जानिए तीन प्रकार के शिव योगियों के बारे में और शिव पद की प्राप्ति के लिए ये क्या करते हैं
घर में पूजा के लिए सबसे अच्छा शिव लिंग नर्मदा नदी से प्राप्त बाण लिंग है। इसकी ऊंचाई यजमान के अंगूठे की लंबाई से अधिक होनी चाहिए। उत्तम धातु से पीठ बनाकर उसके ऊपर लिंग को स्थापित करके पूजा की जाती है।
भगवान शिव में विलय हो जाने को शिव योग कहते हैं। कोई भी व्यक्ति जिसका भगवान शिव में विलय हो चुका है या इसके लिए बताये गये अभ्यास का आचरण कर रहा है, वह है शिव योगी।
आज हम शिव योगी शब्द का अर्थ, तीन प्रकार के शिव योगी और उनके बीच अंतर के बारे में देखेंगे। शिव योगी का क्या अर्थ है? जो भगवान शिव में विलीन होने के मार्ग में है वह है शिव योगी। योग का अर्थ है विलय। योग का लक्ष्य भगवान में व....
आज हम शिव योगी शब्द का अर्थ, तीन प्रकार के शिव योगी और उनके बीच अंतर के बारे में देखेंगे।
शिव योगी का क्या अर्थ है?
जो भगवान शिव में विलीन होने के मार्ग में है वह है शिव योगी।
योग का अर्थ है विलय।
योग का लक्ष्य भगवान में विलीन होना है।
इसे प्राप्त करने के लिए आप जो करते हैं वह योगभ्यास है।
योगाभ्यास को भी योग कहते हैं।
आजकल बहुत से नौजवान अमेरिका या कनाडा में जाकर बस जाते हैं।
कुछ वर्षों के बाद उनका रहन-सहन वहां के मूल निवासियों जैसा हो जाता है।
बदल जाएगा।
ऐसा इसलिए है क्योंकि वे वहां मौजूद रहते हैं।
जितना ज्यादा वहां रहेंगे उतना उनके जैसे हो जाएंगे।
एक पर्यटक जो कभी-कभार वहां जाता है, उसमें वह आदतें या रीति रिवाज नहीं आती हैं।
आप कितने समय तक वहां है इसके ऊपर है।
अगर आप दस साल रहते हैं तो अमेरिकी बन जाएंगे।
अगर आप दस साल और रहेंगे तो आप और अमेरिकी बन जाएंगे।
उसी तरह आप भगवान शिव के समक्ष में कितना समय बिताते हैं, भगवान शिव के साथ, भगवान शिव के चिंतन में, भगवान शिव के बारे में बात करते हुए; आप कहां तक शिव बन चुके हैं, कितना शिव के रूप में परिणत हो चुके हैं यह इसके ऊपर निर्भर होता है।
शिव पुराण कहता है कि शिव योगी तीन प्रकार के हैं, जो इस पर आधारित है कि वे शिव को प्राप्त करने के लिए क्या करते हैं।
क्रिया योगी, तपोयोगी और जप योगी।
जैसा कि हमने पहले देखा था, शिव की प्राप्ति के मार्ग में प्रगति करने के लिए शिव लिंग की पूजा बहुत महत्वपूर्ण है।
लगातार उनकी महिमा को सुनने और उनकी महिमा के बारे में बात करने से भी शिव पद की प्राप्ति होती है।
लेकिन भगवान शिव की पूजा आपकी साधना को बहुत ताकत देती है।
क्रिया योगी पूजा प्रक्रिया अचूक करने में ध्यान देगा।
वह इस पर ध्यान देगा कि वह जो कुछ भी प्रभु को अर्पित करता है वह सर्वोत्तम हो। वह गहने, सजावट, अच्छा मंदिर इन सब के लिए खर्च करेगा। उसकी साधना भौतिक वस्तुओं से है। सर्वोत्तम भौतिक वस्तुओं को प्राप्त करना और उन्हें भगवान को अर्पित करना, मंदिर को सुन्दर और स्वच्छ रखना, ये सब।
तपोयोगी, पूजा के अलावा अपनी आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाने आत्म-संयम का अभ्यास के लिए करेगा। वह प्रदोष के समय या सप्ताह के कुछ दिनों में उपवास करना, ब्रह्मचर्य जैसे व्रतों का पालन करना, राजसिक और तामसिक भोजन को त्याग देना; ऐसा आत्म नियंत्रण का अभ्यास करेगा।
जप योगी इन दोनों के अलावा शिव मंत्र का दीक्षा लेकर जाप करता रहेगा।
तीनों ही प्रभु की प्राप्ति की ओर ले जाते हैं। भगवान शिव में लय की ओर।
केवल गति भिन्न रहेगी।
तपोयोगी योग को क्रियायोगी से अधिक तेजी से प्राप्त करेगा।
जप योगी योग को तपोयोगी से भी तेजी से प्राप्त कर लेगा।
इनके माध्यम से सभी पांच प्रकार की मुक्ति को भी प्राप्त किया जा सकता है।
सालोक्य- कैलास में वास।
सामीप्य- सर्वदा भगवान के समीप ही रहना।
सारूप्य-शिव के समान देह की प्राप्ति।
सार्ष्टि- भगवान के जैसी शक्ति की प्राप्ति।
सायुज्य- उनमें विलीन हो जाना।
साधक को तीनों ही करना चाहिए- शिवलिङ्ग की पूजा, उपवास जैसे आत्मसंयम का अभ्यास और मंत्र जाप।
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