इससे पहले के श्लोकों में - यस्याऽवतारो भूतानां क्षेमाय च भवाय च … इसमें भगवान क्यों अवतार लेते हैं - इसकी महत्ता है। अगले श्लोक में - प्रथम स्कन्ध प्रथम अध्याय चौदहवां श्लोक, इसमें भगवन्नाma की महत्ता है - यन्नाम विवशो गृण....
इससे पहले के श्लोकों में -
यस्याऽवतारो भूतानां क्षेमाय च भवाय च …
इसमें भगवान क्यों अवतार लेते हैं - इसकी महत्ता है।
अगले श्लोक में - प्रथम स्कन्ध प्रथम अध्याय चौदहवां श्लोक, इसमें भगवन्नाma की महत्ता है -
यन्नाम विवशो गृणन् …
अगले श्लोक में -
यत्पादसंश्रयाः सूत …
भगवान की चरण सेवा की महत्ता है।
अब ऋषि जन सूतजी से पूछ्ते हैं, यह छः सवालों में तीसरे सवाल का ही भाग है -
पहला सवाल क्या था ?
सबसे श्रेष्ठ लक्ष्य क्या है ?
दूसरा सवाल क्या था ?
इसे पाने साधन क्या है ?
तीसरा सवाल क्या है ?
भगवान के अवतार के बारे में ।
भगवान देवकी के गर्भ में अब क्यों जनम लिया है ?
अगला श्लोक -
को वा भगवतस्तस्य पुण्यश्लोकेड्यकर्मणः।
शुद्धिकामो न शृणुयाद्यशः कलिमलापहम् ॥
ऋषि मुनियों को श्रवण की महिमा पता है ।
उन्होंने सुनकर ही भगवान के बारे में बहुत कुछ जाना है ।
पढ़कर नहीं ।
क्यों कि अगर आपका लक्ष्य आत्मशुद्धि है तो यह श्रवण से ही पायी जा सकती है ।
जो हम पढते हैं वह मस्तिष्क मे स्मृति के रूप में जमा हो जाता है, संचित हो जाता है ।
इसे आप कभी भी दोहरा सकते हैं ।
लेकिन अगर आप सुनेंगे भगवान की महिमा के बारे में तभी भगवान कानों से अन्दर घुसकर हृदय में प्रतिष्ठित हो जाएंगे ।
आंखोंवाला रास्ता दिमाग की ओर है, कानोंवाला रास्ता हृदय की ओर है ।
भगवान के हृदय में छा जाने से ही मन, बुद्धि और शरीर शुद्ध हो सकता है ।
पश्चिम के कुछ विद्वानों ने हमारे कुछ धार्मिक ग्रन्थों का अनुवाद किया है।
उन्होंने इससे क्या पाया होगा
वेतन या कोई पुरस्कार या कोई डिग्री।
आध्यात्मिक स्तर पर उन्हें कुछ भी नहीं मिला होगा ।
क्योंकि, उन्होंने सिर्फ पढ़ा है
भक्ति से श्रवण नहीं किया है ।
श्रवण करने से ही भगवान अन्दर आकर पवित्रता लाते हैं ।
पर यह कैसा मल है, कैसी अशुद्धि है जिसे भगवान हटाएंगे?
इसे कहते हैं कलिमल, कलियुग का मल।
कलियुग में छः चीज अशुद्ध हो जाते हैं - देश, काल, कर्त्ता, सामग्रि, मंत्र और कर्म।
मान लीजिए आप एक सुदर्शन हवन करने वाले हैं ।
क्या ऐसा कोई स्थान मिल सकता है जो १०० % पवित्र हो ?
ऐसा कोई समय हो सकता है जो मुहूर्त्त शास्त्र के अनुसार १०० % शुद्ध है ?
हर मुहूर्त्त जिसे हम शुभ मुहूर्त्त कहते हैं ज्यादा से ज्यादा ७०%, ८०% शुद्ध हो सकता है, १००% नहीं ।
कर्त्ता का शरीर, मन - हवन करते समय भी कर्त्ता का मन भी किन किन विचारों से भरा रहेगा ? - काम क्रोध, लोभ।
मंत्र भी दूषित हो जाते हैं - गलत उच्चार से, मंत्राक्षरों में त्रुटि होने से ।
सामग्री - हर पूजा द्रव्य के लिए परिमाण है, संग्रह करने का समय है - क्या हम इतना ध्यान दे पाते हैं ?
कर्म - हवन करने की विधि - अग्नि में कहां आहुति डालनी चाहिए, स्वाहा उच्चार कब करना चाहिए - सबके लिए नियम हैं ?
क्या हम इतना ध्यान दे पाते हैं ?
कलियुग में देश, काल, कर्त्ता, द्रव्य, मंत्र और कर्म ये सारे दूषित हो जाते हैं ।
अन्दर से काम क्रोध लोभ मोह मद मात्सर्य इन छः श्त्रुओं की वजह से अन्दर भी अशुद्धि है , मन में भी अशुद्धि है।
इसके निवारण के लिए एक मात्र मार्ग है भगवान को अन्दर लाना ।
अन्दर शुद्धि आने से बाहर के क्रियाकलापों में भी शुद्धि आ जाएगी ।
कलियुग में दो प्रकार के लोग हैं ।
एक वर्ग ऐसा जिनमें असुरांश ज्यादा है ।
वे कभी पवित्रता या भगवान के बारे में सोचेंगे ही नहीं ।
उन्हें भूल जाइए ।
अध्यात्म उनके लिए है जो पवित्रता चाहते हैं ।
भगवान का साक्षात्कार चाहते हैं ।
ऐसे लोगों को कलि देवता के प्रभाव से कैसे बचाएं ?
कलि पापों को करने प्रेरित करता ही रहेगा ।
पाप कर्म और पुण्य कर्म दोनों ही बांधने वाले हैं ।
पर पुण्य को करने वाला अगर एक शांत झील के ऊपर बह रहा है तो पाप करने वाला एक दलदल में फसा हुआ रहता है ।
उसे सिर्फ भगवान ही बचा सकते हैं ।
उनकी कृपा ही बचा सकती है ।
झील में से बाहर निकलना इतना कठिन नहीं है ।
दलदल जैसा कठिन नहीं है ।
उस दलदल में फस जाने से लोगों को कैसे बचाया जायें ?
यही सवाल है ।
कलियुग के लिए विशेष रूप से निर्मित ऐसा कोई साधन या उपाय है क्या ?
यही सवाल है ।
Please wait while the audio list loads..
Ganapathy
Shiva
Hanuman
Devi
Vishnu Sahasranama
Mahabharatam
Practical Wisdom
Yoga Vasishta
Vedas
Rituals
Rare Topics
Devi Mahatmyam
Glory of Venkatesha
Shani Mahatmya
Story of Sri Yantra
Rudram Explained
Atharva Sheersha
Sri Suktam
Kathopanishad
Ramayana
Mystique
Mantra Shastra
Bharat Matha
Bhagavatam
Astrology
Temples
Spiritual books
Purana Stories
Festivals
Sages and Saints