अभिमन्यु

Abhimanyu

 

अर्जुन और सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु महाभारत के सबसे प्रसिद्ध पात्रों में से एक हैं।

 

अभिमन्यु का जन्म

पांडवों को आधा राज्य मिल गया था। वे इन्द्रप्रस्थ में बस गए थे। 

अर्जुन एक तीर्थ यात्रा पर गए। कृष्ण उनके मित्र थे। वे सोमनाथ में कृष्ण से मिले। कृष्ण अर्जुन को द्वारका ले गए। द्वारका में अर्जुन का बहुत सम्मान और देखभाल की गई।

वहां उन्होंने कृष्ण की बहन सुभद्रा को देखा और उसकी ओर आकर्षित हुए। उन्होंने कृष्ण से उससे विवाह करने की इच्छा प्रकट की।

उन दिनों, क्षत्रियों में विवाह के लिए स्वयंवर व्यापक रूप से प्रचलित था। लेकिन कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि उन्हें इस बात का पूरा यकीन नहीं है कि सुभद्रा स्वयंवर के दौरान सही चुनाव करेगी या नहीं।

धर्म-शास्त्र के अनुसार क्षत्रियों के लिए विवाह का एक अन्य तरीका वधू का अपहरण था। कृष्ण ने अर्जुन को सुभद्रा का अपहरण करने और उसे इंद्रप्रस्थ ले जाने के लिए कहा।

तदनुसार, अर्जुन ने रैवतक पर्वत से सुभद्रा का अपहरण कर लिया, जहां सुभद्रा पूजा करने के लिए गई थी।

सुभद्रा के लिए भी यह पहली नजर का प्यार था।

हालाँकि यादवों को शुरू में गुस्सा आया, लेकिन कृष्ण ने उन्हें मना लिया और उन्होंने सुलह कर ली। सब कुछ सामान्य हो गया।

बाद में, सुभद्रा ने इंद्रप्रस्थ में अभिमन्यु को जन्म दिया। 

 

अभिमन्यु का बाल्य

अभिमन्यु कृष्ण के प्रिय बन गए।

उन्होंने वेदों का अध्ययन किया।

अभिमन्यु ने अपने पिता से धनुर्वेद के चार पाद सीखे।

धनुर्वेद में चार पद या चार प्रकार के बाण पाए जाते हैं।

मन्त्रमुक्तं पाणिमुक्तं मुक्तामुक्तं तथैव च।

अमुक्तं च धनुर्वेदे चतुष्पाच्छस्त्रमीरितम्॥

  • मंत्रमुक्त - मंत्रों के जाप से तीर चलाना। उन्हें वापस नहीं लिया जा सकता।
  • अमुक्त - तीर को प्रत्यक्ष रूप से नहीं चलाते। उनकी उपस्थिति मात्र से शत्रु भाग जाते हैं।
  • मुक्तामुक्त - मंत्रों की सहायता से तीर चलाए जाते हैं और वापस ले लिए जाते हैं।
  • पाणिमुक्त - धनुष से तीर चलाना।

उसके बाद उन्होंने धनुर्वेद के दस अंग सीखे।

आदानमथ संधानं मोक्षणं विनिवर्तनम्।

स्थानं मुष्टिः प्रयोगश्च प्रायश्चित्तानि मण्डलम्।

रहस्यं चेति दशधा धनुर्वेदाङ्गमिष्यते॥

  • आदान - तरकश से तीर निकालना।
  • संधान - धनुष पर तीर चढाना।
  • मोक्षण - लक्ष्य की ओर तीर चलाना।
  • विनिवर्तन - तीर चलाने के बाद यदि यह पता चले कि विरोधी कमजोर है या शस्त्रविहीन है, तो मन्त्र शक्ति से बाण को वापिस बुलाना।
  • स्थान - धनुष और प्रत्यंचा के सटीक केंद्र की पहचान करना।
  • मुष्टि - तीन अंगुलियों को एक साथ पकड़ने की तरीका।
  • प्रयोग - तीर को पकड़ने के लिए दो अंगुलियों का उपयोग करना।
  • प्रायश्चित्त - प्रत्यंचा के पीछे आने से स्वयं की रक्षा करना।
  • मंडल - एक चलती लक्ष्य को मारना।
  • रहस्य - किसी लक्ष्य को केवल उसकी ध्वनि की सहायता से मारना।

