वैष्णो देवी मंदिर जम्मू और कश्मीर के केंद्रशासित प्रदेश में स्थित है। यह रियासी जिले के कटरा में त्रिकुट पहाड़ियों पर् स्थित है। कटरा जम्मू से ४२ किलोमीटर की दूरी पर है।
वैष्णो देवी मंदिर दुर्गा देवी का एक महत्वपूर्ण स्थान है। माँ वैष्णो देवी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का संयुक्त अवतार हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु वैष्णो देवी आते हैं। नवरात्र के दौरान यह संख्या एक करोड़ तक पहुंच जाती है। मंदिर का वार्षिक आय १३०० अरब रुपये तक है। यह मंदिर हिंदुओं और सिखों के लिए मुख्य है।
वैष्णो देवी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का संयुक्त अवतार हैं, जो दुर्गा देवी के तामसिक, सात्विक और राजसिक पहलू हैं।
वैष्णो देवी का जन्म त्रेतायुग में हुआ था। एक बार महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती ने एक साथ मिलकर अपनी शक्तियों को एक साथ लाने का फैसला किया। जब उन्होंने ऐसा किया, तो यह एक ज्योति उत्पन्न हुई और वह एक लड़की में बदल गयी। उन्होंने उस लडकी को दक्षिण में रत्नाकर की बेटी के रूप में जन्म लेने के लिए कहा। वैष्णो देवी ने इस प्रकार जगत में धर्म की रक्षा करने के लिए जन्म लिया था।
एक बार, महा काली, महालक्ष्मी और महासरस्वती एक ही स्थान पर अपनी शक्तियों को एक साथ करना चाहती थीं। शक्तियों के मिलन से एक ज्योति प्रकट हो गयी। उस ज्योति से एक लडकी का जन्म हुआ था। उन्होंने उस लडकी से दक्षिण भारत में रत्नाकर के घर में जन्म लेने के लिए कहा। उस बालिका का नाम वैष्णवी रखा गया। वैष्णवी ने अपना अधिकांश समय जंगल में ध्यान में बिताया। त्रेता युग में, श्रीराम जी अपने वन वास के दौरान उस जंगल से गुजरे। वैष्णवी ने उन्हें पहचान लिया और उनसे सायुज्य के लिए प्रार्थना की। श्रीराम जी ने वापस आने पर उनसे फिर मिलने का वादा किया। लौटते समय वे एक बूढ़े के वेश में आये और वैष्णवी उन्हें पहचान न सकी। श्रीराम जी ने उन्हें त्रिकुटा पहाडियों में जाने और वहां तपस्या करने के लिए कहा। कलयुगग के अंत में जब वे कल्कि अवतार लेंगे, उस समय देवी उनमें विलीन हो सकती है। तब तक वे जगत में धर्म की रक्षा करती रहेगी।
वैष्णो देवी को ११वीं शताब्दी में गुरु गोरखनाथ जी ने खोज निकाला था। त्रेता युग में वैष्णो देवी और श्रीराम जी के बीच जो घटना घटी थी, वह उन्हें सपने में दिखाई दी। उनको लगा कि देवी अब भी त्रिकुटा पहाड़ियों में तपस्या कर रही होंगी। गोरखनाथ जी ने अपने शिष्य भैरवनाथ को देवी की खोज में भेजा। जब भैरवनाथ वहां पहुंचे, तो उन्होंने देवी को लंगूरों के बीच और एक शेर से बैठी हुई देखा। देवी अपने हाथों में धनुष और तीर ले रखी थी।
