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कंस द्वारा मारे गए देवकी के छः पुत्रों के पिछले जन्मों के बारे में जानें।
ऋषि व्यास श्रीकृष्ण के जन्म का वर्णन कर रहे हैं।
जब जनमेजय ने सुना कि कंस ने कृष्ण के छः भाइयों को मार डाला, तो उन्होंने जानना चाहा कि उनके पिछले जन्मों में इन बच्चों ने ऐसा कौन सा पाप किया होगा कि जन्म होते ही उनकी मृत्यु हो गयी।
पिछले प्रकरण में हमने देखा कि देवर्षि नारद ने कंस को इन बच्चों को भी मारने के लिए उकसाया था।
जब वसुदेव अपने पहले बच्चे को लेकर कंस के पास आए, तो कंस ने उन्हें इसे वापस ले जाने के लिए कहा।
केवल आठवां बच्चा ही कंस के लिए खतरा होगा।
तभी नारद जी आए और उन्होंने कंस से कहा कि वह इस विषय में कोई जोखिम न उठायें।
नारद जी हमेशा देवों के पक्ष में रहते हैं, देवर्षि हैं वे।
फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया?
उन्होंने भगवान कृष्ण के छः भाइयों को कंस द्वारा क्यों मरवाया?
इसके पीछे एक वजह है।
वसुदेव और देवकी के ये छः पुत्र स्वायंभुव मन्वंतर के छः मुनियों के पुनर्जन्म थे।
स्वायंभुव मन्वंतर इस कल्प का सर्वप्रथम मन्वंतर है।
कल्प, ब्रह्मांड के अस्तित्व की अवधि है जो है ४.३२ अरब वर्ष।
यह १४ मन्वंतरों में विभक्त है।
वर्तमान में, हम ७वें मन्वंतर में हैं।
ये ६ मुनि सबसे पहले मन्वंतर के थे।
उन्हें षड्गर्भ कहते थे।
वे सभी मरीची के पुत्र थे।
मरीची ब्रह्मा के १० मानसपुत्रों में से एक हैं।
वे सभी महान विद्वान थे।
एक दिन, षड्गर्भों ने ब्रह्मा जी का किसी बात को लेकर परिहास किया।
ब्रह्मा जी को क्रोध आ गया।
उन्होंने उन्हें कालनेमी नामक एक असुर के पुत्रों के रूप में जन्म लेने के लिए शाप दिया।
इसके बाद उन्होंने फिर से हिरण्यकशिपु के पुत्रों के रूप में जन्म लिया।
लेकिन तब उन्हें एक हल्की सी स्मृति आई कि वे उनके दादा जी के शाप की वजह से असुरों के रूप में जन्म ले रहे थे।
उन्होंने चाहा कि ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके शाप से राहत पाएं।
इसके लिए उन्होंने तपस्या की।
ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहे।
लेकिन वे अभी भी असुर ही थे।
जो असुर मांगते थे वही उन्होंने मांगा।
कोई भी देव, गंधर्व या असुर हमें मार न सके।
ब्रह्मा जी ने उन्हें वह वरदान दिया।
जब उनके पिता, हिरण्यकशिपु ने इस बारे में सुना, तो वह क्रोधित हो गया।
उसके ये असुर पुत्र एक देव को कैसे प्रसन्न कर सकते हैं?
देव असुरों के शत्रु हैं।
अब उन्हें शाप देने की बारी हिरण्यलकशिपु की आई।
उसने षड्गर्भों को पाताल में निर्वासित कर दिया और कहा कि वे वहां सैकड़ों हजारों वर्षों तक सोये पडे रहेंगे।
जब कालनेमी का जन्म कंस के रूप में होगा तब षडगर्भ देवकी के गर्भ से एक - एक करके जन्म लेंगे।
कंस उन सभी को मार देगा और इस प्रकार उन्हें ब्रह्मा के शाप से स्थायी राहत मिलेगी।
नारद जी ने हस्तक्षेप किया जब कंस ने कहा कि उन्हें देवकी के पहले सात पुत्रों में कोई दिलचस्पी नहीं है।
नारद केवल मुनियों की सहायता करने का प्रयत्न कर रहे थे।
यदि कंस उन्हें नहीं मारेंगे, तो वे शाप से कैसे राहत पाएंगे?
हमारे पुराणों की सभी घटनाएं आपस में जुड़ी हुई हैं।
उन्हें अलग-थलग करके नहीं देखना चाहिए।
यदि आप सिर्फ इसको देखेंगे कि नारद जी ने कंस को उन बच्चों को मारने के लिए उकसाया था, तो आप भ्रमित हो जाएंगे।
नारद जी को अक्सर गलत तरीके से, उकसाने वाले के रूप में चित्रित किया जाता है।
यहां और हर घटना में नारद जी भलाई के लिए ही काम करते हैं।
कंस द्वारा मारे गए देवकी के छः पुत्रों के पिछले जन्मों के बारे में जानें। ऋषि व्यास श्रीकृष्ण के जन्म का वर्णन कर रहे हैं। जब जनमेजय ने सुना कि कंस ने कृष्ण के छः भाइयों को मार डाला, तो उन्होंने जानना चाहा कि उनके पिछले ....