फिर उन्होंने तलवार जैसे आयुध और दिव्यास्त्रों का प्रयोग सीखा। अभिमन्यु ने हथियार बनाने का विज्ञान भी सीखा। 

उनका प्रशिक्षण पूरा होने पर, अर्जुन खुश हो गए कि उनका पुत्र अपने बराबर हो गया है।

 

अभिमन्यु के गुण

  • अजेय
  • बैल की तरह चौड़े कंधे
  • सर्प के फन की तरह चौड़ा चेहरा
  • शेर की तरह गर्व
  • मदगज की तरह वीरता
  • गड़गड़ाहट की तरह आवाज
  • पूर्णिमा की तरह चेहरा
  • साहस, वीरता और शारीरिक सुंदरता में कृष्ण के समान

 

विवाह

बारह वर्षों के वनवास के बाद, पांडवों ने राजा विराट के महल में एक वर्ष का अज्ञातवास बिताया। उत्तरा राजा विराट की पुत्री थी। हिजड़े के वेश में अर्जुन ने उसे नृत्य और संगीत सिखाया। 

अज्ञातवास के अंत में, जब पांडवों की पहचान ज्ञात हुई, तो राजा ने अर्जुन से उत्तरा से विवाह करने का अनुरोध किया। अर्जुन ने यह कहते हुए मना कर दिया कि शिक्षक का स्थान पिता के समान होता है।

इसके बजाय, अर्जुन उसे अपनी बहू के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार हो गए। इस प्रकार अभिमन्यु और उत्तरा का विवाह कृष्ण और अन्य रिश्तेदारों की उपस्थिति में हुआ।

वैवाहिक जीवन भले ही छह महीने ही चले हो, लेकिन वे एक-दूसरे के प्रति प्रेम से बद्ध थे।

जब अभिमन्यु की मृत्यु हुई, उत्तरा कुरु वंश के एकमात्र उत्तराधिकारी परीक्षित को गर्भ में धारण की हुई थी।

 

कुरुक्षेत्र युद्ध में अभिमन्यु

युद्ध से पहले, यह निर्णय लिया गया कि अभिमन्यु कोसल राजा बृहद्बल और दुर्योधन के पुत्र को संभालेंगे। 

 

दिन १

अभिमन्यु ने पहले दिन ही बहद्बल का सामना किया, जो उनके प्रमुख लक्ष्यों में से एक था। कोसल के राजा बृहद्बल भगवान राम के वंशज थे। 

विरोधाभास देखिए,  भगवान राम के वंशज जो एक बार भी धर्म से विचलित नहीं हुए, अब कौरवों के सहयोगी बने। 

बृहद्बल अभिमन्यु के झंडे को काटने में सफल रहा। अभिमन्यु ने जवाबी कार्रवाई में बृहद्बल के रक्षकों और सारथी को मार डाला, उसके झंडे को काट दिया, और बृहद्बल को नौ बाणों से घायल कर दिया।

कौरव सेना का नेतृत्व भीष्माचार्य आगे से कर रहे थे। वे पांडवों का संहार तांडव कर रहे थे। अभिमन्यु ने भीष्माचार्य पर आक्रमण किया। शल्य और कृतवर्मा जैसे महारथियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की। वे विफल रहें। अभिमन्यु ने भीष्माचार्य को नौ बाणों से घायल कर दिया और उनका झंडा भी काट डाला। भीष्माचार्य को अभिमन्यु से अपनी रक्षा के लिए दैवीय हथियारों का सहारा लेना पड़ा।

 

दिन २

अभिमन्यु ने दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण पर हमला किया। अपने पुत्र को अभिमन्यु से बचाने के लिए दुर्योधन को स्वयं आना पड़ा।

 

