गरुड के सौतेले भाई हैं नाग । फिर भी नाग गरुड का भोजन बन गये । जानिए कैसे ...

गरुड देवों को हराकर स्वर्ग से अमृत कुम्भ लेकर आये । यह बताओ , देवता लोगों ने अमृत का पान किया है । फिर भी कैसे हारे ? अमृत अमरत्व प्रदान करता है । ऐसा नहीं कि अमृत पीओगे तो समस्यायें नहीं आएंगी या घायल नहीं होंगे या पराजित नही....

गरुड देवों को हराकर स्वर्ग से अमृत कुम्भ लेकर आये ।
यह बताओ , देवता लोगों ने अमृत का पान किया है । फिर भी कैसे हारे ?
अमृत अमरत्व प्रदान करता है ।
ऐसा नहीं कि अमृत पीओगे तो समस्यायें नहीं आएंगी या घायल नहीं होंगे या पराजित नहीं होंगे ।

अमृत कुम्भ को लिये गरुड उस जगह की ओर गये जहां उनकी मां थी ।
नागों को अमृत सौंपने ताकि मां और बेटा दोनों को गुलामी से छुटकारा मिलें ।
गरुड देवों को भी हरानेवाले हैं ?
तो नागों को यूं ही मारकर गुलामी से बाहर नहीं आ सकते थे ?
नहीं, मां ने वचन दिया है न ?
उसे कैसे तोड सकते हैं ?
बाजी लगायी थी बहन कद्रू के साथ । अगर मैं जीतूंगी तो तू मेरी दासी, अगर मैं हारी तो मैं तेरी दासी ।
ये लोग कभी वचन नहीं तोडते ।
यही उनकी ताकत है ।
वच्न तोडना झूठ बोलने के बराबर है ।
जो झूठ बोलता है वह अंदर से कमजोर होता जाता है ।
झूठ बोलना खुद के जडों को काटने जैसा है ।
अगर सत्य नामक स्थल पर अपने आप को प्रतिष्ठित रखोगे तो जीत और सफलता अपने आप आ जाएंगे ।
पर झूठे व्यक्ति की सफलता चिरकाल तक नहीं रहती ।

क्या गरुड अमृत पीकर अपने आप को अमर नहीं बना सकते थे ?
नहीं करेंगे । क्यों कि वह नागों के लिए है ।
गरुड जब आकाश मार्ग से अमृत लिये जा रहे थे तो श्रीमन्नारायण ने देखा ।
गरुड के साहस को देखकर भगवान भी विस्मित हो गये ।
भगवान ने कहा जो चाहे वर मांगो ।
गरुड ने कहा मैं आपसे भी ऊंचा रहना चाहता हूं ।
भगवान ने गरुड को अपने ध्वज में स्थान दे दिया । चिह्न के रूप में ।
और मुझे अमृत पिये बिना ही अमरत्व और नित्य यौवन प्रदान कीजिये ।
वह भी दे दिया भगवान ने ।
नादान तो हैं ही गरुड ।
बोले भगवान से - आप भी मुझसे वर मांग लो ।
मेरा वाहन बन जाओ ।

इन्द्र देव छोडे नहीं ।
गरुड का पीछा करते आ गये ।
ओर वज्रायुध से गरुड के ऊपर प्रहार किये ।
कुछ नहीं हुआ ।
गरुड ने कहा - मैं उस महर्षि का आदर करता हूं जिनकी हड्डियों से वज्रायुध बना है, मैं आपका भी आदर करता हूं ।
इसलिए वज्रायुध के प्रहार को स्वीकार करके मेरे एक पंख को एक पर को गिरा देता हूं ।
वह पंख इतना खूबसूरत था कि गरुड को उसी से सुपर्ण नाम मिला । पर्ण का अर्थ है पर या पंख ।
सुन्दर पंखोंवाले सुपर्ण ।
इन्द्र देव बोले - मैं आपका दोस्त बनना चाहता हूं । और यह भी देखना चाहता हूं कि आप कितने बलवान हो ।
गरुड बोले - मित्र तो बन जाएंगे , लेकिन अच्छे लोग अपनी शक्ति का दिखावा नहीं करते ।

फिर भी आप मेरे मित्र हो चुके हैं और पूछ रहे हैं तो बताता हूं ।
इस धर्ति के जितने पहाड समुद्र जंगल इन सबको मेरे एक पंख के ऊपर लेकर मैं आकाश में उड सकता हूं ।
इस संपूर्ण विश्व को ही मेरे पीठ पर लेकर मैं उड सकताहूं ।
इन्द्र ने कहा - अगर आप अमृत नहीं पीना चाहते हैं तो वापस दे दीजिए ।
आप जिनको अमृत देने जा रहे हैं वे अच्छे नहीं हैं । उनसे जगत की हानी ही होगी ।
मैं मजबूर हूं । उन्हें मैं ने बोल दिया कि मैं अमृत ला देता हूं । पर मैं ने ऐसा कभी नहीं कहा है कि मैं तुम लोगों को अमृत पिलाऊंगा ।
इसलिए मैं इस कुम्भ को उनके सामने रख दूंगा। आपको जो चाहे कीजिए । मैं आपको नहीं रोकूंगा ।
इन्द्र देव ने कहा - वर मांगिए
सांपों को मेरा भोजन बना दीजिए ।
इस प्रकार सांप गरुड का भोजन बन गये ।
गरुड ने नागों के सामने कुशों के ऊपर अमृत कुम्भ रख दिया ।
अपने वचन को निभाये ।
नाग भी बोले - अब से तुम और तुम्हारी मां दोनों ही स्वतंत्र हो ।
गरुड ने कहा - अमृत बडा पवित्र है, पीने से पहले स्नान तो कर लीजिए ।
जब नाग नहाने गये उस समय इन्द्र देव अमृत को लेकर स्वर्ग चले गये ।
नाग नहाकर आये तो अमृत गायब ।
कुछ तो उन कुशों के ऊपर गिरा होगा सोचकर कुशों को चाटने लगे ।
कुश के तीक्ष्ण कगारों में लगकर उनके जीभ दो भागों में फट गये । तबसे सारे नाग दो जीभवाले हो गये ।
अमृत का स्पर्श होने से कुश भी पवित्र बन गये ।

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