कि आपका नाम ही संकटमोचन के लिए काफी है । 

 

संकट रहै न एक रती को ।

ध्यान धरै हनुमान जती को ॥

 

जो आपका ध्यान करता है उसके जीवन में एक रत्ती के बराबर भी संकट नहीं हो सकता। 

 

धावहु देखि दीनता मोरी ।

कहौं पवनसुत जुगकर जोरी ॥

 

हे पवन पुत्र ! मेरी दीनता को देखिए ।

जल्दी आकर मुझे इस बन्धन से मुक्ति कीजिए ।

 

कपिपति बेगि अनुग्रह करहु ।

आतुर आइ दुसै दुख हरहु ॥

 

आप मुझे आशीर्वाद दीजिए । 

मेरे दुख को हरने जल्द ही आइये |  

 

राम सपथ मैं तुमहिं सुनाया ।

जवन गुहार लाग सिय जाया ॥

 

श्रीराम जी का नाम लेकर मैं आपसे यह विनती करता हूं ।

 

यश तुम्हार सकल जग जाना ।

भव बन्धन भंजन हनुमाना ॥

 

 हे हनुमान जी आपका यश सारे संसार में व्याप्त है ।

आप संसार के भय से भक्तों की रक्षा करते हैं ।

 

यह बन्धन कर केतिक बाता ।

नाम तुम्हार जगत सुखदाता ॥

 

आप सब के लिए सुख प्रदान करते हैं ।

मेरा संकट आपके लिए कुछ भी नहीं है ।

 

करौ कृपा जय जय जग स्वामी ।

बार अनेक नमामि नमामी ॥

 

हे जगत के स्वामी ! आप मुझ पर कृपा कीजिये। 

मैं बार बार आपको नमस्कार करता हूँ । 

 

भौमवार कर होम विधाना ।

धूप दीप नैवेद्य सुजाना ॥

मंगल दायक को लौ लावे ।

सुन नर मुनि वांछित फल पावे ॥



जो भक्त मंगलवार को हनुमान जी के लिए धूप, दीप और नैवेद्य समर्पित करता है और हवन करता है, व्ह तुरंत ही उसका फल पाता है ।

 

जयति जयति जय जय जग स्वामी ।

समरथ पुरुष सुअन्तरजामी ॥

 

हे जगत के स्वामी ! आपकी जय हो, जय हो, जय हो, जय हो । 

आप समर्थ हैं और सबके अन्तर्यामी हैं ।

 

अंजनि तनय नाम हनुमाना ।

सो तुलसी के प्राण समाना ॥

 

हे अंजनी पुत्र ! हे हनुमान जी ! आप तुलसीदास के लिए प्राण के समान हैं । 

 

दोहा 

 

जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ।

राम लषन सीता सहित, सदा करो कल्याण ॥

 

सुग्रीव जी की जय हो ।

अंगद जी की जय हो ।

हनुमान जी की जय हो ।

श्रीराम जी लक्ष्मण जी और सीता जी सहित हनुमान जी सदा हमारा कल्याण कीजिए ।

 

बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान ।

ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण ॥

 

मंगलवार के दिन इसका पाठ जो भी करता है वह अवश्य ही कल्याणकारी पद को प्राप्त कर लेता है।

 

जो नित पढ़ै यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि ।

रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥

 

तुलसीदास यह घोषणा करता है कि जो इस हनुमान साठिका का नित्य पाठ करेगा वह कभी संकट में नहीं पड़ेगा। स्वयं शिव जी इसके साक्षी हैं।

 

सवैया

 

आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।

अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ॥

 

जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।

दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ॥

 

श्री तुलसीदास जी कहते हैं – मैं विपत्ति में आपको पुकार रहा हूँ। 

आप मेरी प्रार्थना सुनिये । 

अंगद, नल, नील, महादेव, राजा बलि, भगवान राम, बलराम, शूरवीर  जांबवंत, सुग्रीव, पवन पुत्र हनुमान, द्विविद और मयन्द – इन बारह वीरों को मैं बलिहारी (न्यौछावर) हूँ ।