दिन ४

अर्जुन ने भीष्माचार्य पर आक्रमण किया। दुर्योधन, कृपाचार्य, शल्य, विविंशति और सोमदत्त भीष्माचार्य की रक्षा के लिए आए। अभिमन्यु अपने पिता के साथ शामिल हो गए। ऐसा लग रहा था जैसे दो अर्जुन एक साथ लड़ रहे हों। थोड़े ही समय में, उन दोनों ने मिलकर १०,००० शत्रु सैनिकों को मार गिराया।

अभिमन्यु ने मगध के हाथियों को भीम पर आक्रमण करते हुए देखा। उन्होंने मुख्य हाथी पर बाण चलाकर और उसे मारकर अपने चाचा को सावधान कर दिया। भीम ने बाकी हाथियों को मार डाला।

 

दिन ५

अभिमन्यु ने भीष्माचार्य, द्रोणाचार्य और शल्य से युद्ध किया। ५वें दिन अभिमन्यु ने ही सबसे अधिक कौरव सैनिकों का वध किया था।

अभिमन्यु और लक्ष्मण के बीच फिर युद्ध हुआ। अभिमन्यु के बाण से लक्ष्मण गंभीर रूप से घायल हो गया। शल्य को उसे बचाना पडा।

 

दिन ६

कौरव सेना के बीच में भीम और धृष्टद्युम्न अकेले हो गए। भीम वहाँ अकेले गए थे और धृष्टद्युम्न भी उनके साथ जुड गए। यह देखकर युधिष्ठिर ने अभिमन्यु को उनकी मदद के लिए भेजा। अभिमन्यु सुई की तरह दिखने वाली व्यूह बनाकर दुश्मनों के बीच घुस गये।

द्रोणाचार्य को धृष्टद्युम्न के घोड़ों को मारते हुए और उनके रथ को तोड़ते हुए देखकर अभिमन्यु ने उन्हें बचाया और उन्हें अपने रथ में ले लिया।

छठे दिन अभिमन्यु और विकर्ण के बीच भीषण युद्ध हुआ।

 

दिन ७

अभिमन्यु ने दुश्शासन, विकर्ण और चित्रसेन को एक साथ आगे बढने से रोक दिया। तीनों कौरव भाइयों ने एक साथ अभिमन्यु पर हमला किया। अभिमन्यु ने उनके धनुष तोडे, और उनके सारथी और घोड़ों को मार दिया। अभिमन्यु ने उनकी जान न ली क्योंकि प्रतिज्ञा के अनुसार भीम के द्वारा ही सारे कौरवों की मृत्यु होनी थी।

७वें दिन भी अभिमन्यु ने भीष्म का सामना किया और उनकी गति रोक दी।

 

दिन ९

९वें दिन, जब अभिमन्यु ने कौरव सेना पर आक्रमण किया, तो उनके पास भागकर अपनी जान बचाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। 

अभिमन्यु युद्ध के मैदान पर राज कर रहे थे। उन्होंने द्रोणाचार्य और कृपाचार्य को पीछे धकेल दिया जिन्होंने उन पर एक साथ हमला किया था। अश्वत्थामा और जयद्रथ उनके पास भी नहीं पहुंच सके। 

कौरव पक्ष का राक्षस अलंबुष आया। वह अदृश्य होकर लड़ने लगा। उसने पांडव सेना के चारों ओर अंधेरा उत्पन्न किया, जिससे वे कुछ देख नहीं पा रहे थे। अभिमन्यु ने दिव्यास्त्र से अंधकार को दूर किया।

अभिमन्यु ने अलंबुष की जादुई शक्ति को नष्ट कर दिया। वह दृश्यमान हो गया। पांडव राजकुमारों ने उस पर हमला किया। उसे भागना पड़ा।

अभिमन्यु और अर्जुन ने मिलकर भीष्माचार्य पर हमला किया। धृतराष्ट्र के आधे पुत्रों को भीष्माचार्य को उनसे बचाने के लिए आना पड़ा।

९वीं रात को, पांडव भीष्माचार्य के पास गए। उस समय, भीष्मचार्य ने अर्जुन से कहा: तुम्हारा पुत्र अभिमन्यु, एक चमत्कार है। मुझे कभी-कभी लगता है, वह तुमसे भी बढकर है। तुम एक भाग्यशाली पिता हो।

