रामनवमी श्रीराम जी का जन्मदिन है।
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष नवमी को रामनवमी मनायी जाती है।
रावण के अत्याचारों से पृथ्वी को बचाने और सनातन धर्म की मर्यादाओं को स्थापित करने इसी दिन भगवान श्रीरामचन्द्र प्रकट हुए।
रामनवमी समस्त जगत के लिए उत्सव का दिन है।
भगवान श्रीराम के पावन चरित्र को सुनने से, गाने से और उसका अनुकरण करने से जीव सुख और श्रेय को पा सकता है।
श्रीराम जी ने न केवल रावण का वध किया बल्कि उन्होंने दिखाया कि एक आदर्श पुरुष, आदर्श राजा, आदर्श धर्मात्मा, आदर्श मित्र, आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श शिष्य, आदर्श गुरु, आदर्श स्वामी, आदर्श सेवक, आदर्श वीर, आदर्श दयालु, आदर्श अभयदाता, आदर्श सत्यवादी और आदर्श संयमी बनकर कैसे जीना है।
श्रीराम जी हिन्दुओं के ही नहीं समस्त मानव जाति के आदर्श पुरुष हैं।
श्रीराम जी मानते थे कि बहुतों को साथ लेकर चलने में सच्चा सुख है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी पर्यंत यह त्योहार होता है।
इन दिनों में -
अगर नवमी पुनर्वसु नक्षत्र के साथ हो तो और भी श्रेष्ठ है।
सूर्योदय के समय अगर अष्टमी हो तो वह दिन छोडकर अगले दिन व्रत रखना चाहिए।
पहले दिन से ही इंद्रियों को संयम में रखें।
विषय सुखों से दूर रहें।
हो सके तो नवमी के दिन प्रातः स्नान किसी नदी में करें।
प्रातः काल में पूजा की चौकी को अच्छे से सजाकर उस पर सियाराम जी की मूर्ति या फोटो रखकर पूजा करें।
चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य इत्यादियों से पूजन करें।
इन १०८ नामों से अर्चना करें -
ॐ श्रीरामाय नमः ।
ॐ रामभद्राय नमः ।
ॐ रामचन्द्राय नमः ।
ॐ शाश्वताय नमः ।
ॐ राजीवलोचनाय नमः ।
ॐ श्रीमते नमः ।
ॐ राजेन्द्राय नमः ।
ॐ रघुपुङ्गवाय नमः ।
ॐ जानकीवल्लभाय नमः ।
ॐ जैत्राय नमः ॥ १०॥
ॐ जितामित्राय नमः ।
ॐ जनार्दनाय नमः ।
ॐ विश्वामित्रप्रियाय नमः ।
ॐ दान्ताय नमः ।
ॐ शरणत्राणतत्पराय नमः ।
ॐ वालिप्रमथनाय नमः ।
ॐ वाग्मिने नमः ।
ॐ सत्यवाचे नमः ।
ॐ सत्यविक्रमाय नमः ।
ॐ सत्यव्रताय नमः ॥ २०॥
ॐ व्रतधराय नमः ।
ॐ सदाहनुमदाश्रिताय नमः ।
ॐ कौसलेयाय नमः ।
ॐ खरध्वंसिने नमः ।
ॐ विराधवधपंडिताय नमः ।
ॐ विभीषणपरित्रात्रे नमः ।
ॐ हरकोदण्डखण्डनाय नमः ।
ॐ सप्ततालप्रभेत्रे नमः ।
ॐ दशग्रीवशिरोहराय नमः ।
ॐ जामदग्न्यमहादर्पदलनाय नमः ॥ ३०॥
ॐ ताटकान्तकाय नमः ।
ॐ वेदान्तसाराय नमः ।
ॐ वेदात्मने नमः ।
ॐ भवरोगस्य भेषजाय नमः ।
ॐ दूषणत्रिशिरोहन्त्रे नमः ।
ॐ त्रिमूर्तये नमः ।
ॐ त्रिगुणात्मकाय नमः ।
ॐ त्रिविक्रमाय नमः ।
ॐ त्रिलोकात्मने नमः ।
ॐ पुण्यचारित्रकीर्तनाय नमः ॥ ४०॥
ॐ त्रिलोकरक्षकाय नमः ।
ॐ धन्विने नमः ।
ॐ दंडकारण्यवर्तनाय नमः ।
ॐ अहल्याशापविमोचनाय नमः ।
ॐ पितृभक्ताय नमः ।
ॐ वरप्रदाय नमः ।
