श्रीवेङ्कटेश सुप्रभातम् के रचयिता हैं प्रतिवादि भयंकरं अण्णन्।
वेङ्कटेश सुप्रभातम् की रचना ईसवी सन १४२० और १४३२ के बीच में हुई थी।
नहि कृतमुपकारं साधवो विस्मरन्ति
एक नारियल का पेड जब छोटा होता है तब वह थोडा सा ही पानी पीता ....
Click here to know more..प्रारब्धमुत्तमजना न परित्यजन्ति
इस संसार में तीन श्रेणी के लोग होते हैं| तीसरे श्रेणी के ल....
Click here to know more..गोविन्दाष्टक स्तोत्र
सत्यं ज्ञानमनन्तं नित्यमनाकाशं परमाकाशं गोष्ठप्राङ्ग....
Click here to know more..॥ श्रीवेङ्कटेशसुप्रभातम् ॥
सुप्रभात स्तोत्र
कौसल्या सुप्रजा राम पूर्वासंध्या प्रवर्तते ।
उत्तिष्ठ नरशार्दूल कर्तव्यं दैवमाह्निकम् ||
कौसल्या सुप्रजा राम - कौसल्या देवी की सत्संतन स्वरूप हे श्रीराम;
पूर्वामंध्या - पूरब में संध्या
प्रवर्तते - निकल रही है
उत्तिष्ठ - उठो
नर शार्दूल - हे पुरुषश्रेष्ठ
कर्तव्यम् - करने हैं ।
दैवं आह्निकं - देवता संबंधी दिन में किये जाने वाले पूजा अर्चा आदि कार्य
कौसल्या देवी की सत्संतान स्वरूप हे श्रीराम, पूरब में अरुणोदय हो रहा है, उठो देवी और वंनिक पूजा आदि कार्य करने है; हे पुरुषश्रेष्ठ, नोंद से जाग उठो ।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद उत्तिष्ठ गरुडध्वज ।
उति कमलाकांत त्रैलोक्यं मंगलं कुरु ॥ २ ॥
उत्तिष्ठ उत्तिष्ठ - उठो उठो (नींद से जागो)
गोविंद - हे गोविंद
उत्तिष्ठ गरुड ध्वज - गरुड के ध्वजावाले, उठो
उत्तिष्ठ कमलाकांत हे लक्ष्मीनाथ, उठो
त्रैलोक्यं मंगलं कुरु - तीनों लोकों का मंगल करो ।
हे गोविंद ! निद्रा से जाग उठो, हे गरुडध्वज जल्दी उठो, हे लक्ष्मी- नाथ, जल्दी उठकर तीनों लोकों का शुभ संपादन करो ।
मातः समस्त जमतां मधुकैटभारेः
वक्षो विहारिणि मनोहर दिव्यमूर्ते ।
श्री स्वामिनि श्रितजन प्रियदानशीले
श्री वेंकटेशदयिते तव सुप्रभातम् ॥ ३ ॥
मातः समस्त जगतां - सारे जगत की माता
और कैटभ नाम के राक्षसों के शत्रु विष्णु की
मधुकैटभारेः वक्षो विहारिणि - मधु और कैटभ के शत्रु (विष्णु) की छाती पर विहार करनेवाली
मनोहर दिव्यमूर्ते - सुंदर दिव्य आकृति वाली
माननीया यजमानिनी श्रितजन प्रियदानशीले ;
श्रीस्वामिनि - आश्रितों की कामनाओं को पूरा करने की स्वभाववाली
श्रीवेंकटेशदयिते - श्रीवें- टेश्वर की पत्नी
तव सुप्रभातम् - तुम्हारा शुभोदय हो ।
सभी लोकों की मां, सदा विष्णु के वक्ष में रहनेवाली, दिव्य सुंदर विग्रहवाली, आश्रितों की कामनाओं को पूरा करनेवाली, हे श्रीवेंकटेश्वर की पत्नी, श्रीलक्ष्मी तुम्हारा शुभोदय हो ।