 

दिन १०

अभिमन्यु और धृष्टद्युम्न ने मिलकर भीष्माचार्य पर हमला किया था। इसी दिन भीष्माचार्य का पतन हुआ।

 

दिन ११

कौरवों ने इस दिन शकट-व्यूह बनाया था। अभिमन्यु ने इसे आसानी से तोड़ा और ऐसा करते हुए सौ सैनिकों को मार डाला।

जयद्रथ को अपनी जान बचाने के लिए अभिमन्यु से भागना पड़ा।

शल्य ने अभिमन्यु पर आग की लपटों वाला तीर चलाया। उन्होंने उसे अपने हाथ से पकड़ लिया और शल्य के ऊपर ही चलाया। तीर ने शल्य के घोड़ों और सारथी को मार डाला।

शल्य ने अपने गदा से अभिमन्यु पर हमला किया, लेकिन भीम ने उसे रोक लिया। 

 

दिन १२

भगदत्त के पास पर्वत के समान विशाल और मृत्यु के समान भयंकर हाथी था। हाथी के हमले से बचने के लिए भीम को भी उसीके पेट के नीचे छिपना पड़ा। इस हाथी ने अभिमन्यु के रथ को नष्ट कर दिया।

 

दिन १३

यही अभिमन्यु के लिए प्राणहर दिन था जिस दिन वे अर्जुन और यहां तक कि भगवान कृष्ण के समान प्रसिद्ध हो गए।

द्रोणाचार्य के कौरव सेना के सेनापति बनने के बाद यह तीसरा दिन था। उन्होंने भयानक चक्र-व्यूह के गठन का आदेश दिया।

चक्रव्यूह की विशेषताएं

  • यह एक चक्र या कमल जैसा दिखता था।
  • इसके केंद्र में दुर्योधन था।
  • चक्रव्यूह के अंदर कौरव पक्ष के सभी वीर राजा और योद्धा मौजूद थे।
  • उसके आरों के स्थान पर राजकुमारों की पंक्तियाँ खड़ी थीं।
  • उन सब ने शपथ ली थी, कि लड़ने से पीछे न हटेंगे।
  • सभी रथों के झंडे लाल रंग के थे। सभी ने लाल वस्त्र और आभूषण पहने थे।
  • द्रोणाचार्य बाहर से चक्रव्यूह की रक्षा करते थे। द्रोणाचार्य के प्रतिरोध को तोडकर ही चक्रव्यूह के पास जा सकते थे।
  • चक्रव्यूह पांडव सेना की ओर बढ़ा, उसके रास्ते में आने वाली हर चीज का विनाश करते हुए।



पांडवों ने क्या किया?

भीम पांडव सेना के सबसे आगे थे। युधिष्ठिर, नकुल, सहदेव, घटोत्कच और बाकी महारथी हजारों सैनिकों को व्यूह की ओर ले गये। लेकिन वे द्रोणाचार्य को पार कर नहीं जा सके। जैसे ही व्यूह उनकी ओर बढ़ा, हजारों पांडव सैनिकों ने अपनी जान गंवा दी।

केवल चार लोग ही चक्रव्यूह को तोड़ना जानते थे।

कृष्ण और उनके पुत्र प्रद्युम्न।

अर्जुन और उनके पुत्र अभिमन्यु।

माधवाचार्य के अनुसार, भीम भी विष्णु मंत्र की सहायता से चक्र-व्यूह को तोड सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं करने का फैसला किया।

 

अर्जुन कहाँ थे?

अर्जुन संशप्तक नामक भयानक सैनिकों से लड़ रहे थे जिन्हें त्रिगर्तों ने उन्हें मारने के लिए लगाया था। यह अर्जुन और कृष्ण को चक्रव्यूह से दूर रखने के लिए कौरवों का एक षड्यंत्र था।

युधिष्ठिर ने अभिमन्यु से कहा कि आगे बढ़ो और चक्रव्यूह में प्रवेश करो।

अभिमन्यु बहुत ही जोश में आ गये।

लेकिन उन्होंने कहा - मैं केवल अंदर घुसना जानता हूं। मुझे नहीं पता कि कैसे बाहर आना है।

युधिष्ठिर ने कहा - चिंता मत करो। हम सब तुम्हारे ठीक पीछे हैं। तुम्हें केवल इसे एक बार तोडना है। हम तुम्हारे पीछे पीछे तुरंत अंदर आ जाएंगे।

 

अभिमन्यु ने चक्रव्यूह को कैसे तोड़ा?

