जानिए सोमवार व्रत की महत्वपूर्ण कथा के बारे में । आठ सोमवार को शिव जी का व्रत करने से सभी मनुष्य अपने मनोकामनाओं को प्राप्त कर सकते हैं।
इस सोमवार व्रत की कथा को भगवान महादेव ने पार्वती को सुनाया था।
कैलास पर्वत के उत्तर भाग में निषध नामक एक पर्वत है। उस पर्वत के शिखर पर स्वयंप्रभा नाम से एक गांव था। उस में धनवाहन नाम से एक गंधर्वों का राजा अपनी पत्नी के साथ रहता था। उन दोनों के आठ पुत्र और एक पुत्री थी। उन के पुत्री का नाम था गन्धर्वसेना। वह बहुत ही सुन्दर थी। पर उस में अपने सुन्दरता का बहुत घमंड था। वह कहती थी कि इस संसार में कोई भी देव हो या दानव हो, वह मेरी सुन्दरता के एक अंश के बराबर नहीं है। इस बात को एक बार एक आकाशचारी गणनायक ने सुन लिए।
गन्धर्वसेना के अहंकारपूर्वक इस बात को सुनकर वह गुस्सा हो गया और उस ने गन्धर्वसेना को शाप दे दिया कि 'तुम्हे कुष्ठरोग हो जाएगा'। गन्धर्वसेना इस बात को सुनकर डर गयी और रोते हुए उस ने गणनायक से दया करने के लिए प्रार्थना की। गणनायक को उस पर दया आ गयी और उस का गुस्सा शांत हो गया। गणनायक गन्धर्वसेना से कहा कि यह शाप तुम्हारा अहंकार का फल है। तुम्हे इस का भोग करना ही पडेगा। पर तुम्हारे शरीर में होने वाली कुष्ठ रोग का निवारण में बताता हूं। हिमालय पर्वत के एक वन में गोशृङ्ग नाम से एक मुनि रहते हैं। वे तुम्हारे इस कुष्ठ रोग को मिटाने में उपकार करेंगे। ऐसा कहकर वह गणनायक चला गया।
गन्धर्वसेना अपने माता पिता के पास जाकर यह सब बात बताने लगी। उस के माता पिता भी शोक से सन्तप्त होकर तुरंत ही गन्धर्वसेना के साथ हिमालय पर्वत चले गए। उन्होंने वहां गोशृङ्ग मुनि को देखा और सभी वृत्तांत सुनाया। मुनि से उन तीनों ने गन्धर्वसेना का कुष्ठ रोग के निवारण के लिए उपाय मांगा।
गोशृङ्ग मुनि ने गन्धर्वराज धनवाहन से कहा - तुम सोमवार व्रत का आचरण करो। भारतवर्ष में समुद्र के तट पर सोमनाथ के रूप में भगवान शिव विराजमान हैं। वहां जाकर सिर्फ दिन में एक बार भोजन करते हुए उन की पूजा करो। इस से तुम्हारी पुत्री का कुष्ठ रोग नष्ट हो जाएगा।
धनवाहन ने मुनि से पूछा कि इस सोमवार व्रत की विधि बताइए। मुनि गोशृङ्ग ने कहा - पहले सोमवार को सुबह के ब्राह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर के शुद्ध हो जाओ। फिर शुद्ध भूमि में एक कलश रखकर उस में पानी भरो। उस कलश के अंदर पल्लव और सुगंधित द्रव्य डालो। फिर उस के ऊपर शिव भगवान की मूर्ति या लिंग की स्थापना करो। उन को सफेद वस्त्र और मालाओं से अलंकृत करो। फिर उन्हें उन के मनपसंद भोजन से संतुष्ट करो।
उनकी पूजा करने के लिए मंत्र है -
ॐ नमः पञ्चवक्त्राय दशबाहुत्रिनेत्रिणे। देव श्वेतवृषारूढ श्वेताभरणभूषित। उमादेहार्द्धसंयुक्त नमस्ते विश्वमूर्तये।
इस मंत्र का अर्थ है - हे भगवान शिव, आप के पांच मुख हैं, आप के दस हाथ हैं, आप के तीन आंखें हैं, आप देवों के देव हैं, आप सफेद रंग के बैल पर बैठे हुए हैं, आप सफेद वस्त्र और आभरण से विभूषित हैं, आप पार्वती के आधे शरीर से संयुक्त है, आप ही इस विश्व का मूर्तरूप हैं, आप को नमस्कार। इस मंत्र से उनकी पूजा करें। सिर्फ रात की एक वेला में ही भोजन करें। सोमनाथ जी का ध्यान करते हुए कुश की चटाई पर रात को सोयें।
दूसरे सोमवार को सुबह उठकर, ज्येष्ठा शक्ति से युक्त शिव जी का कमल को फूलों से पूजा करें। नैवेद्य में उन को नारंग का फल चढाएं।
