इस प्रवचन से जानिए गीता के आगे भगवत् शब्द क्यों जोडा गया।
नैमिषारण्य गोमती नदी के बाएं तट पर है ।
हम यह देख रहे थे कि गीता शास्त्र का सब से पहला उपदेश कब हुआ। देव युग में। इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्। विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् देव युग में भगवान ने गीता का उपदेश विवस्वान को द....
हम यह देख रहे थे कि गीता शास्त्र का सब से पहला उपदेश कब हुआ।
देव युग में।
इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान् मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्
देव युग में भगवान ने गीता का उपदेश विवस्वान को दिया।
विवस्वान ने मनु को और मनु ने इक्ष्वाकु को।
देव युग में हमारी संस्कृति और सभ्यता उच्च कोटि में थी।
जब गीता का पुनः उपदेश हुआ तो हम काफी गिर चुके थे।
देव युग में धरती देव-त्रिलोक और असुर-त्रिलोक इस प्रकार से विभक्त था।
चीन समुद्र से महीसागर तक व्याप्त भारतवर्ष, मध्य एशिया, और रूस इस प्रकार से देव-त्रिलोक।
जिस में यूरोप के कुछ भाग भी शामिल थे।
यूरोप के शेष भाग, अफ्रिका और अमरीका इस प्रकार से असुर-त्रिलोक।
देव युग के प्रारंभ में ब्रह्मदेव ने बाकी सारे मतों का निराकरण करके ब्रहवाद को स्थापित किया।
प्रजातंत्र को हटाकर राजतंत्र को स्थापित किया
कजाकिस्तान में बालखश झील है।
इस के पास वेदी बनाकर देव यज्ञ करते थे।
यह झील उस समय की सरस्वती नदी थी।
यज्ञ की समाप्ति पर इसी सरस्वती में भूदेव अवभृत-स्नान करते थे।
वास्तु में हम ईशान कोण को देवों का स्थान मानते हैं।
भारतवर्ष से देखा जाएं तो ये सब इलाके मध्य एशिया, रुस- ये सब इलाके ईशान में हैं।
ईश से ही एशिया नाम पडा।
उस युग में भारतवर्ष के मानव देवेन्द्र द्वारा सुरक्षित वैदिक धर्म का ही आचरण करते थे।
अश्विनी कुमार स्वास्थ्य और चिकित्सा की देखभाल करते थे।
भरद्वाज, अंगिरा, वसिष्ठ जैसे महर्षियों की अध्यक्षता में विश्व विद्यालय हुआ करते थे।
वैज्ञानिक शोध एवं विकास काफी प्रबल था।
विमानों का आविष्कार हुआ।
सुव्यवस्थित सेना और रणनीति।
निगम और आगम इस प्रकार से विद्या विभक्त हुई।
स्वयंभू ब्रह्मा जी ने सुमेरु पर्वत को अपना वास स्थान बनाया जिसे अब पामीर पर्वत कहते हैं।
इसी युग मेम सूर्य और चंद्र वंशों की प्रवृत्ति हुई।
जिस योग का उपदेश भगवान ने विवस्वान को दिया था व्ह लुप्त होकर फिर से प्रकट हुआ कुरुक्षेत्र में।
भगवान के मुंह से गीता का तत्त्व प्रकट हुआ जिसे व्यास जी ने छन्दोबद्ध किया, श्लोकों के रूप में।
भगवान को ही गीता के मूल रचयिता कह सकते हैं।
तो सिर्फ गीत को भगवद्गीता कहते हैं, रामायण को भगवद्रामायण क्यों नहीं कहते?
महाभारत को भगवद्महाभारत क्यों नहीं कहते?
ब्रह्मपुराण को भगवद्ब्रह्मपुराण क्यों नहीं कहते?
यह जानने भगवान शब्द के अर्थ को समझते हैं?
ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य - इन छः गुणों को भग कहते हैं।
जिस में भग है वह है भगवान।
पर ये गुण तो व्यास जी में भी हैं।
वाल्मीकि में भी हैं।
हैं, पर पूर्ण रूप से नहीं।
१००% नहीं।
१००% तो सिर्फ श्री कृष्ण में हैं ये गुण।
कृष्णस्तु भगवान स्वयं - कहता है श्रीमद्भागवत
श्रीकृष्ण में सोलह कलाओं में से सोलह कलाएं हैं।
श्रीराम में बारह कलाएं हैं।
तो क्या श्रीराम जी में वह पूर्णता नहीं है जो श्रीकृष्ण में है
गलत मत सोचिए।
श्रीकृष्ण चन्द्रवंशी हैं - चन्द्रमा की सोलह कलाएं हैं।
राम जी सूर्यवंशी हैं - सूर्य की बारह कलाएं हैं।
श्रीराम जी भी पुर्ण रूप से भगवान हैं।
अब भग शब्द आ गया है तो आगे उन छः गुणों के बारे में थोडा विस्तार से देखते हैं।
Please wait while the audio list loads..
Ganapathy
Shiva
Hanuman
Devi
Vishnu Sahasranama
Mahabharatam
Practical Wisdom
Yoga Vasishta
Vedas
Rituals
Rare Topics
Devi Mahatmyam
Glory of Venkatesha
Shani Mahatmya
Story of Sri Yantra
Rudram Explained
Atharva Sheersha
Sri Suktam
Kathopanishad
Ramayana
Mystique
Mantra Shastra
Bharat Matha
Bhagavatam
Astrology
Temples
Spiritual books
Purana Stories
Festivals
Sages and Saints