ॐ जितेन्द्रियाय नमः ।
ॐ जितक्रोधाय नमः ।
ॐ जितमित्राय नमः ।
ॐ जगद्गुरवे नमः ॥ ५०॥
ॐ ऋक्षवानरसङ्घातिने नमः ।
ॐ चित्रकूटसमाश्रयाय नमः ।
ॐ जयन्तत्राणवरदाय नमः ।
ॐ सुमित्रापुत्रसेविताय नमः ।
ॐ सर्वदेवादिदेवाय नमः ।
ॐ मृतवानरजीवनाय नमः ।
ॐ मायामारीचहन्त्रे नमः ।
ॐ महादेवाय नमः ।
ॐ महाभुजाय नमः ।
ॐ सर्वदेवस्तुताय नमः ॥ ६०॥
ॐ सौम्याय नमः ।
ॐ ब्रह्मण्याय नमः ।
ॐ मुनिसंस्तुताय नमः ।
ॐ महायोगिने नमः ।
ॐ महोदराय नमः ।
ॐ सुग्रीवेप्सितराज्यदाय नमः ।
ॐ सर्वपुण्याधिकफलाय नमः ।
ॐ स्मृतसर्वौघनाशनाय नमः ।
ॐ आदिपुरुषाय नमः ।
ॐ परमपुरुषाय नमः ॥ ७०॥
ॐ महापुरुषाय नमः ।
ॐ पुण्योदयाय नमः ।
ॐ दयासाराय नमः ।
ॐ पुराणपुरुषोत्तमाय नमः ।
ॐ स्मितवक्त्राय नमः ।
ॐ मितभाषिणे नमः ।
ॐ पूर्वभाषिणे नमः ।
ॐ राघवाय नमः ।
ॐ अनन्तगुणगम्भीराय नमः ।
ॐ धीरोदात्तगुणोत्तमाय नमः ॥ ८०॥
ॐ मायामानुषचारित्राय नमः ।
ॐ महादेवादिपूजिताय नमः ।
ॐ सेतुकृते नमः ।
ॐ जितवाराशये नमः ।
ॐ सर्वतीर्थमयाय नमः ।
ॐ हरये नमः ।
ॐ श्यामाङ्गाय नमः ।
ॐ सुन्दराय नमः ।
ॐ शूराय नमः ।
ॐ पीतवाससे नमः ॥ ९०॥
ॐ धनुर्धराय नमः ।
ॐ सर्वयज्ञाधिपाय नमः ।
ॐ यज्विने नमः ।
ॐ जरामरणवर्जिताय नमः ।
ॐ शिवलिङ्गप्रतिष्ठात्रे नमः ।
ॐ सर्वापगुणवर्जिताय नमः ।
ॐ परमात्मने नमः ।
ॐ परब्रह्मणे नमः ।
ॐ सच्चिदानन्दविग्रहाय नमः ।
ॐ परञ्ज्योतिषे नमः ॥ १००॥
ॐ परन्धाम्ने नमः ।
ॐ पराकाशाय नमः ।
ॐ परात्पराय नमः ।
ॐ परेशाय नमः ।
ॐ पारगाय नमः ।
ॐ पाराय नमः ।
ॐ सर्वदेवात्मकाय नमः ।
ॐ परस्मै नमः ॥ १०८॥
इस आरती को करें -
आरती कीजे श्री रघुवर जी की
सत चित आनंद शिव सुन्दर की
दशरथ तनय कौशल्या नंदन
सुर मुनि रक्षक दैत्य निकंदन
अनुगत भक्त-भक्त उर चन्दन
मर्यादा पुरुषोत्तम वर की
आरती कीजे श्री रघुवर जी की
सतचित आनंद शिव सुन्दर की
निर्गुण-सगुण अनूप रूप निधि
सकल लोक वन्दित विभिन्न विधि
हरण शोक-भय दायक नव निधि
माया रहित दिव्य नर वर की
आरती कीजे श्री रघुवर जी की,
सतचित आनंद शिव सुन्दर की
जानकी पति सुर अधिपति जगपति
अखिल लोक पालक त्रिलोक गति
विश्व वन्द्य अनवद्य अमित गति
एकमात्र गति सचराचर की
आरती कीजे श्री रघुवर जी की
सतचित आनंद शिव सुन्दर की
शरणागत वत्सल व्रतधारी
भक्त कल्प तरुवर असुरारी
नाम लेत जग पावनकारी
वानर सखा दीन दुःख हर की
आरती कीजे श्री रघुवर जी की
सत चित आनंद शिव सुन्दर की
हाथों में फूल लेकर ऐसा कहकर श्रीचरणों में समर्पित करें -
देवों के देव, अनन्त रूपों को धारण करनेवाले, शार्ङ्ग नामक धनुष को धारण करनेवाले, चिन्मय, रघुराम जी को, परिवार समेत सियाराम जी को बार बार नमस्कार करता / करती हूं।
ऐसा कहकर परिक्रमा करें -
ब्रह्महत्या जैसे घोर पाप भी इस प्रदक्षिणा को करते करते नष्ट हो जायें।
