इस प्रवचन से जानिए- १. रोमहर्षण कौन थे? २. बलदेव जी ने रोमहर्षण को क्यों मारा? ३. शौनक महर्षि कौन थे? ४. उग्रश्रवा कौन थे?
द्रोणाचार्य से प्रशिक्षण पूरा होने के एक साल बाद, भीमसेन ने तलवार युद्ध, गदा युद्ध और रथ युद्ध में बलदेव जी से प्रशिक्षण प्राप्त किया था।
उग्रश्रवाजी नैमिषारण्य आ पहुंचते हैं जहां शौनक महर्षि की अध्यक्षता में बारह साल का यज्ञ चल रहा है। महाभारत उग्रश्रवा को पौराणिक कहकर पुकारता है। पौराणिक शब्द का सामान्य अर्थ है- पुराणं पण्यं जीविका अस्य इति पौराणिक....
उग्रश्रवाजी नैमिषारण्य आ पहुंचते हैं जहां शौनक महर्षि की अध्यक्षता में बारह साल का यज्ञ चल रहा है।
महाभारत उग्रश्रवा को पौराणिक कहकर पुकारता है।
पौराणिक शब्द का सामान्य अर्थ है- पुराणं पण्यं जीविका अस्य इति पौराणिकः।
जिसने पुराणों को सुनाना अपनी जीविका बनायी है वह है पौराणिक।
यह इस शब्द का सामान्य अर्थ है।
पर उग्रश्रवाजी पर यह अर्थ लागू नही होता।
इसे स्पष्ट करते हुए महाभारत कहता है कि- पौराणिकः पुराणे कृतश्रमः।
जिसने भी पुराणों के ऊपर काफी प्रयास किया है; सीखने, रहस्यों को समझने वह है पौराणिक।
सामान्य वक्ता क्या करेगा?
जैसे सुना वैसे सुनाता है।
पर पौराणिक वह है जिसने परिश्रम करके पुराणॊं के रहस्यों को समझा हो।
महाभारत उग्रश्रवा को सौति कहता है, सूत नहीं।
सौति का अर्थ है सूत का पुत्र।
सबसे श्रेष्ठ और प्रसिद्ध सूत थे लोमहर्षण या रोमहर्षण।
उनसे कथा सुनकर लोगों के रोमों में हर्ष आ जाता था।
रोमांच होता था।
रोमों को हर्ष देनेवाले रोमहर्षण या लोमहर्षण।
शौनक महर्षि ही सूत जी के बारे में कहते हैं- अग्निकुण्डसमुद्भूतसूतनिर्मलमानसः।
सूत की उत्पत्ति अग्निकुण्ड से हुई और उनका मन निर्मल है।
ये साधारण वक्ताओं जैसे नाम, कमाई इनके पीछे नहीं लगे थे।
नैमिषारण्य में ही लोमहर्षण को प्रभु बलदेव ने मार दिया था।
एक गलत फहमिये की वजह से।
शौनक जी ने लोमहर्षण को अपने यज्ञ में ब्रह्म स्थान, सबसे श्रेष्ठ स्थान दिया था।
ऋषि जन यह कर सकते हैं।
धृष्टद्युम्न को भी ऋषियों ने ही क्षत्रिय बनाया था।
किसी की भी प्रतिष्ठा को बदल सकते हैं ऋषि जन।
लोमहर्षण सूत जाती के थे, उनको वेदाधिकार नहीं था।
तब भी ऋषियों ने उन्हें वैदिक यज्ञ में सबसे ऊंचा स्थान दे दिया।
जब बलदेव जी यज्ञ की वेदी में आये तो बाकी सब खडे हो गये।
पर लोमहर्षण अपने ब्रह्मासन से नहीं उठे।
यज्ञ विधि के अनुसार ब्रह्मा को अपने आसन से नहीं उठना चाहिए।
पर बलदेवजी को यह नहीं पता था कि लोमहर्षण ब्रह्मासन पर बैठे हैं।
उन्होंने अनादर समझकर एक कुश को अभिमन्त्रित करके लोमहर्षण के ऊपर ब्रह्मास्त्र के रूप में छोडा और उन्हें मार दिया।
जब ऋषियों ने बलदेव जी के ध्यान में लाया कि लोमहर्षण ब्रह्मासन पर बैठे थे तो उन्होंने कहा कि- ठीक है, मैं उन्हें वापस जीवित कर देता हूं।
पर यह तो ब्रह्मास्त्र के लिए अपमान हो जाएगा।
बीच का रास्ता यह निकला कि बलदेव जी ने लोमहर्षण के सम्पूर्ण ज्ञान और गुणों को उनके पुत्र उग्रश्रवा के शरीर में स्थापित कर दिया।
उग्रश्रवा सौति ने ऋषियों से पूछा- आप क्या सुनना चाहेंगे?
ऋषियों ने कहा- हम परमार्थ को ही सुनना चाहेंगे।
पर शौनक महर्षि अब यहां नहीं हैं।
वे यागशाला में हैं।
उनको आने दीजिए।
शौनक महर्षि कोई साधारण मानव नहीं हैं।
उनको भारतवर्ष के सृजन से लेकर इतिहास के बारे में बहुत कुछ पता है।
न केवल मानवों का इतिहास, गन्धर्व, यक्ष- इन सबके बारे में पता है।
वेद, शास्त्र सब कुछ जानते हैं वे।
तपस्वी हैं।
सर्वदा सत्य का ही आचरण करते हैं।
संयमी हैं।
व्रतों का पालन करते हैं।
सबके आदर के पात्र हैं।
उनको आने दीजिए।
वे जो बताएंगे वही सुनाइए।
शौनक जी यागशाला में देवों का और पितरों का पूजन समाप्त करके आये।
और आकर सौति को बताये कि सबसे पहले भृगुवंश के बारे में बताओ जो शौनक महर्षि का ही वंश है।
पेड-पौधों की सेवा और पशु-पक्षियों की सेवा शिवलिंग पूजन के समान है
वामन पुराण
पुलस्त्य जी बोले - तत्पश्चात् भीरुओं के लिये भय बढ़ानेवा....
Click here to know more..शिव महिम्न स्तोत्र
महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी स्तुतिर्ब्रह्मादी....
Click here to know more..Please wait while the audio list loads..
Ganapathy
Shiva
Hanuman
Devi
Vishnu Sahasranama
Mahabharatam
Practical Wisdom
Yoga Vasishta
Vedas
Rituals
Rare Topics
Devi Mahatmyam
Glory of Venkatesha
Shani Mahatmya
Story of Sri Yantra
Rudram Explained
Atharva Sheersha
Sri Suktam
Kathopanishad
Ramayana
Mystique
Mantra Shastra
Bharat Matha
Bhagavatam
Astrology
Temples
Spiritual books
Purana Stories
Festivals
Sages and Saints