अस्मिन् वसु वसवो धारयन्त्विन्द्रः पूषा वरुणो मित्रो अग्निः।
इममादित्या उत विश्वे च देवा उत्तरस्मिन् ज्योतिषि धारयन्तु ॥१॥
इस व्यक्ति में वसु (देवता) निवास करें। इंद्र, पूषा, वरुण, मित्र, और अग्नि इसको सहारा दें। आदित्य और सभी देवता इसकी महिमा को उच्चतम स्थान पर बनाए रखें।
अस्य देवाः प्रदिशि ज्योतिरस्तु सूर्यो अग्निरुत वा हिरण्यम्।
सपत्ना अस्मदधरे भवन्तूत्तमं नाकमधि रोहयेमम् ॥२॥
देवता इसकी महिमा को सभी दिशाओं में स्थापित करें - सूर्य, अग्नि, या सोने के समान। हमारे शत्रु हमसे नीचे रहें, और हम सबसे ऊँचे स्थान पर पहुँचें।
येनेन्द्राय समभरः पयांस्युत्तमेन ब्रह्मणा जातवेदः।
तेन त्वमग्न इह वर्धयेमं सजातानां श्रैष्ठ्य आ धेह्येनम् ॥३॥
जिस सर्वोच्च ज्ञान (मंत्र) का इंद्र के लिए अर्पण हुआ और जो उच्चतम प्रार्थना है, हे जातवेद (अग्नि), उससे आप इस व्यक्ति की समृद्धि बढ़ाएं। इसे जन्मे हुए लोगों में सर्वोच्चता प्रदान करें।
ऐषां यज्ञमुत वर्चो ददेऽहं रायस्पोषमुत चित्तान्यग्ने।
सपत्ना अस्मदधरे भवन्तूत्तमं नाकमधि रोहयेमम् ॥४॥
मैं इसे यज्ञ के फल और महिमा प्रदान करता हूँ, हे अग्नि, साथ ही समृद्धि और बुद्धि भी। हमारे शत्रु हमसे नीचे रहें, और हम सबसे ऊँचे स्थान पर पहुँचें।
यह सूक्त एक वेदिक मंत्र संग्रह है जो किसी व्यक्ति के लिए दिव्य आशीर्वाद और सुरक्षा की कामना करता है। यह वसु, इंद्र, पूषा, वरुण, मित्र, अग्नि, और आदित्यों सहित विभिन्न देवताओं का आह्वान करता है ताकि वे व्यक्ति की महिमा को बनाए रखें और उसकी उन्नति करें। मंत्र ज्ञान, समृद्धि और श्रेष्ठता का वरदान मांगते हैं। यह प्रतिकूलताओं से सुरक्षा और उच्चतम आध्यात्मिक क्षेत्र में उठने की इच्छा भी व्यक्त करते हैं। यह आध्यात्मिक और भौतिक सफलता प्राप्त करने के लिए दिव्य समर्थन के महत्व पर जोर देता है, पवित्र ज्ञान और अर्पणों की शक्ति का आह्वान करता है।
इस सूक्त को सुनने से दिव्य आशीर्वाद मिलते हैं, आध्यात्मिक विकास होता है, और मानसिक स्पष्टता बढ़ती है। यह विभिन्न देवताओं से सुरक्षा और समर्थन प्राप्त करता है, समृद्धि और कल्याण सुनिश्चित करता है। सूक्त आंतरिक शांति को भी प्रोत्साहित करता है, बाधाओं को दूर करता है, और व्यक्ति की आध्यात्मिक स्थिति को ऊंचा करता है, जिससे जीवन अधिक सामंजस्यपूर्ण और संतोषजनक बनता है।
शिव और शक्ति एक ही सिक्के के दो पहलू जैसे हैं। जैसे चन्द्रमा के बिना चांदनी नहीं, चांदनी के बिना चन्द्रमा नहीं; शिव के बिना शक्ति नहीं और शक्ति के बिना शिव नहीं।
महत्वाद्भारवत्वाच्च महाभारतमुच्यते। एक तराजू की एक तरफ महाभारत और दूसरी बाकी सभी धर्म ग्रन्थ रखे गये। देवों और ऋषियों के सान्निध्य में व्यास जी के आदेश पर यह किया गया था। महाभारत बाकी सभी ग्रन्थों से भारी दिखाई दिया। भार और अपने महत्त्व के कारण इस ग्रन्थ का नाम महाभारत रखा गया। धर्म और अधर्म का दृष्टांतों के साथ विवेचन महाभारत के समान अन्य किसी भी ग्रन्थ में नहीं हुआ है।
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