Pratyangira Homa for protection - 16, December

Pray for Pratyangira Devi's protection from black magic, enemies, evil eye, and negative energies by participating in this Homa.

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विभिन्न स्वरूपों में त्र्यम्बकं यजामहे

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वेदधारा से जुड़ना एक आशीर्वाद रहा है। मेरा जीवन अधिक सकारात्मक और संतुष्ट है। -Sahana

वेदधारा के माध्यम से हिंदू धर्म के भविष्य को संरक्षित करने के लिए आपका समर्पण वास्तव में सराहनीय है -अभिषेक सोलंकी

सचमुच अद्भुत मंत्र है..धन्यवाद! -अन्वेषा

वेदधारा के साथ ऐसे नेक काम का समर्थन करने पर गर्व है - अंकुश सैनी

आपको नमस्कार 🙏 -राजेंद्र मोदी

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भगवान ने संसार क्यों बनाया?

उपनिषद कहते हैं - एकाकी न रमते स द्वितीयमैच्छत्। एकोऽयं बहु स्यां प्रजायेय। ईश्वर अकेले थे और उनको लगा की अकेले रहना संतुष्टिदायक नहीं है। इसलिए, उन्होंने संगती की कामना की और लोक बनाने का फैसला किया। ऐसा करने के लिए, उन्होंने स्वयं को बढ़ाया और हमारे चारों ओर सब कुछ बन गया। सृष्टि का यह कार्य विविधता और जीवन को अस्तित्व में लाने का ईश्वर का तरीका था। यह व्याख्या हमें याद दिलाती है कि संसार और इसमें विद्यमान हर वस्तु ईश्वर के आनंद की इच्छा की अभिव्यक्ति है। यह सभी प्राणियों की एकता का भी प्रतीक है, क्योंकि हम सभी एक ही दिव्य स्रोत से आए हैं।

ऋषि नारद कहते हैं...

किसी चीज़ को केवल इसलिए खारिज मत करो क्योंकि आप उसे समझते नहीं हैं। यदि आप किसी अपरिचित चीज़ से सामना करते हैं, तो केवल इसलिए मत सोचिए कि वह गलत है या झूठ है क्योंकि आप उसे नहीं जानते। सीखने की प्रक्रिया चरण-दर-चरण होती है। पहले, आपको ज्ञान प्राप्त करने के लिए अध्ययन करना चाहिए। फिर उस ज्ञान का उपयोग करके विषय को गहराई से समझना चाहिए। जब आप इसे अच्छी तरह से समझ लेते हैं, तभी आप इसके बारे में सही निर्णय ले सकते हैं। सरल शब्दों में, यह सलाह देता है कि राय बनाने से पहले खुले मन और धैर्य के साथ सीखने की कोशिश करें।

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अंश नामक देवता किस देवतागण के अंगभूत हैं

ॐ श्रीगुरुभ्यो नमः हरिःॐ संहितापाठः त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। पदपाठः त्र्यंबकमिति त्रि-अम्बकम्। यजामहे। सुगन्धिमिति सु-गन्धिम्। पुष्टिवर्धन....

ॐ श्रीगुरुभ्यो नमः हरिःॐ
संहितापाठः
त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्।
पदपाठः
त्र्यंबकमिति त्रि-अम्बकम्। यजामहे। सुगन्धिमिति सु-गन्धिम्। पुष्टिवर्धनमिति पुष्टि-वर्धनम्। उर्वारुकम्। इव। बन्धनात्। मृत्योः। मुक्षीय। मा। अमृतात्।
क्रमपाठः
त्र्यंबकं यजामहे। त्र्यंबकमिति त्रि-अम्बकम्। यजामहे सुगन्धिम्। सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। सुगन्धिमिति सु-गन्धिम्। पुष्टिवर्धनमिति पुष्टि-वर्धनम्। उर्वारुकमिव। इव बन्धनात्। बन्धनान्मृत्योः। मृत्योर्मुक्षीय। मुक्षीय मा। माऽमृतात्। अमृतादित्यमृतात्।
जटापाठः
त्र्यंबकं यजामहे यजामहे त्र्यंबकन्त्र्यंबकं यजामहे। त्र्यंबकमिति त्रि-अम्बकम्। यजामहे सुगन्धिं सुगन्धिं यजामहे यजामहे सुगन्धिम्। सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं पुष्टिवर्धनं सुगन्धिं सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। सुगन्धिमिति सु-गन्धिम्। पुष्टिवर्धनमिति पुष्टि-वर्धनम्। उर्वारुकमिवेवोर्वारुकमुर्वारुकमिव। इव बन्धनाद्बन्धनादिवेव बन्धनात्। बन्धनान्मृत्योर्मृत्योर्बन्धनाद्बन्धनान्मृत्योः। मृत्योर्मुक्षीय मुक्षीय मृत्योर्मृत्योर्मुक्षीय। मुक्षीय मा मा मुक्षीय मुक्षीय मा। माऽमृतादमृतान्मा माऽमृतात्। अमृतादित्यमृतात्।
घनपाठः
त्र्यंबकं यजामहे यजामहे त्र्यंबकन्त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं सुगन्धिं यजामहे त्र्यंबकं त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिम्। त्र्यंबकमिति त्रि-अम्बकम्। यजामहे सुगन्धिं सुगन्धिं यजामहे यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं पुष्टिवर्धनं सुगन्धिं यजामहे यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं पुष्टिवर्धनं सुगन्धिं सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। सुगन्धिमिति सु-गन्धिम्। पुष्टिवर्धनमिति पुष्टि-वर्धनम्। उर्वारुकमिवेवोर्वारुकमुर्वारुकमिव बन्धनाद्बन्धनादिवोर्वारुकमुर्वारुकमिव बन्धनात्। इव बन्धनाद्बन्धनादिवेव बन्धनान्मृत्युर्मृत्योर्बन्धनादिवेव बन्धनान्मृत्योः। बन्धनान्मृत्योर्मृत्योर्बन्धनाद्बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मुक्षीय मृत्योर्बन्धनाद्बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय। मृत्योर्मुक्षीय मुक्षीय मृत्योर्मृत्योर्मुक्षीय मा मा मुक्षीय मृत्योर्मृत्योर्मुक्षीय मा। मुक्षीय मा मा मुक्षीय मुक्षीय माऽमृतादमृतान्मा मुक्षीय मुक्षीय माऽमृतात्। माऽमृतादमृतान्मा माऽमृतात्। अमृतादित्यमृतात्।
हरिःॐ

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