कृष्णावतार की कुछ विशेषताएं

नैमिषारण्य में ऋषियों ने सूतजी से छः सवाल पूछे थे । उनमें से तीन हम देख चुके हैं । सबसे श्रेष्ठ लक्ष्य क्या है? इसे कैसे पाया जाएं? भगवान ने देवकी और वसुदेव का पुत्र बनकर अवतार क्यों लिया है? अब चौथा सवाल - तस्य कर्....


नैमिषारण्य में ऋषियों ने सूतजी से छः सवाल पूछे थे ।
उनमें से तीन हम देख चुके हैं ।
सबसे श्रेष्ठ लक्ष्य क्या है?
इसे कैसे पाया जाएं?
भगवान ने देवकी और वसुदेव का पुत्र बनकर अवतार क्यों लिया है?
अब चौथा सवाल -
तस्य कर्माण्युदाराणि परिगीतानि सूरिभिः ।
ब्रूहि नः श्रद्दधानानां लीलया दधतः कलाः ॥
हमें उनकी लीलाओं के बारे में बताइए ।
क्या है लीला का अर्थ?
कर्म और लीला एक नहीं है ।
हम जो कार्य करते हैं वह कर्म है, लीला नहीं है ।
भगवान जब करते हैं तो वह लीला है ।
अनायासेन हर्षात्क्रियमाणा चेष्टा लीला ।
अनायास तरीके से खुशी से खेल खेल में जो करते हैं वह है लीला ।
भगवान की करोडों लीलाएं हैं ।
ब्रह्माण्ड के सृजन से लेकर सब कुछ उनकी लीलाएं ही हैं ।
इन लीलाओं से प्रत्यक्ष रूप से और परोक्ष रूप से जगत को लाभ मिला है ।
ऐसा भी नहीं है कि इन अवतारों के बारे में पहले किसी ने न बताया हो ।
नारद जैसे विद्वानों ने पहले भी बताया है ।
पर, हमें तृप्ति नहीं हुई है ।
हमें बार बार सुनने का मन करता है ।
जीभ तृप्त हो सकती है ।
पेट तृप्त हो सकता है ।
पर कान जो भगवान की लीलाओं को सुनने तरस रहे हैं, कभी तृप्त नहीं होते ।
न सिर्फ श्रीकृष्णावतार के बारे में, अन्य अवतारों के बारे में भी हमें सुनना है ।
अथाख्याहि हरेर्धीमन्नवतारकथाः शुभाः ।
लीला विदधतः स्वैरमीश्वरस्यात्ममायया ॥
अवतारों के विषय में चार प्रकार के सवाल हो सकते हैं ।
कोई अवतार कब हुआ ?
उस अवतार का आकार और स्वभाव क्या था ?
अवतार कहां हुआ ?
अवतार किसलिए हुआ ?
इन सवालों का जवाब मिलने से ही श्रोता को बहुत लाभ मिलता है ।
भगवान कैसे अवतार लेते हैं ?
आत्ममायया ।
जब उन्हें अवतार लेने की इच्छा होती है, तब अपनी ही माया शक्ति से अवतार लेते हैं भगवान ।
भगवान को अवतार लेने कोई विवश नहीं कर सकता ।
अवतार लेने भगवान किसी अन्य शक्ति का अश्रय भी नहीं लेते ।
उनकी ही शक्ति है - माया शक्ति ।
ऋषि जन सूतजी को धीमन् कहकर पुकार रहे हैं ।
धी का अर्थ है बुद्धि ।
अवतारों के रहस्य को जानने बुद्धि आवश्यक है ।
बुद्धिमान लोग ही इसे समझ पाएंगे ।
वयं तु न वितृप्याम उत्तमश्लोकविक्रमे ।
यच्छृण्वतां रसज्ञानां स्वादु स्वादु पदे पदे ॥
तीन परिस्थितियों में ही कोई श्रोता लीलाओं के श्रवण से विरत हो सकता है ।
एक - इनसे भी अच्छा और कुछ सुनने को मिले ।
यह तो संभव नहीं है ।
दो - लीलाओं का अभाव ।
या कोई सुनानेवाला नहीं है ।
यह भी संभव नहीं है ।
तीन - दिलचस्पी नहीं आ रही है ।
यह हो सकता है ।
कोई कोई संगीत का आनन्द नहीं ले पाता है ।
क्या कर सकते हैं ?
उनमें वह अभिरुचि नहीं है ।
क्या कर सकते हैं ।
फिर भी गाना एक दो बार सुनकर तो देखॊ ।
तभी तो पता चलेगा न अभिरुचि है कि नहीं है ?
किसी dish का recipe जितना भी रट लो जब तो उसे बनाकर मुंह में रखकर देखोगे नहीं तो उसका स्वाद कैसे पता चलेगा ?
भागवत के बारे में सुने होंगे ।
भागवत को ही सुनो ।
बारे में नहीं ।
तभी तो पता चलेगा अभिरुचि है कि नहीं ।
पर जिनको अभिरुचि है उनकी अभिरुचि हर कदम बढती ही जाती है ।
उनका आनन्द बढता ही जाता है ।
वे कभी तृप्त नहीं होते ।
जैसे जैसे मन से अज्ञान का अन्धकार निकलता जाएगा, अभिरुचि बढती जाएगी, श्रवण में ।
भगवान की लीलाओं को विक्रम कहते हैं ।
ये उनके कर्म हैं ।
उनका कोई वर्णन नहीं, जैसे उनके सौन्दर्य का वर्णन ।
ये कर्म हैं ।

अब बीसवां श्लोक -
कृतवान् किल वीर्याणि सह रामेण केशवः ।
अतिमर्त्यानि भगवान् गूढः कपटमानुषः ॥
सब कुछ सुनना है ।
भगवान ने जो कुछ भी किया सब सुनना है ।
छ्ल कपट करते हैं भगवान ।
मनुष्य रूप का धारण कपट है ।
मैं मनुष्य हूं दिखाकर धोखा दे रहे हैं, हमें ।
और जो करते हैं वह सब अमानुषी कार्य ।

और बलरामजी के साथ मिलकर साहस करते हैं ।
एक पूर्णावतार और एक आवेशावतार मिलकर साहस करना पहले कभी नहीं हुआ है ।
और इस श्लोक में केशव शब्द को देखिए ।

कश्च ईशश्च केशौ । केशयोर्वं अमृतं यस्मादिति केशवः ।
कः अर्थ है ब्रह्मा ।
ईशः शिव ।
दोनों मिलकर हुए केशौ ।
भगवान इन दोनों के लिए अमृत के समान है ।
वं अमृत का बीजाक्षर है ।
श्रीकृष्णावतार में भगवान ने ब्रह्मा और शंकर को आनन्द ही दिया है ।
नृसिंहावतार में ब्रह्मा के भक्त हिरण्यकशिपु को मारा ।
रामावतार में शिव के भक्त रावण को मारा ।
पर श्रीकृष्णावतार में उन दोनों को आनन्द ही दिया ।

तो यही है पांचवां सवाल - भगवान ने क्या क्या किया अवतार लेकर ?

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