अभिमन्यु चक्रव्यूह की परिधि में कमजोर स्थानों को जानते थे। उन्होंने सीधे आक्रमण किया। 

उनके सारथी ने अभिमन्यु को चेतावनी दी - कृपया इसके बारे में एक बार और सोच लीजीए। यह दुर्जेय द्रोणाचार्य हैं जो आगे हैं।

अभिमन्यु ने कहा - द्रोणाचार्य को छोडो, ऐरावत पर बैठे इंद्र या रुद्र भी आज मुझे नहीं रोक पाएंगे। यह पूरी कौरव सेना मेरी शक्ति का सिर्फ सोलहवां हिस्सा है।

द्रोणाचार्य ने अभिमन्यु को रोकने की दो घटी तक कोशिश की लेकिन विफल हो गये। अभिमन्यु चक्रव्यूह को तोडकर उसके अंदर घुस गये।

पर जयद्रथ ने तुरंत इसे फिर से बंद कर दिया। पांडव अंदर नहीं जा सके, अभिमन्यु अकेला रह गया।

 

जयद्रथ क्यों इसे कर पाया?

उसे भगवान शिव से वरदान मिला था कि यदि अर्जुन और कृष्ण पास नहीं हैं , तो वह अकेले बाकी पांडवों को रोक पाएगा।

 

चक्रव्यूह के अंदर क्या हुआ?

