लक्ष्मी साधना

आदिशक्ति - महालक्ष्मी परिचय
शास्त्रों और पुराणों में महालक्ष्मी की उपमा आदिशक्ति भगवती के रूप में की गई है। अम्बे महालक्ष्मी की असीम कृपा से ही मानव को धन-दौलत, खुशी, हंसी और श्रेय की प्राप्ती होती है। ये दया की सागर और उदारता की महारानी है। महालक्ष्मी अपने भक्तों पर सदैव दया ही 'करना चाहती है-
इनके पास तो कभी कठोरता आती ही नहीं, इसलिए तो संसार में पापियों और अत्याचारियों के पास भी धन की कमी नहीं होती। जो भी जातक इनकी उपासना करता है वह जातक भाग्य में मिलने वाली निर्धनता को भी ’धनता’ में बदल कर रख देता है। इस प्रकार ’हरि’ की उपासना से उतना शीघ्र लाभ नहीं हो पाता, जितना ’हरिप्रिया’ (महालक्ष्मी) की उपासना से ।
शास्त्रों और पुराणों में जितनी देवियों की कथा और उपमा है, ये सभी रूप महालक्ष्मी के ही हैं। इसका प्रमाण ’दुर्गा सप्तसती’ में मिलता है । जिसके अन्तगर्त स्वयं अम्बिके ’दुर्गा’ जी ने कही है कि मैं ही काली
और संसार के समस्त ’नारी’ जीव मेरे ही रूप हैं। मैं पुण्ययात्माओं के घरों में स्वयं लक्ष्मी रूप में पापियों के घरों में अलक्ष्मी (दरिद्री) के रूप में, सच्चे मानव के हृदय में श्रद्धा रूप में और कुलिनों के घर में लज्जा रूप में निवास करती हूँ। ये अमृत वाणी सृष्टिं में समस्त जीवों को प्रदान करने वाली देवी स्वयं महालक्ष्मी थी जो कि सभी देवतओं की प्रार्थना पर महिषासुर आदि दानवों के देवतओं को मुक्त कराने के लिए प्रकट हुई थी । अतः महालक्ष्मी जी संसार के समस्त उपासकों के घरों को धन-जन से परिपूर्ण रखती हैं जो भी उपासक महारानी महालक्ष्मी की उपासना करते हैं उन्हें जीवन में कभी भी धन-जन का अभाव नहीं होता और इस लोक में सुख भोगकर अन्त में लक्ष्मी लोक प्राप्त करते हैं।
आदिशक्ति श्री महालक्ष्मी का प्रार्दुभाव
आदिशक्ति महालक्ष्मी प्रादुर्भाव के सम्बन्ध में जो अन्य आधुनिक लक्ष्मी उपासना में वर्णन वणित है वो ’सागर मन्थन’ के समय से उठाया गया है और सागर से निकली हुई श्री लक्ष्मी को ही महालक्ष्मी की संज्ञा दी गई है-
किन्तु ’ब्रह्मवैवर्तपुराण’ के अनुसार महालक्ष्मी का आगमन सृष्टि के आदिकाल में ही हुआ है। इनके अनुसार पारब्रह्मा के साथ विराजने वाली प्रथम ’नारी शक्ति’ को महालक्ष्मी की उपमा दी गई है और भगवान विष्णु को ही निराकार पारब्रह्म कहा गया है। पुराण के अनुसार पारब्रह्म ने वाराह कल्प में जब पृथ्वी जलमग्न हो गई थी तब भगवान विष्णु से वाराह का रूप धारण करवाकर इसका उद्धार किया और फिर से सृष्टि की रचना की ।
पादम् कल्प में भगवान विष्णु की नाभी कमल पर ब्रह्मा का निमार्ण हुआ और फिर सृष्टि की रचना हुई। इसके पश्चात् विष्णु के बांये भाग से एक सुन्दर कन्या प्रकट हुई और उनके साथ शेषसेय्या पर विराजमान हो गयीं और यही महाशक्ति महालक्ष्मी कहलायीं ।
