इस प्रवचन से जानिए- १. साधना का उद्देश्य क्या है? २. साधना की सिद्धि का लक्षण क्या है?
हम साधना क्यों करते हैं? भगवत प्राप्ति के लिए। क्या है भगवत प्राप्ति? आप जिस भी देवता की साधना करते हो बिलकुल उनके जैसे हो जाना। आपने नाग बाबाओं को देखा होगा जो शंकर जी के उपासक हैं। वे उनके जैसे ही जटा धारण करते हैं। ....
हम साधना क्यों करते हैं?
भगवत प्राप्ति के लिए।
क्या है भगवत प्राप्ति?
आप जिस भी देवता की साधना करते हो बिलकुल उनके जैसे हो जाना।
आपने नाग बाबाओं को देखा होगा जो शंकर जी के उपासक हैं।
वे उनके जैसे ही जटा धारण करते हैं।
सारे शरीर मे भस्म लगाते हैं।
यह तो तन से; तन से, मन से, बुद्धि से जब आप पूर्ण रूप से आपके इष्ट देवता जैसे हो जाओगे तो आपकी साधना सफल हो गयी, सिद्ध हो गयी।
यही साधना का उद्देश्य है।
यह भववत स्वरूप आपके अन्दर पहले से ही विद्यमान है।
बस वह वासनाएं, कामनाएं, अज्ञान, अहंकार, मुझे सर्वदा सुख ही सुख मिलते रहें, मुझे मान सम्मान मिलें इन विचारों से, इन सबसे वह भगवत स्वरूप छादित हो जाता है।
यह अंगार के ऊपर जैसे राख जम जाती है, या दर्पण के ऊपर मैल जम जाता है उस प्रकार है।
इस राख को हटाना, इस मैल को साफ करना, यही साधना है।
साधना के हर अंग, हर तरह की साधना इसी के लिए है।
जब मैल निकल जाएगा तो भववत स्वरूप स्वयं प्रकाशित हो जाएगा।
आपके तन में, मन में बुद्धि में भगवान के असीम गुण प्रकाशित होने लगेंगे।
अपके द्वारा ये प्रवृत्त होने लगेंगे।
उसके बाद आप सिर्फ वे ही कार्य करेंगे जो भगवत हित में हो, जो भगवान चाहते हैं।
भगवान गीता मे कहते हैं न?
मत्कर्मकृन्मत्परमो मद्भक्तः।
ये मेरे ही काम को करेंगे, जो मैं चाहता हूं।
इसलिए स्नान, संयम, पूजा, पाठ, सत्संग, सेवा ये सब हर साधना पद्धति के अन्तर्गत हैं।
इन सबसे चित्त शुद्धि की प्राप्ति होती है।
ध्यान करने से, भगवत स्मरण करने से भववत प्राप्ति की ओर यह आन्तरिक प्रयाण और भी शीघ्र हो जाता है।
साधना सिद्ध हो जाने पर सारा जगत भगवान के ही लीला स्वरूप मे दिखाई देने लगेगा।
भगवान ही हर प्राणी के अन्दर हर वस्तु के अन्दर रहकर उनका नियंत्रण करके वे जो चाहते हैं वही करा रहे हैं, ऐसे दिखाई देगा।
हर प्राणी के अन्दर से हर वस्तु के अन्दर से एक ही सूत जा रहा है और वह सूत इन सबको एक सुन्दर हार जैसे समाकर रखा है, ऐसे दिखाई देगा।
जो कुछ भी हो रहा भगवान के हित के अनुसार ही हो रहा है, ऐसे समझ में आएगा।
यही साधना की सिद्धि है।
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