  • कौरव सेना के दिग्गजों ने अभिमन्यु को चारों तरफ से घेर लिया।
  • अभिमन्यु ने वृषसेन के घोड़ों को घायल कर दिया और उसका धनुष काट दिया। वृषसेन ने अभिमन्यु के घोड़ों पर हमला किया। उनके सारथी ने रथ को दूर भगा दिया।
  • जल्द ही, अभिमन्यु वापस आये और वसातीय को मार डाला जिसने उन पर हमला किया था।
  • कौरव पक्ष के योद्धाओं ने फिर से अभिमन्यु को घेर लिया।
  • अभिमन्यु ने उन्हें सैकड़ों की संख्या में मारना शुरू कर दिया। कटे हुए सिर और अंग चारों ओर बिखरे हुए देखे गए।
  • अभिमन्यु ने कौरवों के सहयोगी कई राजाओं को मार डाला।
  • जिस प्रकार वे चक्रव्यूह के केंद्र में धधक रहे थे, किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि वे आंखें उठाकर उनकी ओर देखें।
  • अभिमन्यु स्वयं मृत्यु के देवता की तरह प्राण लेकर घूमते रहे।
  • वे पूरे चक्रव्यूह का मंथन कर रहे थे।
  • अभिमन्यु ने सत्यश्रवा का वध किया। कई महारथी जो उनके साथ थे, उन्होंने अभिमन्यु पर हमला किया। उन्होंने उन सभी को इस तरह से खत्म किया जैसे एक तिमिंगल एक घूंट पानी के साथ बड़ी संख्या में मछलियों को खा जाता है।
  • जो भी अभिमन्यु के पास गया वह कभी वापस नहीं आया।
  • पूरा चक्रव्यूह तूफान में फंसे जहाज की तरह हिल रहा था।
  • शल्य के पुत्र रुक्मरथ ने अभिमन्यु पर आक्रमण कर उन्हें घायल कर दिया। अभिमन्यु ने उसे मार दिया।
  • अभिमन्यु ने सैकड़ों राजकुमारों को मार दिया। यह देखकर दुर्योधन डर गया। दुर्योधन ने अभिमन्यु पर हमला किया लेकिन कुछ ही पलों में उसे भागना पड़ा।
  • कौरव सैनिकों के मुंह सूख गए। कोई भी अब और लड़ना नहीं चाहता था। वे केवल इधर-उधर देख रहे थे कि कहां भागें।
  • द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, बृहद्बल, कृपाचार्य, दुर्योधन, कर्ण, कृतवर्मा और शकुनि ने मिलकर अभिमन्यु पर आक्रमण किया। उन सब को उनसे दूर भागना पड़ा।
  • दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण अभिमन्यु से लडने आ गया। दुर्योधन अन्य महारथियों के साथ अपने पुत्र की रक्षा के लिए वापस आया।
  • अभिमन्यु ने लक्ष्मण से कहा - इस लोक को आखिरी बार देख लो। मैं तुम्हें यमलोक भेजने जा रहा हूं। यह कहकर अभिमन्यु ने नाग के आकार के बाण से लक्ष्मण का सिर काट दिया।
  • दुर्योधन चिल्लाया - उसे मार डालो, उसे मार डालो। उसने मेरे बेटे को मारा है।
  • छह महारथी - द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, बृहद्बल और कृतवर्मा ने अभिमन्यु को घेर लिया।
  • अभिमन्यु ने उन सभी को भगा दिया।
  • फिर वे जयद्रथ की ओर मुड़े। 
  • कलिंग, निषाद और क्राथपुत्र के सैनिकों ने हाथियों की अपनी विशाल सेना के साथ अभिमन्यु के मार्ग को अवरुद्ध कर दिया। अभिमन्यु ने उन विशाल हाथियों को ऐसे दूर भगाया जैसे हवा आकाश में बादलों को चकनाचूर कर देती है।
  • जैसे ही क्राथपुत्र ने अभिमन्यु पर हमला किया, द्रोणाचार्य और अन्य महारथी वापस लौट आए और अभिमन्यु के साथ फिर से लड़े। अभिमन्यु ने क्राथपुत्र का वध किया। यह देख कर अन्य भाग गए।
  • छह महारथियों ने एक बार फिर अभिमन्यु को घेर लिया।
  • अभिमन्यु ने सभी छह महारथियों को बाणों से घायल किया।
  • उन्होंने कर्ण को उनके कान पर बुरी तरह घायल कर दिया।
  • उन्होंने कृपाचार्य के घोड़ों और पहरेदारों को मार डाला और उन्हें छाती में घायल कर दिया।
  • इसके बाद उन्होंने वृंदारक का वध किया।
  • उन्होंने अश्वत्थामा को पच्चीस बाणों से घायल कर दिया।
  • सभी ने जवाबी कार्रवाई की और लड़ाई जारी रही।
  • अभिमन्यु ने छह महारथियों में से एक, बृहद्बल का वध किया।
  • फिर उन्होंने दस हजार और राजाओं को मार डाला जो कौरवों के सहयोगी थे।
  • अभिमन्यु ने कर्ण पर पचास बाण चलाए और उन्हें फिर से कान पर घायल कर दिया। कर्ण ने भी उन्हें उतने ही बाणों से मारा। अभिमन्यु और कर्ण दोनों के कपड़े और कवच खून से लाल हो गए।
  • अभिमन्यु ने कर्ण के छह मंत्रियों को मार डाला और कई अन्य को घायल कर दिया।
  • अभिमन्यु ने मगध के राजकुमार अश्वकेतु का वध किया।
  • इसके बाद उन्होंने मार्तिकावत के राजा भोज को मार डाला।
  • अभिमन्यु के घोड़ों और सारथी को दुश्शासन के पुत्र दौश्शासनि ने घायल कर दिया। अभिमन्यु ने प्रतिकार करते हुए कहा - तुम्हारे पिता कायरों की तरह भाग गए हैं। यह अच्छा है कि तुम लड़ना जानते हो, लेकिन तुम यहां से जिंदा वापस नहीं जाओगे।
  • अभिमन्यु ने इसके बाद अश्वत्थामा और शल्य से युद्ध किया।
  • इसके बाद उन्होंने शत्रुंजय, चंद्रकेतु, मेघवेग, सुवर्चा और सूर्यभास का वध किया।
  • शकुनि ने अभिमन्यु पर तीन बाणों से हमला किया और दुर्योधन से कहा - इससे पहले कि वह हम सभी को एक-एक करके मारे, हम को सब मिलकर उसे खत्म करना पडेगा।
  • कर्ण ने द्रोणाचार्य से पूछा - वह हम सभी को मारने जा रहा है। हमें शीघ्र बताएं कि उसे कैसे मारा जाए।
  • द्रोणाचार्य ने कहा - अभिमन्यु की लड़ाई में कोई कमी नहीं है। वह मेरे अपने जीवन के लिए भी खतरा है, लेकिन उसे लडते हुए देखना बहुत खुशी की बात है। मुझे उसमें और अर्जुन में कोई अंतर नहीं दिखता। 
  • अभिमन्यु के बाणों से कर्ण फिर से आहत हुए। कर्ण ने एक बार फिर द्रोणाचार्य से कहा - मैं भाग नहीं रहा हूं क्योंकि मैं यहां रहने के लिए कर्तव्यबद्ध हूं। उसके अग्नि-समान बाणों ने मेरी छाती को छेद दिया है।
  • यह सुनकर द्रोणाचार्य मुस्कुराए और बोले - अभिमन्यु का कवच अभेद्य है। मैंने अर्जुन को कवच पहनना सिखाया है। अभिमन्यु ने इसे अपने पिता से सीखा होगा।
  • तब द्रोणाचार्य ने कर्ण को अभिमन्यु को मारने का तरीका बताया।

