Pratyangira Homa for protection - 16, December

Pray for Pratyangira Devi's protection from black magic, enemies, evil eye, and negative energies by participating in this Homa.

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श्री सूक्त अर्थ सहित

lakshmi suktam

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इसके लिए मैं आपका हृदय से आभारी हूँ 💖... धन्यवाद 🙏 -pranav mandal

इन मंत्रों से मेरा जीवन बदल गया है। 🙏 -मधुकर यादव

वेदधारा का प्रभाव परिवर्तनकारी रहा है। मेरे जीवन में सकारात्मकता के लिए दिल से धन्यवाद। 🙏🏻 -Anjana Vardhan

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 -मदन शर्मा

यह वेबसाइट अत्यंत शिक्षाप्रद है।📓 -नील कश्यप

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श्री सूक्त से लक्ष्मी जी की कृपा और धन-धान्य समृद्धि प्राप्त करें। इस शक्तिशाली वैदिक सूक्त के पाठ से दिव्यता और प्रचुरता का अनुभव करें।

 

१- भगवान से लक्ष्मी को अभिमुख करने की प्रार्थना

 

हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥ १॥

 

लक्ष्मीपते ! आप उन लक्ष्मी को मेरे अभिमुख करें जो हितैषिणी एवं रमणीय हैं, समस्त पापों को नाश करने वाली हैं, अनुरूप माला आदि आभरणों से युक्त हैं, सब को प्रसन्न करने वाली हैं तथा हिरण्य आदि समस्त सम्पत्ति की स्वामिनी हैं ||१||

 

२- भगवान् से लक्ष्मी को अभिमुख रखने की प्रार्थना

 

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्। 

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥ २ ॥

 

लक्ष्मीपते ! आपका नित्य अनुगमन करनेवाली तथा भक्तों पर अनुग्रह करने वाली लक्ष्मी को आप मेरे अभिमुख करें, जिनके सान्निध्य से मैं सोना, पशुधन और पुत्र-पौत्र आदि परिजन प्राप्त कर सकूं ॥२॥

 

३ - लक्ष्मी से सान्निध्य के लिये प्रार्थना

 

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रबोधिनीम् । 

श्रियं देवीमुपह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥ ३॥

 

मैं उन लक्ष्मी का सान्निध्य प्राप्त करता हूँ जो सर्वव्यापी भगवान् को अग्रगामी बनाये रखती हैं, जीवों के हृदय में तथा भगवान् के वक्षःस्थल में निवास करती हैं तथा गजेन्द्र आदि आश्रित जनों के आर्तनाद पर द्रवित होती हैं । वह लक्ष्मी देवी मुझ पर प्रसन्न हों ||३||

 

४ - लक्ष्मी का आवाहन

 

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। 

पद्मे स्थितां पद्मवर्णां त्वामिहोपह्वये श्रियम् ॥४॥

 

जो सुखस्वरूपा, मन्द मन्द मुस्कुराने वाली, स्वर्णभवन में विराजमान, दयार्द्र, प्रकाशजननी, पूर्णकामा, भक्तों को तृप्त करने वाली, कमलवासिनी एवं पद्मवर्णा हैं, उन लक्ष्मी देवी का मैं यहाँ आह्वान करता हूँ ||४||

 

५-लक्ष्मी की शरणागति एवं अलक्ष्मीनाश की प्रार्थना

 

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् । 

तां पद्मनेमिं शरणमहं प्रपद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥५॥

 

में उन लक्ष्मी की शरण ग्रहण करता हूँ जो आनन्द स्वरूपा हैं, जिनका रूप दिव्य एवं मंगलमय है, जिनका यश

सर्वविदित है, जो इस संसार में देवताओं के द्वारा सुपूजित तथा नित्यविभूति में नित्य पार्षदों एवं मुक्तजनों की पूज्य हैं, जो उदारशीला हैं तथा जो कमल में निवास करती हैं । मेरा अज्ञान नष्ट हो जाय इसलिये मैं लक्ष्मी को शरण्य के रूप में

वरण करता हूँ ॥५॥

 

६ - अलक्ष्मी और उसके सहचारियों के नाश की प्रार्थना

 

श्रादित्यवर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पस्तिव वृक्षोऽथ विल्वः ।

तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥६॥

 

श्रादित्यवर्णे ! आपके संकल्प से वृक्षों का पति विल्ववृक्ष उत्पन्न हुआ। आप ही की कृपा से उसके फल आपके विरोधी अज्ञान, काम, क्रोध आदि विघ्नों तथा अलक्ष्मी और उनके सहचारियों को नष्ट करें || ६ ||

 

७- माङ्गल्यप्राप्ति की प्रार्थना

 

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।

प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥७॥

 