 कृपा करके भक्त के दुःख और दोष को दूर कीजिये।







दोहा 

 

वीर बखानौं पवनसुत,जनत सकल जहान ।

धन्य-धन्य अंजनि-तनय , संकर, हर, हनुमान्॥

 

जय जय जय हनुमान अडंगी ।

महावीर विक्रम बजरंगी ॥

 

जय कपीश जय पवन कुमारा ।

जय जगबन्दन सील अगारा ॥

 

जय आदित्य अमर अबिकारी ।

अरि मरदन जय-जय गिरधारी ॥

 

अंजनि उदर जन्म तुम लीन्हा ।

जय-जयकार देवतन कीन्हा ॥

 

बाजे दुन्दुभि गगन गम्भीरा ।

सुर मन हर्ष असुर मन पीरा ॥

 

कपि के डर गढ़ लंक सकानी ।

छूटे बंध देवतन जानी ॥

 

ऋषि समूह निकट चलि आये ।

पवन तनय के पद सिर नाये ॥

 

बार-बार अस्तुति करि नाना ।

निर्मल नाम धरा हनुमाना ॥

 

सकल ऋषिन मिलि अस मत ठाना ।

दीन्ह बताय लाल फल खाना ॥

 

रथ समेत कपि कीन्ह अहारा ।

सूर्य बिना भए अति अंधियारा ॥

 

विनय तुम्हार करै अकुलाना ।

तब कपीस की अस्तुति ठाना ॥

 

सकल लोक वृतान्त सुनावा ।

चतुरानन तब रवि उगिलावा ॥

 

कहा बहोरि सुनहु बलसीला ।

रामचन्द्र करिहैं बहु लीला ॥

 

तब तुम उन्हकर करेहू सहाई ।

अबहिं बसहु कानन में जाई ॥

 

असकहि विधि निजलोक सिधारा ।

मिले सखा संग पवन कुमारा ॥

 

जेहि गिरि चरण देहि कपि धाई ।

गिरि समेत पातालहिं जाई ॥

 

कपि सुग्रीव बालि की त्रासा ।

निरखति रहे राम मगु आसा ॥

 

मिले राम तहं पवन कुमारा ।

अति आनन्द सप्रेम दुलारा ॥

 

मनि मुंदरी रघुपति सों पाई ।

सीता खोज चले सिरु नाई ॥

 

सतयोजन जलनिधि विस्तारा ।

अगम अपार देवतन हारा ॥

 

जिमि सर गोखुर सरिस कपीसा ।

लांघि गये कपि कहि जगदीशा ॥

 

सीता चरण सीस तिन्ह नाये ।

अजर अमर के आसिस पाये ॥

 

रहे दनुज उपवन रखवारी ।

एक से एक महाभट भारी ॥

 

तिन्हैं मारि पुनि कहेउ कपीसा ।

दहेउ लंक कोप्यो भुज बीसा ॥

 

सिया बोध दै पुनि फिर आये ।

रामचन्द्र के पद सिर नाये।

 

मेरु उपारि आप छिन माहीं ।

बांधे सेतु निमिष इक मांहीं ॥

 

लछमन शक्ति लागी उर जबहीं ।

राम बुलाय कहा पुनि तबहीं ॥

 

भवन समेत सुषेन लै आये ।

तुरत सजीवन को पुनि धाये ॥

 

मग महं कालनेमि कहं मारा ।

अमित सुभट निसिचर संहारा ॥

 

आनि संजीवन गिरि समेता ।

धरि दीन्हों जहं कृपा निकेता ॥

 

फनपति केर सोक हरि लीन्हा ।

वर्षि सुमन सुर जय जय कीन्हा ॥

 

अहिरावण हरि अनुज समेता ।

लै गयो तहां पाताल निकेता ॥

 

जहां रहे देवि अस्थाना ।

दीन चहै बलि काढ़ि कृपाना ॥

 

पवनतनय प्रभु कीन गुहारी ।

कटक समेत निसाचर मारी ॥

 

