निम्नलिखित श्लोक 'इन्द्रविजय' नामक पुस्तक से हैं -
हिन्दुपदेन हिन्दुस्तानपदेन च यदाहुरद्यतनाः । भारतवर्षं तत्खलु नामार्द्धस्यास्य जानीयात् ।
सिन्धुनदोऽयं यद्दिशि तद्दिश्यं भारतं पूर्व्यम् । सिन्धुस्तानपदेन व्यवजहुः सिन्धुपश्चिमगाः ।
अपि पारसीकजातेरस्ति दासतीरनामके ग्रन्थे । पौरस्त्यभारतार्थं हिन्दुपदं सर्वतो पूर्वम् ।
जरथुस्तस्य यदायतमस्त्यस्मिन् पञ्चषष्टितमम् । तत्र व्यासो हिन्दुस्तानादागत उदीरितो भक्त्या ।
व्यासो नाम ब्राह्मण आयातो हिन्दुदेशाद्यः । तत्सदृशो धीमानिह कश्चिन्नास्तीति तस्यार्थः ।
अपि च त्रिषष्टितम आयत उक्तं पुनस्तत्र । व्यासमुनेर्वाह्लीके गमनं गस्तास्पनृपसमये ।
स प्रेत्यभावविषये व्यासात् संवदितुमेव गस्तास्पः । जरथुस्तमाजुहाव च धर्माचार्यं स्वदेशस्थम् ।
गुप्ताश्वापभ्रंश गस्तास्पः क्षितिप इराने । व्यासात् स पुनर्जन्मनि संन्देहं स्वं निराचक्रे ।
गस्तास्पेन तु पृष्टस्तद् व्यवहारानुसारतो व्यासः । हिन्दुस्तानाभिजनं विज्ञापयामास चात्मानम् ।
'हिन्दू' और 'हिन्दुस्तान' का आधुनिक उपयोग: 'हिन्दू' और 'हिन्दुस्तान' शब्दों का प्रयोग आधुनिक समय में भारतवर्ष के नाम से ज्ञात भूमि को संदर्भित करने के लिए किया जाता है।
'सिंधुस्तान' का संदर्भ: 'सिंधुस्तान' शब्द का इस्तेमाल सिंधु (सिंधु) नदी के पश्चिम में रहने वाले लोगों द्वारा नदी के पूर्व की भूमि, जो कि भारत है, का वर्णन करने के लिए किया जाता था।
'हिन्दू' का फ़ारसी उपयोग: 'दसातिर' जैसे फ़ारसी ग्रंथों में, 'हिन्दू' शब्द का प्रयोग हमेशा भारत के पूर्वी हिस्से, सिंधु नदी के पूर्व की भूमि के संदर्भ में किया गया है।
ज़ोरोस्टर ने व्यास का उल्लेख किया: ज़ोरोस्टर (पारसी धर्म के संस्थापक) ने व्यास, एक ब्राह्मण का उल्लेख किया जो हिंदुओं की भूमि से आया था, और उसकी बुद्धि की प्रशंसा की।
व्यास की बहलिका की यात्रा: व्यास की बहलिका (आधुनिक बल्ख) क्षेत्र की यात्रा 550 ईसा पूर्व में राजा गुस्तास्प के शासनकाल के दौरान हुई थी।
परलोक पर चर्चा: राजा गुस्तास्प व्यास के साथ परलोक से संबंधित विषयों पर चर्चा करना चाहते थे। ज़ोरोस्टर ने चर्चा में शामिल होने के लिए अपने धार्मिक शिक्षक को बुलाया।
व्यास ने संदेह दूर किए: राजा गुस्तास्प ने गुप्त रूप से व्यास से संवाद किया, जिन्होंने पुनर्जन्म के बारे में राजा के संदेह को दूर किया और हिंदुस्तान से उनकी उत्पत्ति का खुलासा किया।
इला। इला पैदा हुई थी लडकी। वसिष्ठ महर्षि ने इला का लिंग बदलकर पुरुष कर दिया और इला बन गई सुद्युम्न। सुद्युम्न बाद में एक शाप वश फिर से स्त्री बन गया। उस समय बुध के साथ विवाह संपन्न हुआ था।
जैसा कि अथर्वशीर्ष उपनिषद में वर्णित है, पराशक्ति या आद्याशक्ति, खुद को सृष्टि के मूल कारण बताती है, खुद को सर्वोच्च ब्रह्म के रूप में बताती है। वह प्रकृति और पुरुष (आत्मा) दोनों है, और भौतिक और चेतन जगत का उत्पत्ति स्थान है। इस विचार को शाक्त उपनिषदों और अथर्वगुह्य उपनिषद में आगे बढ़ाया गया है, जहां ब्रह्म को स्त्री रूप में प्रस्तुत करते हैं।
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