लक्ष्मीदेवि ! भगवान् नारायण कीर्ति और चिन्तामणि रत्न के साथ मुझे प्राप्त हों। मैं इस राष्ट्र में उत्पन्न हुआ हूँ। लक्ष्मी कीर्ति और ऋद्धि मुझे प्रदान करें ||७||

 

८ - अलक्ष्मी और उसके कार्यों का विवरण देकर उसके नाश की प्रार्थना

 

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्। 

अभूतिमसमृद्धिं  च सर्वान् निर्णुद मे गृहात् ॥८॥

 

हे देवि ! मैं क्षुधा, पिपासा, मलिनता एवं दुस्सह की पत्नी अलक्ष्मी का निवारण चाहता हूँ। आप अनैश्वर्य एवं असमृद्धि को मेरे गृह से दूर करें ||८||

 

९ - लक्ष्मी का आवाहन

 

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्। 

ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥९॥

 

मैं उन लक्ष्मी का यहाँ प्राह्वान करता हूँ जो यशप्रदात्री हैं, साधनाहीन पुरुषों को प्राप्त न होने वाली हैं, सर्वदा समृद्ध मङ्गलमयी एवं समस्त प्राणियों की अधीश्वरी हैं || ९ ||

 

१०- मन, वाणी आदि की अमोघता तथा समृद्धि की स्थिरता के लिये प्रार्थना

 

मनसः काममाकूतिं वाचस्सत्यमशीमहि। 

पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥१०॥

 

हे लक्ष्मि ! मन की कामना, बुद्धि का संकल्प, वाणी की प्रार्थना, जीवधन समृद्धि, और अन्न समृद्धि सुस्थिर हो, ऐसी अभिलाषा है । मुझे यश प्राप्त होवे ॥१०॥

 

११ - कर्दम प्रजापति से प्रार्थना

 

कर्दमेन प्रजाभूता मयि संभव कर्दम।

श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥११॥

 

कर्दम प्रजापते ! उन लक्ष्मी को मेरे यहां प्रतिष्ठित करें जिनको आपने अपनी कन्या के रूप में स्वीकार किया है। पद्ममाला धारण करने वाली उन माता लक्ष्मी को मेरे कुल में प्रतिष्ठित करें ॥ ११ ॥

 

१२- लक्ष्मी के परिकर से प्रार्थना

 

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे । 

नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ १२ ॥

 

चिक्लीत ! भगवान् के आयतनभूत जल, घृत आदि को मेरे गृह में उत्पन्न करें। आप मेरे गृह में निवास करें और प्रकाशमयी माता लक्ष्मी को मेरे कुल में निवास करावें ॥ १२ ॥

 

१३ - लक्ष्मी के नित्य सान्निध्य के लिये पुनः भगवान् से प्रार्थना 

 

आर्द्रां पुष्करिणीं यष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम्।

चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो ममाऽऽवह ॥ १३॥

 

लक्ष्मीपते ! उन लक्ष्मी को अभिमुख करें जिनका हृदय आर्द्र है, जो कमल में निवास करती हैं, जो यज्ञस्वरूपा हैं, पिङ्गलवर्णवाली हैं, भक्तजनों को प्रह्लादित करने वाली हैं तथा स्वर्ण आदि की स्वामिनी हैं ।। १३ ।।

 

१४- पुनः लक्ष्मी के नित्य सान्निध्य के लिये भगवान से प्रार्थना

 

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् । 

सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो ममाऽऽवह ॥ १४॥

 

हे लक्ष्मीपते ! उन लक्ष्मी को मेरे अभिमुख करें जिनका हृदय आर्द्र है, जो कमल में निवास करती हैं, जो पुष्टिस्वरूपा हैं, स्वर्णमयी हैं, स्वर्णपुष्पों की माला धारण करने वाली हैं, जो आपके समान समस्त चेतनों एवं प्रचेतन पदार्थों का व्यापन, भरण एवं पोषण करने वाली हैं तथा जो हिरण्य आदि की स्वामिनी हैं ।। १४ ।।

 

१५- भगवान् से लक्ष्मी के आभिमुख्य की प्रार्थना

 

तां म आवह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥१५॥

 

लक्ष्मीपते ! आपका नित्य अनुगमन करने वाली लक्ष्मी को आप मेरे अभिमुख करें जिनके सान्निध्य से मैं अपार सोना सम्पत्ति, पशुधन, सेवक-सेविकायें, अश्व आदि वाहन सम्पत्ति तथा पुत्र-पौत्र आदि प्राप्त करूं ॥ १५ ॥

 

१६ - फलश्रुति

 

यश्शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्। 

सूक्तं पञ्चदशचं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥ १६॥

 

जिस व्यक्ति को लक्ष्मी के अनुग्रह की कामना हो वह पवित्र और सावधान होकर प्रतिदिन घृत से होम करे और उसके साथ उपर्युक्त १५ ऋचाओं का निरन्तर पाठ करे ॥ १६ ॥

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