वैष्णो देवी को देखकर भैरवनाथ उसके सौंदर्य से आसक्त हो गए। वह देवी से शादी करने के अनुरोध के साथ उसका पीछा करता रहा। एक बार, देवी ने एक लड़की के रूप में प्रच्छन्न होकर गांव में एक भोज में आई थी। भैरवनाथ ने उन्हें पहचान लिया और गुफा के लिए लौटने पर उनके पीछे चला गया। उसके व्यवहार से नाराज होकर देवी ने उसका सिर काट दिया। उसका धड़ गुफा के अंदर है और उसका सिर पास की एक पहाड़ी की चोटी पर है। फिर देवी ने उसे माफ करके यह वरदान भी दिया की जो भी भक्त देवी का दर्शन करने आएगा वह पहले भैरवनाथ बाबा का दर्शन करेगा।
श्रीधर पंडित वैष्णो देवी के भक्त थे और वह पास के हंसाली गांव में रहते थे। एक बार, देवी ने उन्हें गांव के निवासियों के लिए एक भव्य भोज आयोजित करने के लिए कहा। उनके पास धन की कमी थी, तो देवी ने एक लड़की का रूप धारण कर लिया और रसोई में प्रचुर मात्रा में भोजन प्रकट किया। इस चमत्कार को देखने के बाद, श्रीधर ने अपना शेष जीवन गुफा में देवी की पूजा करते हुए बिताया और इस प्रकार वैष्णो देवी का पहला पुजारी बन गया। इसी भोज से लौटते समय देवी ने भैरवनाथ का वध किया था।
हाँ। श्रीराम जी के निर्देशानुसार, वैष्णो देवी अभी भी त्रिकुटा पहाडियों में तपस्या करती हैं। वर्तमान कलयुग के अंत में कल्कि के रूप में जब भगवान अवतार लेंगे तो देवी उनमें विलीन हो जायेगी। इसका अर्थ है देवी लगभग ४,२७,००० और वर्षों तक धरती पर रहेगी।
महाभारत काल में भी वैष्णो देवी गुफा अस्तित्व में थी। कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले अर्जुन ने मां वैष्णो देवी की पूजा की थी। मंदिर मूल रूप से पांडवों द्वारा बनाया गया था।
वे महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियां हैं।
मां वैष्णो देवी की पिंडियां ९८ फीट लंबी एक प्राकृतिक गुफा के अंत में हैं। मूल रूप से, देवी के दर्शन केवल इस गुफा से गुजरकर ही प्राप्त होता था। आजकल, यह मकर संक्रांति के बाद केवल कुछ दिनों के लिए ही भक्तों के लिए खोली जाती है।
गुफा मंदिर के अंदर महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के तीन पिंडियां हैं। पिंडियों के दाईं ओर, गणेश, सूर्य, चंद्र और अन्नपूर्णा के चिह्न हैं। पिंडियों के पीछे, एक शेर का चिह्न है और देवी की दाहिनी भुजा को आशीर्वाद देती हुई देख सकते हैं। पिंडियों के सामने पशुपतिनाथ और हनुमान जी के चिह्न हैं। पिंडियों के आधार से, पानी बहता रहता है। इसे चरण गंगा कहते हैं।
मंदिर साल भर खुला रहता है। मार्च से अक्टूबर तक मौसम सुहावना रहता है। सर्दियों के दौरान तापमान -5 डिग्री सैलिशयस तक गिर सकता है। हिमपात दिसंबर से फरवरी की शुरुआत तक होता है।
वैष्णो देवी समुद्र तट से ५,२०० फीट (१,५८५ मीटर) की ऊंचाई पर है।
जम्मू हवाई अड्डा वैष्णो देवी के सबसे नजदीक है। यह कटरा से ५० किलोमीटर दूरी पर है।
श्री माता वैष्णो देवी कटरा रेलवे स्टेशन।
कटरा से, एक दिन वैष्णो देवी मंदिर जाने और वापस आने के लिए पर्याप्त है।
कटरा से, वैष्णो देवी १२ किमी की चढ़ाई है। यदि आप हेलीकॉप्टर से जा रहे हैं, तो मंदिर २.५ किमी की पैदल दूरी पर है (सांझी छत से)।
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