 

कौरवों का कायरतापूर्ण कृत्य

भीष्म पर्व का पहला अध्याय श्लोक संख्या २७ से ३२ तक में पांडवों और कौरवों दोनों द्वारा परस्पर सहमति से बनाये गये युद्ध के नियम दिए गए हैं।

रथी च रथिना योध्यो गजेन गजधूर्गतः।

अश्वेनाश्वी पदातिश्च पादातेनैव भारत॥ २९

यथायोगं यथाकामं यथोत्साहं यथाबलम्।

समाभाष्य प्रहर्तव्यं न विश्वस्ते न विह्वले॥ ३०

एकेन सह संयुक्तः प्रपन्नो विमुखस्तथा।

क्षीणशस्त्रो विवर्मा च न हन्तव्यः कदाचन॥ ३१

  • रथ पर सवार कोई व्यक्ति केवल रथ पर बैठे विरोधी पर ही आक्रमण कर सकता है। इसी तरह हाथियों के लिए, और घोड़ों के लिए भी। जमीन पर खडे किसी पर केवल जमीन पर खडा योद्धा ही अक्रमण कर सकता है। इसी तरह तलवार से हमला तभी करना चाहिए जब विरोधी के पास भी तलवार हो। इसी तरह, अन्य हथियारों के लिए भी। 
  • ताकत और हथियारों के मामले में लड़ाई बराबरी के बीच होनी चाहिए।
  • जिसके पास हथियार नहीं है उस पर हमला नहीं किया जाना चाहिए।
  • किसी पर पीछे से हमला नहीं करना चाहिए।

 

द्रोणाचार्य ने अभिमन्यु को परास्त करने के लिए जो निर्देश दिए थे, वे इन नियमों का घोर उल्लंघन थे।

यह अध्याय ४८ से स्पष्ट है।

अथैनं विमुखीकृत्य पश्चात् प्रहरणं कुरु।

उस पर पीछे से हमला करना - नियम का स्पष्ट उल्लंघन - विमुखो न हन्तव्यः (पीछे से हमला नहीं करना चाहिए)

कर्ण ने ठीक वैसा ही किया। वे अभिमन्यु के पीछे सरक गए और पीछे से एक तीर से उनकी धनुष की डोरी काट दी।

अभिषूंश्च हयांश्चैव तथोभौ पार्ष्णिसारथी।

एतत् कुरु महेष्वास राधेय यदि शक्यते॥

विरथं विधनुष्कं च कुरुष्वैनं यदीच्छसि।

उसके घोड़ों को मार डालो, उसके रक्षकों को मार डालो, उसके रथ को नष्ट कर दो, उसके धनुष को नष्ट कर दो। इस प्रकार उन्हें निरस्त्र करने के बाद आप उसे मारने में सक्षम होंगे। यह इस नियम का स्पष्ट उल्लंघन है कि क्षीणशस्त्रो न हन्तव्यः - जिसके पस हथियार नहीं है उस पर हमला नहीं किया जाना चाहिए।

