इस प्रवचन से जानिए- शिव जी का अभिषेक क्यों किया जाता है?
नहीं। क्यों कि गाय अपने बछडे को जितना चाहिए उससे कई गुना दूध उत्पन्न करती है। गाये के दूध के तीन हिस्से होते हैं - वत्सभाग, देवभाग और मनुष्यभाग। वत्सभाग अपने बछडे के लिए, देवभाग पूजादियों में उपयोग के लिए और मनुष्यभाग मानवों के उपयोग के लिए।
एक प्रजापति थे जिनका नाम था और्व। बडे तपस्वी थे और्व। हिमालय में उनका आश्रम था। तपस्या या तप का ताप से संबंध है। ताप मतलब गर्मी। जब भी कोई तपस्या करता है तो उसके कारण उसके अंदर बहुत गर्मी पैदा होती है। ....
एक प्रजापति थे जिनका नाम था और्व।
बडे तपस्वी थे और्व।
हिमालय में उनका आश्रम था।
तपस्या या तप का ताप से संबंध है।
ताप मतलब गर्मी।
जब भी कोई तपस्या करता है तो उसके कारण उसके अंदर बहुत गर्मी पैदा होती है।
इसलिए महात्मा लोगों के चेहरे पर चमक दिखाई देता है।
वह गर्मी चारों ओर फैलने लगती है।
और्व की घोर तपस्या से इतनी गर्मी उत्पन्न हुई कि वह तीनों लोकों में फैल गई और देवता सहित समस्त जीवजाल गर्मी से जलने लगे।
तपस्या और आगे चली तो सारे लोक जलकर खत्म हो जाएंगे; यह थी हालत।
सब मिलकर शंभु के पास पहुंचे।
दूसरा कोई उपाय नहीं दिखा तो भोलेनाथ ने ऐसे एक मौके पर जब और्व आश्रम में मौजूद नहीं थे, तब अपनी तीसरी आंख से पूरे आश्रम को जला डाला।
तपस्या रुक गई।
तीनों लोकों के निवासी बच गए।
और्व वैसे तो शांत स्वभाव के थे लेकिन जब उन्होंने देखा कि उनका आश्रम जला दिया गया है तो उन्होंने श्राप दे दिया कि जिस ने भी यह हरकत की है वह खुद दुःख की गर्मी से पीडित होकर भटकता चलेगा।
महादेव का मन अशांत हो गया न जाने किस चीज से, पर वे बहुत व्याकुल और शोकार्त हो गए।
कहीं एक जगह पर बैठ नहीं पा रहे थे भोलेनाथ।
भगवान भोलेनाथ दुख से जलने लगे तो उनके साथ सारी दुनिया भी जलने लगी।
पहले और्व की तपस्या से तो अब उन के श्राप से।
सब ने मिल कर और्व से प्रार्थना की कि कृपया आप अपना अभिश्राप वापस ले लें और हमें इस प्रचंड क्लेश से मुक्त कराएं।
और्व ने कहा, श्राप को बेअसर करना तो नामुमकिन है।
हां, एक उपाय बताता हूं; जिससे आप सब को मेरे श्राप से चैन मिल सकता है।
गायों के दूध से भगवान श्री रुद्र का स्नान करते रहेंगे तो उन की गर्मी कम रहेगी और आप सब भी सामान्य रहेंगे।
भगवान श्रीहरि ने स्वर्ग से ७७ दिव्य गायें दी ।
उनके दूध से अभिषेक करने से समस्त जीव जाल समेत महादेव की गर्मी उतरी और सब लोगों ने भी शांति पाई।
यह है भोलेनाथ का दूध के द्वारा अभिषेक का रहस्य।
भगवान भोलेनाथ का अभिषेक, हमेशा हमेशा करता रहना चाहिए ताकि उन के शरीर की गर्मी कम रहे और साथ में हमारा क्लेश भी।
उन्होंने हम सब को और्व की तपस्या जनित अग्नि से जलकर खत्म होने से बचाया है।
और्व का श्राप अपने ऊपर ले लिया है हमारे लिए।
क्या उनके लिए इतना भी करना हमारा कर्तव्य नही बनता?
त्याग का मूर्तरूप हैं महादेव।
समुद्र मंथन से घोर विष निकला तो उसे पी लिया हमे बचाने और और्व का श्राप भी ले लिया अपने ऊपर हमें बचाने।
इतना भी नही करेंगे क्या उनके लिए?
बडे यथार्थवादी बनने का कोशिश करते हैं हम।
अपने आप को बडे लोकोपकारी मानते हैं।
भगवान को क्यों चढाते हो दूध?
गरीबों में बांटो।
नमकहरामी है शब्द इस के लिए।
कृतघ्नता, मदद लेकर उसे भूल जाना।
क्या हम सचमुच इतने मतलबी और स्वार्थी है या सिर्फ अज्ञानी हैं?
या बहकाव में आकर हां हां कर रहे हैं?
न सिर्फ दूध से, शिव जी को जितने सारे ठंडी वस्तुएं हैं उन के द्वारा अभिषेक करते हैं।
गन्ने का रस, चंदन. नारियल का पानी।
जब तक भोलेनाथ की गर्मी कम, तब तक सब कुछ ठीक।
अगर उन की गर्मी बढी, दुख और क्लेश भी बढेंगे।
धर्म को आधुनिक वैज्ञानिकता की गुलामी में लाने का कोशिश मत करो।
आधुनिक वैज्ञानिकता का दृष्टिकोण सीमित है, सिकुडा हुआ है, हर चीज को सूक्ष्मदर्शी से देखना है वैज्ञानिकता की पद्धति।
सूक्ष्मदर्शी से ही देखते रहोगे हमेशा तो तुम्हें कीटाणु ही कीटाणु दिखाई पडेगा हर जगह।
उसमें समग्रता नहीं है, समष्टि नहीं है।
मधुमेह को ठीक करते करते आदमी को नस की बीमारी हो गई तो मधुमेह के विशेषज्ञ को उस से कोई मतलब नहीं।
मेरा काम है आप के मधुमेह को काबू में रखना है; दूसरे और किसी के पास जाओ।
यह है आधुनिकता का तरीका।
जीवन ऐसा नहीं चल सकता।
इतना पूछते हो कि शिव जी को दूध क्यों चढाना चाहिए, यह बताओ गरीब को क्यों खिलाना चाहिए?
तुम्हारी क्या जिम्मेदारी है कि गरीब को खिलाएं?
इस सवाल का जवाब है तुम्हारे पास?
गरीब को खिलाना अच्छी बात है, यह तुम्हें धर्म ने ही सिखाया।
यह बात तुम्हें उसी धर्म ने सिखाया जो कहता है कि दूध से शिव जी का अभिषेक करो।
दान-परोपकार का आधार क्या है?
नहीं पता।
धर्म का आधार क्या है?
नहीं पता।
और हर चीज मे युक्ति ढूंढने निकले हैं हम।
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