रुद्र सूक्त: सुरक्षा और समृद्धि के लिए

परि णो रुद्रस्य हेतिर्वृणक्तु परि त्वेषस्य दुर्मतिरघायो:।
अव स्थिरा मघवद्भ्यस्तनुष्व मीढ्वस्तोकाय तनयाय मृडय॥
स्तुहि श्रुतं गर्तसदं युवानम्मृगं न भीममुपहत्नुमुग्रम्।
मृडा जरित्रे रुद्र स्तवानो अन्यं ते अस्मन्नि वपन्तु सेना:॥
मीढुष्टम शिवतम शिवो न: सुमना भव।
परमे वृक्ष आयुधं निधाय कृत्तिं वसान आ चर पिना कं बिभ्रदा गहि॥
अर्हन्बिभर्षि सायकानि धन्व।
अर्हन्निष्कं यजतं विश्वरूपम्॥
अर्हन्निदं दयसे विश्वमब्भुवम्।
न वा ओजीयो रुद्र त्वदस्ति॥
त्वमग्ने रुद्रो असुरो महो दिवस्त्वँ शर्धो मारुतं पृक्ष ईशिषे।
त्वं वातैररुणैर्यासि शङ्गयस्त्वं पूषा विधतः पासि नु त्मना॥
आ वो राजानमध्वरस्य रुद्रँ होतारँ सत्ययजँ रोदस्योः।
अग्निं पुरा तनयित्नोरचित्ताद्धिरण्यरूपमवसे कृणुध्वम्॥

Mantras

Mantras

मंत्र

Click on any topic to open

Copyright © 2025 | Vedadhara | All Rights Reserved. | Designed & Developed by Claps and Whistles
| | | | |
Vedahdara - Personalize
Whatsapp Group Icon
Have questions on Sanatana Dharma? Ask here...