शेषास्तु च्छिन्वध्न्वानं शरवर्षैरवाकिरन्।

त्वरमाणस्त्वराकाले विरथं षण्महारथाः॥

धनुष को टूटा हुआ देखकर, छह महारथियों ने एक साथ अभिमन्यु पर बाणों की वर्षा की।

उल्लंघन - अभिमन्यु ने अपना धनुष खो दिया था। उन पर तीरों से हमला नहीं करना चाहिए था।

फिर, अभिमन्यु ने अपनी तलवार और ढाल उठाई। वे गरुड़ की तरह उड़ रहे थे।

द्रोणाचार्य ने एक तीर से उनकी तलवार को दो टुकड़ों में काट दिया। कर्ण ने बाणों से उनकी ढाल चकनाचूर कर दी।

उल्लंघन - अभिमन्यु के पास केवल एक तलवार और ढाल थी। उन पर तीरों से हमला नहीं करना चाहिए था।

अभिमन्यु ने अपने टूटे हुए रथ से एक पहिया उठाया और द्रोणाचार्य की ओर दौड़ पडा। वे अब भी सिंह की नाईं दहाड़ रहे थे। वे सुदर्शन चक्र के साथ कृष्ण की तरह दिखते थे।

महारथियों ने मिलकर पहिये को टुकड़े-टुकड़े कर दिया।

अभिमन्यु ने एक गदा उठाया और अश्वत्थामा पर हमला कर दिया। यह देखकर अश्वत्थामा अपने  रथ पर तीन कदम पीछे चला गया। अभिमन्यु के गदा से प्रहार करने से अश्वत्थामा के घोड़े और रक्षक मारे गए।

सभी छह महारथियों ने एक साथ अभिमन्यु पर हमला किया। छह महारथियों में से बृहद्बल मारा जा चुका था। उसकी जगह दुश्शासन के पुत्र दौश्शासनि ने ले ली।

गदा से अभिमन्यु ने दौश्शासनि के रथ को चकनाचूर कर दिया। 

दौश्शासनि ने भी अपने गदा से जवाबी कार्रवाई की और दोनों के बीच भयंकर लड़ाई हुई। दोनों जमीन पर गिर पड़े।

दौश्शासनि ने पहले उठकर अभिमन्यु के सिर पर गदा से प्रहार किया।

अभिमन्यु प्राणहीन हो गये।

 

महाभारत अभिमन्यु की हत्या के प्रकरण को समाप्त करते हुए कहता है -

एवं विनिहतो राजन्नेको बहुभिराहवे।

इस प्रकार युद्ध में एक योद्धा अनेकों द्वारा मारा गया। 

जैसा कि कृष्ण ने बाद में वसुदेव से कहा - यदि अभिमन्यु बिना विराम के भी एक-एक करके उनसे लड़ता, तो भी वह उन सभी को मार देता। उन्हें क्यों, इंद्र भी उसे हरा नहीं सकते थे।

उनका जीवन समाप्त होने से पहले, अभिमन्यु ने हजारों राजाओं, सैनिकों, हाथियों और घोड़ों को मार डाला था। उन्होंने अकेले ही आठ हजार रथों को नष्ट कर दिया था।

 

अभिमन्यु को इतनी कम उम्र में क्यों मरना पड़ा?

अभिमन्यु चन्द्रदेव के पुत्र का अवतार था। वे बुराई को दूर करने में भगवान कृष्ण की सहायता के लिए आए थे। उन्हें पृथ्वी पर भेजने के समय, चंद्रदेव ने उनसे कहा था कि वे सोलहवें वर्ष में लौट आएं।

 

अभिमन्यु स्वर्गलोक पहुंचते हैं

व्यास जी अभिमन्यु के चाचाओं के पास आए जो उनकी मृत्यु के शोक में डूबे हुए थे। व्यास जी ने उन्हें बताया कि अभिमन्यु  स्वर्गलोक पहुंच चुके हैं।



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