तीसरे सोमवार को चमकीले फूलों से शिव जी की पूजा करें। नैवेद्य में अनार के फलों का भोग चढाएं। उस दिन शिव जी के साथ सिद्धि नामक शक्ति रहती है।
चौथे सोमवार को दौने के पत्तों से शिवजी की पूजा करें। नैवेद्य में नारियल का फल चढाएं।
पांचवे सोमवार को कुन्द की फूलों से शिव जी की पूजा करें। साथ में भस्म से शिव जी की अर्चना भी करें। भगवान को अंगूर का नैवेद्य करें और अर्घ्य भी प्रदान करें।
छठे सोमवार को शिव जी के पूजा कर के धतूर के फल का भोग चढाएं। फिर भगवान को अर्घ्य भी प्रदान करें। इस सोमवार में शिव जी भद्रा नामक शक्ति के साथ रहेंगे।
सातवें सोमवार के बेल के पत्तों से शिव जी की पूजा करें। शिव जी इस दिन दीप्ता शक्ति के साथ रहते हैं। जंभीरी नीम्बु के फल का समर्पण करते हुए भोग चढाएं।
आठवें सोमवार को शिव जी अमोघा नामक शक्ति से साथ रहते हैं। इस दिन केले के फल को नैवेद्य में समर्पण करें और मरुआ के पत्तों का समर्पण करें।
इस प्रकार क्रम से आठ सोमवार को व्रत रखकर व्रत का समापन करें। फिर एक शुद्ध भूमि में हवन वेदिका बनाएं। भूमि में कमल के आकार का रंगोली बनाकर उस में कलश स्थापन करें। उस के ऊपर सोमनाथ जी की प्रतिमा का स्थापन करें। भक्ति के साथ सोमनाथी जी की पूजा और हवन करें। पूजा के बाद सोमनाथ जी का स्मरण करते हुए पञ्चगव्य का सेवन करें। पूजा में उपस्थित भक्त लोगों का भोजन कराएं। यथाशक्ति दान करें। ऐसे करने से सोमनाथ जी प्रसन्न होंगे।
गन्धर्वराज धनवाहन ने यथोक्त विधि से सोमवार व्रत का आचरण किया। धनवाहन की भक्ति श्रद्धा को देखकर भगवान सोमनाथ प्रसन्न हुए और गन्धर्वसेना का कुष्ठ रोग निवृत्त हो गया।
इस प्रकार आठ सोमवार को शिव जी का व्रत करने से सभी मनुष्य अपने मनोकामनाओं को प्राप्त कर सकते हैं।
एक मनुष्य तीन ऋणों के साथ पैदा होता है: ऋषि ऋण (ऋषियों के लिए ऋण), पितृ ऋण (पूर्वजों के लिए ऋण), और देव ऋण (देवताओं के लिए ऋण)। इन ऋणों से मुक्त होने के लिए शास्त्रों में दैनिक कर्तव्य बताए गए हैं। इनमें शारीरिक शुद्धि, संध्यावंदनम (दैनिक प्रार्थना), तर्पण (पूर्वजों के लिए अनुष्ठान), देवताओं की पूजा, अन्य दैनिक अनुष्ठान और शास्त्रों का अध्ययन शामिल हैं। शारीरिक शुद्धि के माध्यम से स्वच्छता बनाए रखें, संध्यावंदनम के माध्यम से दैनिक प्रार्थना करें, तर्पण के माध्यम से पूर्वजों को याद करें, नियमित रूप से देवताओं की पूजा करें, अन्य निर्धारित दैनिक अनुष्ठानों का पालन करें और शास्त्रों के अध्ययन के माध्यम से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करें। इन कार्यों का पालन करके हम अपनी आध्यात्मिक जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं।
मार्कंडेय का जन्म ऋषि मृकंडु और उनकी पत्नी मरुद्मति के कई वर्षों की तपस्या के बाद हुआ था। लेकिन, उनका जीवन केवल 16 वर्षों के लिए निर्धारित था। उनके 16वें जन्मदिन पर, मृत्यु के देवता यम उनकी आत्मा लेने आए। मार्कंडेय, जो भगवान शिव के परम भक्त थे, शिवलिंग से लिपटकर श्रद्धा से प्रार्थना करने लगे। उनकी भक्ति से प्रभावित होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें अमर जीवन का वरदान दिया, और यम को पराजित किया। यह कहानी भक्ति की शक्ति और भगवान शिव की कृपा को दर्शाती है।
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