तव सुप्रभातमरविंदलोचने
भवतु प्रसन्नमुखचंद्रमंडले |
विधिश करें द्रवनिताभिरचिंते
वृषशैलनाथदयिते दयानिधे ॥ ४ ॥
अरविंदलोचने - पद्मों जैसी आंखोवाली;
प्रसन्नमुखचंद्रमंडले - चंद्रबिन के समान प्रसन्न मुख वाली;
विधिशंकरेंद्र वनिताभिरर्चिते - ब्रह्मा, शंकर और इंद्र की पत्नियों, अर्थात् वाणी, गिरिजा, और शची से पूजित होने- वाली
दयानिधे - दया की निधि
वृष्शैलनाथदयिते - वृषाचलनाथ श्री वेंकटेश्वर की पत्नी, हे लक्ष्मी;
तव सुप्रभातम् - तुम्हारा शुभोदय हो ।
हे लक्ष्मी! तुम कमल समान नेत्रवाली हो, चंद्रबिंब के समान प्रसन्न- मुखवाली हो, वाणी, गिरिजा और गच्ची से पूजित होनेवाली हो, दयानिधि हो। हे वृषभाचलेश्वर वेंकटेश की पत्नी, तुम्हारा शुभोदय हो ।
अत्र्यादि सप्तऋषयः समुपास्य संध्यां
आकाश सिंधुकमलानि मनोहराणि ।
आदाय पादयुगमर्चयितुं प्रपन्नाः
शेषाद्विशेखरविभो तव सुप्रभातम् ॥ ५ ॥
अत्र्यादि सप्त ऋषयः -- अत्रि आदि सातों ऋषि
समुपास्य संध्यां - संध्या की उपासना करके
मनोहराणि - मनोज्ञ
आकाशसिंधुकमलानि - आकाश गंगा के पद्मों को
आदाय - संग्रह करके
पादयुगमर्चयितुं - तुम्हारे पादयुगल की अर्चना करने
प्रपन्नाः - आये
शेषाद्रिशेखर विभो - शेषाद्रि के शिखर पर विराजमान, हे प्रभो,
तव सुप्रभातम् - तुम्हारा शुभोदय हो ।
अत्रि आदि सप्तर्षि सबेरे संध्या की उपासना करके आकाश गंगा के मनोज्ञ पद्मों को इकट्टाकर तुम्हारे चरणों की पूजा करने केलिए आये हैं । हे शेषाचलाधीश भगवान्, तुम्हारा शुभोदय हो ।
पंचाननाब्जभव षण्मुख वासवाद्याः
विक्रमादिचरितं विबुधाः स्तुवंति ।
भाषापतिः पठति वासर शुद्धिमारात्
शेषाद्रिशेखर विभो तव सुप्रभातम् ॥ ६ ॥
पंचानन, अब्जभव षण्मुख, वासवाद्या:- शंकर, ब्रह्मा, कुमार, इंद्र आदि
विबुधाः - देवगण
विक्रमादि चरितं - तुम्हारे त्रिविक्रम अवतार आदि चरितों का
स्तुवंति - स्तोत्र कर रहे हैं
भाषापतिः - देवगुरु बृहस्पति
आरात् - समीप में
पठति वासर शुद्धिमारात् - दिनशुद्धि को पंचांग देखकर
पठति - पढ रहा है
शेषाद्रि शेखर विभो - हे शेषाचलवासी प्रभो
तव सुप्रभातम् - तुम्हारा शुभादय हो ।
ब्रह्मा, शिव, स्कंद, इंद्र प्रभूति देवतागण तुम्हारे त्रिविक्रम अवतार आदि दिव्य चरितों का स्तोत्र कर रहे हैं।
बृहस्पति पंचांग पढ कर दिन- शुद्धि सुना रहे है। हे शेषाचलाधीश, तुम्हारा शुभोदय हो ।
ईषत्प्रफुल्ल सरसीरुह नारिकेल
पूगद्रुमादि सुमनोहर पालिकानाम् ।
आवाति मंदमनिलः सह दिव्यगंधैः
शेषाद्रिशेखर विभो तव सुप्रभातम् ॥ ७ ॥
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