कंस द्वारा मारे गए देवकी के छः पुत्रों के पिछले जन्मों के बारे में जानें।
ऋषि व्यास श्रीकृष्ण के जन्म का वर्णन कर रहे हैं।
जब जनमेजय ने सुना कि कंस ने कृष्ण के छः भाइयों को मार डाला, तो उन्होंने जानना चाहा कि उनके पिछले जन्मों में इन बच्चों ने ऐसा कौन सा पाप किया होगा कि जन्म होते ही उनकी मृत्यु हो गयी।
पिछले प्रकरण में हमने देखा कि देवर्षि नारद ने कंस को इन बच्चों को भी मारने के लिए उकसाया था।
जब वसुदेव अपने पहले बच्चे को लेकर कंस के पास आए, तो कंस ने उन्हें इसे वापस ले जाने के लिए कहा।
केवल आठवां बच्चा ही कंस के लिए खतरा होगा।
तभी नारद जी आए और उन्होंने कंस से कहा कि वह इस विषय में कोई जोखिम न उठायें।
नारद जी हमेशा देवों के पक्ष में रहते हैं, देवर्षि हैं वे।
फिर उन्होंने ऐसा क्यों किया?
उन्होंने भगवान कृष्ण के छः भाइयों को कंस द्वारा क्यों मरवाया?
इसके पीछे एक वजह है।
वसुदेव और देवकी के ये छः पुत्र स्वायंभुव मन्वंतर के छः मुनियों के पुनर्जन्म थे।
स्वायंभुव मन्वंतर इस कल्प का सर्वप्रथम मन्वंतर है।
कल्प, ब्रह्मांड के अस्तित्व की अवधि है जो है ४.३२ अरब वर्ष।
यह १४ मन्वंतरों में विभक्त है।
वर्तमान में, हम ७वें मन्वंतर में हैं।
ये ६ मुनि सबसे पहले मन्वंतर के थे।
उन्हें षड्गर्भ कहते थे।
वे सभी मरीची के पुत्र थे।
मरीची ब्रह्मा के १० मानसपुत्रों में से एक हैं।
वे सभी महान विद्वान थे।
एक दिन, षड्गर्भों ने ब्रह्मा जी का किसी बात को लेकर परिहास किया।
ब्रह्मा जी को क्रोध आ गया।
उन्होंने उन्हें कालनेमी नामक एक असुर के पुत्रों के रूप में जन्म लेने के लिए शाप दिया।
इसके बाद उन्होंने फिर से हिरण्यकशिपु के पुत्रों के रूप में जन्म लिया।
लेकिन तब उन्हें एक हल्की सी स्मृति आई कि वे उनके दादा जी के शाप की वजह से असुरों के रूप में जन्म ले रहे थे।
उन्होंने चाहा कि ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके शाप से राहत पाएं।
इसके लिए उन्होंने तपस्या की।
ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहे।
लेकिन वे अभी भी असुर ही थे।
जो असुर मांगते थे वही उन्होंने मांगा।
कोई भी देव, गंधर्व या असुर हमें मार न सके।
ब्रह्मा जी ने उन्हें वह वरदान दिया।
जब उनके पिता, हिरण्यकशिपु ने इस बारे में सुना, तो वह क्रोधित हो गया।
उसके ये असुर पुत्र एक देव को कैसे प्रसन्न कर सकते हैं?
देव असुरों के शत्रु हैं।
अब उन्हें शाप देने की बारी हिरण्यलकशिपु की आई।
उसने षड्गर्भों को पाताल में निर्वासित कर दिया और कहा कि वे वहां सैकड़ों हजारों वर्षों तक सोये पडे रहेंगे।
जब कालनेमी का जन्म कंस के रूप में होगा तब षडगर्भ देवकी के गर्भ से एक - एक करके जन्म लेंगे।
कंस उन सभी को मार देगा और इस प्रकार उन्हें ब्रह्मा के शाप से स्थायी राहत मिलेगी।
नारद जी ने हस्तक्षेप किया जब कंस ने कहा कि उन्हें देवकी के पहले सात पुत्रों में कोई दिलचस्पी नहीं है।
नारद केवल मुनियों की सहायता करने का प्रयत्न कर रहे थे।
यदि कंस उन्हें नहीं मारेंगे, तो वे शाप से कैसे राहत पाएंगे?
हमारे पुराणों की सभी घटनाएं आपस में जुड़ी हुई हैं।
उन्हें अलग-थलग करके नहीं देखना चाहिए।
यदि आप सिर्फ इसको देखेंगे कि नारद जी ने कंस को उन बच्चों को मारने के लिए उकसाया था, तो आप भ्रमित हो जाएंगे।
नारद जी को अक्सर गलत तरीके से, उकसाने वाले के रूप में चित्रित किया जाता है।
यहां और हर घटना में नारद जी भलाई के लिए ही काम करते हैं।
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