भृगु वंश के इतिहास के बारे में हम देख रहे हैं।
च्यवन महर्षि का दिलचस्प जन्म, उनका कैसे वह नाम पडा, ये सब हम देख चुके हैं।
इसके आगे उग्रश्रवा सौति शौनक महर्षि से पूछते हैं - अब आप क्या सुनना चाहेंगे?
च्यवन भृगुके पुत्र हैं।
च्यवन की पत्नी हैं सुकन्या।
उन दोनों का पुत्र प्रमति।
प्रमति का पुत्र रुरु।
रुरु की मां एक अप्सरा थी - घृताची।
गन्धर्वों की स्त्रीयां अप्सरा कहलाती हैं।
यहां एक ऋषि और एक अप्सरा, इनके संबन्ध से रुरु का जन्म हुआ।
ऋषि जन ज्यादा करके भारत वर्ष में रहा करते थे।
गन्धर्व मध्य एशिया में रहते थे, हिमालय और मंगोलिया के बीच।
रुरु की पत्नी हैं प्रमद्वरा।
उनका पुत्र शुनक।
शुनक का पुत्र शौनक।
इस प्रकार शौनक महर्षि की वंशावली है।
आगे सौति रुरु से संबन्धित कुछ बातें बताएंगे।
रुरु हैं शौनक महर्षि के दादाजी।
रुरु सांपों के घोर शत्रु बन गये।
जहां भी सांप दिखाई दिया तो उसे मारते थे।
इसके पीछे एक कारण है।
गन्धर्व विश्वावसु से अप्सरा मेनका गर्भवती हुई।
एक बच्ची को जन्म देने के बाद अप्सरा उसे ऋषि स्थूलकेश के आश्रम के पास छोडकर चली गयी।
महाभारत इस के लिए मेनका को निर्दया और निरपत्रपा कहकर डांटता है।
निरपत्रपा का अर्थ है लज्जारहित।
पर अगर मेनका ऐसे न की होती तो आगे की घटनाएं नही घटती।
जब स्थूलकेश ने उस परित्यक्त बालिका को देखा तो उनके मन में बडी दया और करुणा आई।
उसे आश्रम में लाकर अपनी बेटी जैसे पाला पोसा।
लडकी के लिए धर्म में जितने संस्कार बताए गये हैं सब किया उन्होंने।
वह बडी हो गयी।
इतनी सुन्दर थी कि उसका नाम ही प्रमद्वरा रखा गया।
प्रमदाभ्यो वरा - सुन्दरियों के बीच सबसे श्रेष्ठ।
एक दिन रुरु ने प्रमद्वरा को देखा और तुरंत ही मुग्ध हो गया।
उससे विवाह करना चाहा।
अपने दोस्तों द्वारा अपने पिताजी प्रमति को अपनी मन की बात बताया।
प्रमति स्थूलकेश के पास जाकर रुरु के लिए प्रमद्वरा का हाथ मांगा।
स्थूलकेश भी खुशी खुशी राजी हो गये।
विवाह के लिए शुभ मुहूर्त भी निकाला गया।
इस बीच प्रमद्वरा खेल रही थी।
अनजाने में एक सांप के ऊपर उसका पैर लगा।
सांप ने उसे डस दिया।
और प्रमद्वरा मर गयी।
विवाह होने से पहले ही रुरु विधुर बन गया।
प्रमद्वरा के मृत शरीर के पास बैठकर रुरु जोर जोर से रोने लगा।
यहां पर महाभारत कहता है कि जब यह घटना घटी तो प्रमद्वरा कालचोदिता थी।
और वह सांप भी कालधर्म का ही पालन कर रहा था
प्रम्द्वरा समय से, काल से प्रेरित होकर ही वहां गयी।
उस समय उसकी मृत्यु होनी थी।
यह है कालधर्म - कब क्या होना है यह काल के वश में है।
घटानाओं को निष्पादित करना काल का धर्म है, समय का धर्म है।
सांप के माध्यम से काल ने ही अपने धर्म का पालन करके प्रमद्वरा की मृत्यु नामक लक्ष्य को पूरा किया।
देखिए सब कुछ समय पर ही आधारित है।
सूर्योदय एक निश्चित समय पर और सूर्यास्त एक निश्चित स्मय पर होता है इसलिए हम दिन के कार्यों को नियत कर सकते हैं।
दिनचर्या बना सकते हैं।
मान लो एक दिन - दिनमान बारह घंटे, अगला दिन तीन घंटे, फिर एक हफ्ते के लिए सूर्यास्त है ही नहीं।
इस प्रकार चल सकता है क्या?
कोई व्यवस्था नहीं रहेगी।
सब कुछ समय पर आधारित है।
बस की समय-सारिणी, ट्रेन की समय-सारिणी, बैंक कब खुलेगा, कब बन्द होगा, दूकान कब खुलेंगे, कब बन्द रहेंगे, मौसम, ठंठी, गर्मी - सब कुछ समय पर ही आधारित है।
समय समय पर पहले से ही निश्चित प्रकार से घटनाएं घटनी ही हैं।
जब जगत की रचना होती है तो उसी समय यह भी निश्चित हो जाती है कि ४.३२ अरब सालों बाद इस जगत का लय भी होना है, प्रलय होना है।
शाश्वत कुछ भी नहीं है।
चिरंजीवी कोई भी नहीं।
जिन्हें हम चिरंजीवी मानते हैं उनकी भी आयु तय है।
किसीका मन्वन्तर के अन्त तक तो किसी का कल्पांत तक।
ये सब छोडिए, ब्रह्मा जी की भी आयु सीमित है, सौ साल।
अगर किसी की मौत सडक दुर्घटना से होती है तो वह काल से प्रेरित होकर वहां उस समय जाता है।
ड्रायवर का ध्यान भी काल से प्रेरित होकर रास्ते से हटता है।
यहां पर देखिए महाभारत किसी पर दोष नही लगा रहा है।
यह काल धर्म है।
काल की प्रेरणा से ही घटी घटना है।
हैदराबाद से २१५ कि.मी. दूरी पर श्रीशैल पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग स्थित है।
Utsadana involves healing or cleansing a person with perfumes.
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