जरत्कारु और जरत्कारु का विवाह

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जरत्कात्रु मुनि अपने पूर्वजों से मिले जो नरक में गिरने ही वाले थे । क्योंकि जरत्कारु विवाह नहीं कर रहे थे और अपने वंश को आगे नहीं बढा रहे थे । यही होता है, वंश आगे नहीं बढा तो पुर्वजों को दुर्गति प्राप्त होती है । उन्होंने ज....

जरत्कात्रु मुनि अपने पूर्वजों से मिले जो नरक में गिरने ही वाले थे ।
क्योंकि जरत्कारु विवाह नहीं कर रहे थे और अपने वंश को आगे नहीं बढा रहे थे ।
यही होता है, वंश आगे नहीं बढा तो पुर्वजों को दुर्गति प्राप्त होती है ।
उन्होंने जरत्कारु से कहा कि तुम्हारे तप का पुण्य या हमारे ही तप का पुण्य हमें नहीं बचा सकता ।
विवाह करके वंश को आगे बढाना ही होगा ।
जरत्कारि राजी हो गये ।
लेकिन उन्हें यकीन नहीं था कि जो कुछ हो रहा था वह सच था या नहीं।
कोई मेरे ब्रह्मचर्य और तप को तोड़ने की कोशिश तो नहीं कर रहा है ?
ऐसा भी होता है न ?
नकारात्मक शक्तियां नहीं चाहतीं कि कोई अध्यात्म में आगे बढ़े।
नकारात्मक शक्तियां ही क्यों ?
ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनमें देवराज इंद्र ने स्वयं किसी के तप को रोकने की कोशिश की है।
तो जरत्कारु ने तीन कठिन शर्तें रखीं।
यह सुनिश्चित करने के लिए कि यदि ये सब सच है तो ईश्वरीय शक्ति इन शर्तों को पूर्ण करके भी जरत्कारु के विवाह को संपन्न करेगी ।

पहली शर्त वधू का भी मेरा ही नाम होना चाहिए - जरत्कारु ।
जरत्कारु का अर्थ है कमजोर शरीर वाला या वाली ।
कौन अपनी बेटी को ऐसा नाम रखेगा ?
ऋषिमुनियों के लिए ठीक है, उनका नाम उनके स्वभाव के अनुसार ही रखा जाता है।
जैसे दुर्वासा क्यों कि वे मलिन कपडे पहनते हैं ।
लेकिन लड़कियों के लिए नहीं। लड़कियों के हमेशा शुभ नाम ही होते हैं।
दूसरी शर्त - वधू मेरे पास भिक्षा के रूप में आना चाहिए ।
कौन माता-पिता अपनी बेटी को भिक्षा के रूप में दे देंगे ?
तीसरी - मैं उसकी देखभाल नहीं करूंगा ।
विवाह के बाद भी मुनि अपनी पत्नी की दैनिक जरूरतों के लिए भी जिम्मेदार नहीं होंगे ।
लेकिन जैसा कि हमने देखा, वासुकी के पास अपनी बहन की शादी जरत्कारु मुनि से कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
जो पुत्र उनसे पैदा होगा, वही नागवंश को विनाश से बचा पाएगा ।
वासुकी ने अपने लोगों को जरत्कारु मुनि की तलाश के लिए चारों ओर भेजा था।
जरत्कारू ने अपने पूर्वजों को जो वचन दिया था, उसके अनुसार हर दिन तीन बार चिल्लाकर पूछते थे क्या कोई मुझे भिक्षा में वधू देने के लिए तैयार है ?
ऐसा नहीं है कि उन्हें अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए वास्तविक चिंता नहीं थी।
दूतों ने आकर वासुकी को बताया कि उन्हें जरतकारु मिल गया है।
तो एक बार जब जरत्कारु जंगल में थे और वधू के लिए पूछ रहे थे तो वासुकी ने आकर कहा - मैं अपनी बहन को भिक्षा के रूप में देने के लिए तैयार हूं ।
जरत्कारु ने उससे पूछा आपकी बहन का नाम क्या है?
उसका नाम जरत्कारु है ।
मैं उसकी देखभाल नहीं करूंगा ।
कोई बात नहीं, हम करेंगे ।
आप नागलोक में रहिए और हम आपका भी ख्याल रखेंगे ।
मुनि ने एक और शर्त रखी
यदि वह कभी मुझे जरा भी ठेस पहुँचाती है, तो मैं चला जाऊँगा।
वासुकी सहमत हो गए और विवाह उचित वैदिक विधि से संपन्न हुआ।
दंपति नागलोक में एक महल में रहने लगे।
जरत्कारु ने गर्भ धारण किया।
एक दिन दोपहर में मुनि विश्राम कर रहे थे ।
जरत्कारु की गोद में सिर रखकर सो रहे थे ।
सूरज ढलने वाला था।
जरत्कारु चिंता करने लगी ।
मुनि के शाम का सन्ध्या वन्दन चूक जानेवाला है ।
वह दुविधा में पड गयी ।
अगर वह उन्हें जगाती है तो गुस्सा करेंगे ।
अगर वह उन्हें नहीं जगाती है, तो वे उस पर नाराज हो जाएंगे कि वह शाम सन्ध्या वन्दन चूक गया।
लेकिन फिर उसने सोचा सन्ध्या वन्दन का चूक जाना गंभीर है और इसके लंबे समय तक चलने वाले परिणाम हो सकते हैं ।
जरत्कारु ने मुनि को जगाने का फैसला किया ।
और मुनि से कहा कि सूरज ढलने वाला है और मुझे लगा कि आपका सन्ध्या वन्दन चूक जाएगा ।
मुनि ने कहा, आपने मेरा अपमान किया है।
क्या तुम्हें लगता है कि जब मैं सोया हुआ हूँ, सूरज ढलने का साहस करेगा ?
मैं अब तुम्हारे साथ नहीं रहूंगा। मैं जा रहा हूँ।
जरत्कारु ने उनसे प्रार्थना की ।
मेरा आपके साथ विवाह का एकमात्र उद्देश्य यह है कि मैं आपसे गर्भ धारण करूँ और हमारा बेटा नागवंश को विनाश से बचाएगा ।
मुझे यह भी पता नहीं है कि मैं गर्भवती हूं या नहीं।
मुनि ने कहा।
अस्त्ययं सुभगे गर्भस्तव वैश्वानरोपमः
ऋषिः परमधर्मात्मा वेदवेदाङ्गपारगः
आप गर्भवती हैं ।
और आपका एक पुत्र होगा जो अग्नि के समान तेजस्वी परम धर्मात्मा और वेद-वेदांगों का विद्वान होगा।
मुनि ने जो अस्त्ययं शब्द का प्रयोग किया उसी से उस बच्चे का नाम आस्तीक रखा गया ।
मुनि के चले जाने के बाद, जरत्कारु अपने भाई के पास वापस चली गई, और एक पुत्र को जन्म दिया।
जैसा कि मुनि ने बताया था, आस्तीक नागलोक में वेदों और वेदांगों के एक प्रतिभाशाली विद्वान के रूप में पले-बढ़े।
सभी नागों ने राहत और खुशी महसूस की कि आखिर उनका उद्धारकर्ता आ ही गया ।

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