ऊपर दिया हुआ ऑडियो सुनिए
शिव लिङ्ग के बारे में एक गलत जानकारी फैली हुई है ।
कुछ लोग सोच बैठे हैं कि शिव लिङ्ग पुरुष जननांग का चिह्न है ।
कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि शिव लिङ्ग का पीठ स्त्री जननांग का चिह्न है ।
जब ये दोनों साथ होते हैं तो यह मैथुनी प्रक्रिया का चिह्न है ।
कहते हैं कि तंत्र में ऐसा बताया है ।
तंत्र में ऐसा कुछ नहीं है ।
ये लोग गलत जानकारी फैला रहे हैं ।
मैथुनी प्रक्रिया किसके लिए है ?
प्रजनन के लिए ।
पर पुनरुत्पत्ति मैथुन के बिना भी होती है ।
बैक्टीरिया जैसी कीटाणुओं में देखिए ।
एक ही कीटाणु दो में विभक्त हो जाता है ।
वैज्ञानिक लोग आजकल क्लोनिंग द्वारा जानवरों को बनाने लगे हैं जिस में स्त्री - पुरुष संयोग आवश्यक नहीं है ।
मैथुन सिर्फ एक प्रकार का प्रजनन है ।
लोमहर्षण सूत यज्ञ कुण्ड से उत्पन्न हुए ।
धृष्टद्युम्न यज्ञ कुण्ड से प्रकट हुए ।
शुकदेव अरणि से प्रकट हुए
मैथुन द्वारा पुनरुत्पत्ति प्रजनन का सबसे नीचा स्तर है ।
सृष्टि की शुरुआत में ब्रह्मा जी ने चाहा कि मेरे पुत्र हो जाएं और उनके मानस पुत्र प्रकट हुए ।
उनकी कोई माता नहीं थी ।
देवों ने यज्ञों द्वारा सृजन किया ।
ब्रह्मा जी के स्तर पर, जो सिर्फ हमारे इस छोटे जगत के सृष्टिकर्ता हैं, उनके स्तर पर ही अगर स्त्री - पुरुष संयोग की आवश्यकता नहीं है प्रजनन के लिए, तो शंकरजी का क्या ?
वे तो अरबों जगत के स्रोत हैं, कारण हैं।
मामूली जननांग कैसे उनका चिह्न बन सकता है ?
शिवलिङ्ग की तुलना जननांग से करना या तो काम - विकृत सोच है या अज्ञान और मूर्खता है ।
जैसे हमने पहले देखा, सृजन के लिए उन्मुख होने पर भगवान शंकर अपने एक अंश मात्र को नाद के रूप में परिणत कर देते हैं ।
इसमें एक बिन्दु के रूप में अव्यक्त प्रकृति जन्म लेती है ।
इस अव्यक्त प्रकृति से व्यक्त प्रकृति जन्म लेती है ।
इसके बाद सृष्टि, पालन और संहार के लिए ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र उत्पन्न होते हैं ।
शिवलिङ्ग उस अवस्था का चिह्न हैं जिसमे शिव तत्त्व और शक्ति तत्त्व नाद और बिन्दु के रूप में हुआ करते हैं ।
इस भ्रम के लिए एक और कारण है ।
लिङ्ग शब्द का संस्कृत में दो अर्थ हैं - चिह्न और जननांग।
लिङ्ग्यते अनेनेति लिङ्गम्
जननांग के लिए और भी शब्द हैं - शिश्न, मेढ्र, मेहन।
कई भारतीय भाषाओं में लिङ्ग का चिह्न ऐसा अर्थ विद्यमान नहीं हैं ।
सिर्फ जननांग ही इसका अर्थ है ।
इस कारण से भी लोगों के मन मे यह भ्रम आया है ।
जब ब्रह्मा और विष्णु आपस में बहस कर रहे थे कि कौन ज्यादा श्रेष्ठ है, उस समय भोलेनाथ एक अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए ।
श्री हरि उस स्तंभ के मूल को ढूंढते गये ।
नहीं मिला ।
ब्रह्मा जी उसके शिखर को ढूंढते गये।
नहीं मिला ।
वह अनादि और अनंत था ।
शिवलिङ्ग इस अनादि, अनंत अग्नि स्तंभ का प्रतीक है जिसमें शिव नाद के रूप में और शक्ति उसे सीमित करके बिन्दु के रूप में विद्यमान हैं ।
शक्ति एक सीमा है जिसे शिव ने स्वयं अपने ऊपर लगाया है।
असीम को सीमित करना, फैलाव में और काल में - यही सृष्टि का रहस्य है ।
ब्रह्मा जी और विष्णु जी बहस कर रहे थे कि उनके बीच कौन ज्यादा श्रेष्ठ हैं। उस समय शिव जी उनके सामने एक अनादि और अनन्त अग्नि स्तंभ के रूप में प्रकट हुए जिसका न विष्णु जी न आधार ढूंढ पाये न ब्रह्मा जी शिखर ढूंढ पाए। इस अग्नि स्तंभ का प्रतीक है शिवलिंग।
शिवलिंग का पीठ देवी भगवती उमा का प्रतीक है। प्रपंच की उत्पत्ति के कारण होने के अर्थ में इसे योनी भी कहते हैं।
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