इन्होंने पार्वती जी के पूछने पर स्वयं ही बखान किये हैं कि हे महेश्वरी श्री विष्णु भगवान ही अद्वितीय सच्चिदानंद पारब्रह्म हैं। वे सभी उपाधियों से मुक्त हैं व मन वाणि से अविषय हैं, निष्फल, निरंजन, निविदार, निर्मल और शांत हैं। मैं उनकी पराशक्ति हूं। मेरे बिना वे किसी कार्य को भी सम्पन्न नहीं कर सकते और वेदवेत्ता मुझे मूल प्रकृति’ कहते हैं। श्री महाविष्णु के सान्धियमात्र से मैं ही इस जगत की उत्पत्ती, पालन और संधार करती हूँ। अनेक अवतार भी मैं ही धारण करती हूँ। पुराण में वर्णित आदिशक्ति की ये अमृतमय वाणी से स्पष्ट हो जाता है कि ’आदिशक्ति’ स्वयं ही महालक्ष्मी है।
श्री महालक्ष्मी जी के अन्य अवतार
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार महालक्ष्मी जी के अवतार और उनके प्रकट होने के स्थान का विवरण इस प्रकार है-
1. महालक्ष्मी - बैकुण्ठ में ।
2. राधा नाम की लक्ष्मी-गोलोक में । 3. स्वर्ग लक्ष्मी स्वर्ग लोक में। 4. राज लक्ष्मी - भूलोक में ।
5. दक्षिणा नाम की लक्ष्मी- यज्ञ में। 6. सुरभि - गोलोक में ।
7. शोभा नाम की लक्ष्मी - चन्द्रलोक में.
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार बैकुण्ठ में लोक गोलोक से पचास करोड़ योजन नीचे स्थित है। स्वयं ब्रह्मा भी यहां के परम लुभावने दृश्य देखकर हर्ष चकित हो गये थे। इस लोक में महालक्ष्मी पारब्रह्म परमेश्वर रूपी विष्णु भगवान के साथ विराजी हैं।
गोलोक बैकुण्ठ लोक से पचास करोड़ योजन दूर उत्तरी भाग में अवस्थित है और यहीं पर स्वयं को कुरूक्षेत्र के मैदान में पारबा कहने वाले भगवान कृष्ण का (जो कि विष्णु के ही रूप हैं) राधा नाम की लक्ष्मी के साथ निवास हैं। यहां का वर्णन करते हुए स्वयं ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा कि हे महाऋषि ! यहां पर परात्मा पारब्रह्म श्री कृष्ण का निवास है वह गोलोक सभी लोकों में अति सुन्दर है । कहीं बहुमूल्य रत्नों की खान शोभायमान है तो कहीं स्फटिक की भांति उज्जवल नदी की तह है। कहीं मर्कत और स्वयंमंजक मणियों के भण्डार हैं तो कहीं पारिजात वृक्षों की वन श्रेणियां हैं। कल्प वृक्ष और कामधेनुओं से भरा हुआ प्रदेश बड़ा मनोरम है। वहां पर भी राधा जी के प्रिंस वृन्दावन नामक वन हैं। उसमें कस्तूरी भरे कमल, पत्तों के फूलों से सुगंधित नई पल्लवों पर बैठी कोयल कूक सुना रही है। मल्लिका, मालती, केतकी और माधवी लताओं से वह वन युक्त है। महारानी लक्ष्मी राधा जी का वह अंति मनोहर निवास स्थल बड़ा मनोहारी है और उसकी लम्बाई-चौड़ाई तीन करोड़ योजन है। जहां पर महालक्ष्मी जी सुन्दर रूप धारण कर अपनी विविध विभुतियों द्वारा भगवान के चरण कमलों की सेवा करती हैं।
अतः श्री महालक्ष्मी अनेकों रूप धारण कर देवताओं और भक्तों के कष्ट को दूर कर धन-जन से परिपूर्ण करती है और इनका निवास स्वग लोक में है। भगवान विष्णु के सभी कार्यों को सम्पन्न कराने वाली महालक्ष्मी ही हैं जो सदैव उनके सभी अवतार में शक्ति के रूप मे साथ निभाती हैं।

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

हिन्दी

हिन्दी

आध्यात्मिक ग्रन्थ

Click on any topic to open

Copyright © 2025 | Vedadhara test | All Rights Reserved. | Designed & Developed by Claps and Whistles
| | | | |
Vedahdara - Personalize
Whatsapp Group Icon
Have questions on Sanatana Dharma? Ask here...

We use cookies