जो रामनवमी को दिन भर उपवास रखता है, रातभर जागरण करता है, श्रीराम जी की पूजा करता है और दान करता है वह समस्त दुरितों से और समस्याओं से मुक्ति पाएगा।
उस दिन धरती पर परिवार समेत सियाराम जी का विशेष सान्निध्य रहता है।
रामनवमी को मनाने से और व्रत का आचरण करने से मन शुद्ध हो जाता है।
समाज में सद्भाव, समभाव और सहभावबढता है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने इसी दिन श्री रामचरित मानस की रचना का प्रारंभ किया था।
श्रीराम जी, सीता माता और लक्ष्मण जी वन से जा रहे थे।
सीता माता और लक्ष्मण जी थके हुए थे।
इसलिए तीनों ने कुछ समय के लिए आराम करने रुक गये।
उन्हें पास में एक बुढिया का घर मिला।
बुढिया सूत कात रही थी।
बुढिया ने उन्हें घर के अन्दर बुलाकर भोजन के लिये बिठाया।
श्रीराम जी ने कहा - माई, पहले मेरे हंस को मोती चुगाओ, तभी हम भोजन करेंगे।
गरीब बेचारी के पास मोती कहां से आएगा?
वह दुविधा में पड गयी।
उसने राजा के पास जाकर एक मुट्ठी भर मोती उधार में मांगा।
राजा सोचे - इसके पास खाने को भी नहीं है, कैसे उधार चुका पाएगी?
फिर भी राजा ने उसे मोती दे दिया।
बुढिया उसे लेकर घर गयी।
हंस को चुगाकर अतिथियों को भोजन करवायी।
सुबह होकर निकलते समय श्रीराम जी ने बुढिया के घर के सामने मोती का एक पेड लगा दिया।
पेड दिन ब दिन बडा हुआ।
उसमें मोती होने लगे।
आसपास के लोग चुग-चुगकर मोती ले जाने लगे।
मोती के बारे में पता चलने पर बुढिया ने उनकी एक पोटली बांधकर राजा को दे दिया।
इतनी सारी अनमोल मोती देखकर राजा विस्मित हो गये।
राजा के द्वारा पूछे जाने पर बुढिया ने उन्हें मोती के पेड के बारे में बताया।
राजा लालची हो गये और बुढिया से बोले - वह पेड मुझे दे दो।
बुढिया बोली - मुझे उससे कोई काम नहीं है; आसपास के लोग ही मोती ले जाते हैं।
आप चाहे तो ले लीजिए।
राजा ने सैनिकों द्वारा उस पेड को लाकर अपने महल के सामने लगवाया।
तब से उस पेड में मोती की जगह कांटे होने लगे।
महल में आते हुए लोगों के कपडे कांटों से खराब होने लगे।
एक दिन रानी की एडी में भी एक कांटा चुभ गया।
तंग आकर राजा ने पेड को बुढिया के पास वापस भेज दिया।
तब से पेड पर मोती फिर से होने लगे।
रामनवमी के दिन श्रीराम जी की इस महिमा के बारे में पढने या सुनने वालों की समस्त मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।
राम नवमी चैत्र मास की शुक्ल पक्ष नवमी को मनायी जाती है। यह श्रीराम जी का जन्म दिन है। दुर्गा नवमी आश्विन मास की शुक्ल नवमी को मनायी जाती है। यह आसुरी शक्तियों के ऊपर देवी भगवती की जीत का त्योहार है।
कबीरदास जी के अनुसार आदि राम - एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा, एक राम का सकल उजियारा, एक राम जगत से न्यारा - हैं। दशरथ के पुत्र राम परमात्मा, जगत की सृष्टि और पालन कर्ता हैं।
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