रीछ कीसपति सबै बहोरी ।

राम लषन कीने यक ठोरी ॥

 

सब देवतन की बन्दि छुड़ाये ।

सो कीरति मुनि नारद गाये ॥

 

अछयकुमार दनुज बलवाना ।

कालकेतु कहं सब जग जाना ॥

 

कुम्भकरण रावण का भाई ।

ताहि निपात कीन्ह कपिराई ॥

 

मेघनाद पर शक्ति मारा ।

पवन तनय तब सो बरियारा ॥

 

रहा तनय नारान्तक जाना ।

पल में हते ताहि हनुमाना ॥

 

जहं लगि भान दनुज कर पावा ।

पवन तनय सब मारि नसावा।

 

जय मारुत सुत जय अनुकूला ।

नाम कृसानु सोक सम तूला ॥

 

जहं जीवन के संकट होई ।

रवि तम सम सो संकट खोई ॥

 

बन्दि परै सुमिरै हनुमाना ।

संकट कटै धरै जो ध्याना ॥

 

जाको बांध बामपद दीन्हा ।

मारुत सुत व्याकुल बहु कीन्हा ॥

 

सो भुजबल का कीन कृपाला ।

अच्छत तुम्हें मोर यह हाला ॥

आरत हरन नाम हनुमाना ।

सादर सुरपति कीन बखाना ॥

 

संकट रहै न एक रती को ।

ध्यान धरै हनुमान जती को ॥



धावहु देखि दीनता मोरी ।

कहौं पवनसुत जुगकर जोरी ॥



कपिपति बेगि अनुग्रह करहु ।

आतुर आइ दुसै दुख हरहु ॥



राम सपथ मैं तुमहिं सुनाया ।

जवन गुहार लाग सिय जाया ॥



यश तुम्हार सकल जग जाना ।

भव बन्धन भंजन हनुमाना ॥



यह बन्धन कर केतिक बाता ।

नाम तुम्हार जगत सुखदाता ॥



करौ कृपा जय जय जग स्वामी ।

बार अनेक नमामि नमामी ॥



भौमवार कर होम विधाना ।

धूप दीप नैवेद्य सुजाना ॥

 

मंगल दायक को लौ लावे ।

सुन नर मुनि वांछित फल पावे ॥

 

जयति जयति जय जय जग स्वामी ।

समरथ पुरुष सुअन्तरजामी ॥

 

अंजनि तनय नाम हनुमाना ।

सो तुलसी के प्राण समाना ॥

 

दोहा 

 

जय कपीस सुग्रीव तुम, जय अंगद हनुमान ।

राम लषन सीता सहित, सदा करो कल्याण ॥

 

बन्दौं हनुमत नाम यह, भौमवार परमान ।

ध्यान धरै नर निश्चय, पावै पद कल्याण ॥

 

जो नित पढ़ै यह साठिका, तुलसी कहैं बिचारि ।

रहै न संकट ताहि को, साक्षी हैं त्रिपुरारि ॥

 

सवैया

 

आरत बन पुकारत हौं कपिनाथ सुनो विनती मम भारी ।

अंगद औ नल-नील महाबलि देव सदा बल की बलिहारी ॥

 

जाम्बवन्त् सुग्रीव पवन-सुत दिबिद मयंद महा भटभारी ।

दुःख दोष हरो तुलसी जन-को श्री द्वादश बीरन की बलिहारी ॥

हनुमान साठिका पढने से क्या लाभ मिलता है?

हनुमान साठिका पढनेवाले भक्तों के संकट हनुमान जी समाप्त कर लेते हैं । वे उनकी रक्षा करते हैं । उनकी मनोकामनायें पूर्ण हो जाती हैं ।

हनुमान साठिका का पाठ कब करना चाहिये ?

हनुमान साठिका का पाठ हर दिन और विशेष करके मंगलवार को करना चाहिए । संकटों के निवारण में यह ब्रह्मास्त्र के समान है।

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हनुमान साठिका के रचयिता कौन है?
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