1. காமம் - ஆசை 2. க்ரோதா - கோபம் 3. லோபம் - பேராசை 4. மோகம் - அறியாமை 5. மதம் - ஆணவம் 6. மாத்சர்யம் - போட்டியிட ஆசை
விபீஷணனின் இலங்கையின் இரகசியங்களைப் பற்றிய அந்தரங்க அறிவு, இராமரின் மூலோபாய நகர்வுகளில் ஒரு முக்கிய பங்கைக் கொண்டிருந்தது, ராவணன் மீதான அவனது வெற்றிக்குக் குறிப்பிடத்தக்கப் பங்களிப்பை அளித்தது. எடுத்துக்காட்டாக - ராவணனின் படை மற்றும் அதன் தளபதிகளின் பலம் மற்றும் பலவீனங்கள் பற்றிய விரிவான தகவல்கள், ராவணனின் அரண்மனை மற்றும் கோட்டைகள் பற்றிய விவரங்கள் மற்றும் ராவணனின் அழியாத ரகசியம். சிக்கலான சவால்களைச் சமாளிக்கும் போது உள் தகவல்களை வைத்திருப்பதன் முக்கியத்துவத்தை இது விளக்குகிறது. உங்கள் தனிப்பட்ட மற்றும் தொழில் வாழ்க்கையில், ஒரு சூழ்நிலை, அமைப்பு அல்லது பிரச்சனை பற்றிய விரிவான, உள் அறிவை சேகரிப்பது உங்கள் மூலோபாய திட்டமிடல் மற்றும் முடிவெடுப்பதை மேம்படுத்தும்
பஞ்சவக்த்ர ருத்ர காயத்ரி மந்திரம்
பஞ்சவக்த்ராய வித்³மஹே ஜடாத⁴ராய தீ⁴மஹி தன்னோ ருத்³ர꞉ ப்....
Click here to know more..கார்த்திகேய ப்ரஜ்ஞா விவர்த்தன ஸ்தோத்திரம்
யோகீஶ்வரோ மஹாஸேன꞉ கார்திகேயோ(அ)க்னிநந்தன꞉. ஸ்கந்த꞉ கும....
Click here to know more..Karunakara Vishnu Stotram
sharanaagataanaam. he naatha yadyatha bibharshi paraangmukhaamstvametaadri'shaamstadaasi satyamatugraheetaa. naatha tvameva yadi sarvajaganmayastanmaa....
Click here to know more..यह कोमल तन, सुकुमार, कहाँ? वह कहाँ विपिन सङ्कटमय है? जिसमें वनचरों, राक्षसों का व्यालों का, बाघों का भय है ॥ अय कैसा, जब साथ है मेरे रघुकुलराज ?
वैदेहो ने वचन यह, कहे - छोड़कर लाज ॥ जब दर्शन सुखमय का होगा तो कानन सङ्कटमय कैसा ? सिंहिनी सिंह के साथ रहे तो उसको डर या भय कैसा? क्या कहा जानको कोमल है ? जो नहीं गमन के लायक है। जानकीनाथ, क्या है कठोर ? उनका तन वन के लायक है ? कहने को हम अबलाएँ हैं, पर हममें कितने ही बल हैं। हम कठोर से भी हैं कठोर, हम कोमल से भो कोमल हैं । सुखियों को भी दुख सहनशक्ति आती अवसर पढ़ने पर है। मन साथ लिया जाए तो फिर जङ्गल या महल बराबर है ॥ मोटे मोटे गद्दों पर भी - अनमना जिन्हें होते देखा । आपड़ा समय तो उनको ही-काँटों पर है सोते देखा ॥ रघुराई कहने लगे- हैं यह वचन उदार किन्तु तुम्हारे गमन में बाधक एक विचार ॥
में कैसे ले चल सकता हूँ ? जब हूँ आज्ञा के बन्धन में। मँझली माँ ने यह नहीं कहा सोता भी जाएगी वन में ॥ अब तुमका साथ ले चलूँ तो वह बात धान की जाती है। माँ कह देंगो- वनवास कहाँ!-जब साथ जानको जाती है? यह सुन बोलीं जानकी- है यदि यही विचार-
तो पहले कर चुकीं हूँ मैं इसका प्रतिकार ॥ कर चुकीं बड़ी माता मुझसे वे योगी तो तू योगिनि हो । दे चुकीं, मुझे भी आज्ञा यह बाजे ! तू भी बनवासिनि हो ॥
पति उधर श्राज्ञा पाल रहे, मैं इधर आज्ञा पालूँगी । पति अपना धर्म संभाल रहे, मैं अपना धर्म सँभालूँगो ॥ दासी है प्रभु की अर्द्धाङ्गिन, छाया को भाँति साथ में है ॥ मेरे जीवन की डोरी तो प्राणेश्वर, इसी हाथ में है ॥
जैसे दो जानन्द मीन को अथाह सागर में, मणि से हो जैसे कि जानन्द जहिफण में । चन्द्रमा के सामने चकोर को धानन्द जैसे, जैसे हो आनन्द युवती को आभरण में ॥ प्रजा को जानन्द जैसे प्रजाप्रिय राजा से ही, भक्त को आनन्द जैसे हरि की शरण में ॥ र को आनन्द जैसा राज-निधि पाए से हो, वैसा है आनन्द मुके - आपके चरण में है
मैं इस मन्दिर की हूँ पुजारिबि, मेरे प्रभुवर तुम्हीं तो हो ॥ मेरे जप तुम मेरे तप-तुम, मेरे ईश्वर तुम्हीं तो हो मैं जातकिनी, स्वाति -बिन्दु तुम, मुख चकोरिनो के तुम पन्छ ॥ मैं नलिनो हूँ, तुम
मैं भ्रमरो हूँ, तुम सूरज हो, मकरन्द ॥
शुक रोगिनि की हो तुम औषध, मुझ बीना के तुम सुखकन्द मुझ गरीबिनी के तुम घन हो, मुझ भिखारिनी के आनन्द ॥ राधेश्याम इस अवक्षा के- बल तुम्ही तो हो, पर तुम्हीं तो हो मेरे जप तुम, मेरे तप तुम, मेरे ईश्वर तुम्ही तो हो ॥
नीर बहाने लग गई फिर नयनों की कोर । अब के मानो धूप में था वर्षा का जोर ॥ उधर अश्रु-जल होगया माँ को दवा -समान । इधर - यही है तो चलो बोले कृपानिधान ॥ कुछ ही क्षण में होगई निश्चित यह सब बात । मूर्च्छा से जबतक जगें श्रीकौशल्पा मात ॥ दिया सहारा बहु ने मिला जरा आराम । बूढ़ी आँखों ने तभी - देखा अपना राम ॥ पलभर को भूल गई मैया - कैसा वन कैसा राजतिलक । बोली- ला बहू तनिक रोली, काढूँ माथे पर आज तिलक ॥ फिर कहा - कह गई मैं यह क्या । बेटा, तू तो वन जाता है। तन जाता है, मन जाता है, धन जाता है, जन जाता है ॥ क्या सचमुच मेरा नेह जोड़-जोड़ोगे नाता आज्ञा से ? क्या सचमुच वनवासी होगे, तोड़ोगे प्रीति अयोध्या से ? क्या सचमुच आन कर चुके हो चौदह वर्षों तक थाने की ? क्या सचमुच राजा ने तुमको, दी है-आज्ञा वन जाने की ? यह ही कहते हुए - फिर मौन होगई मात । हाथ जोड़कर राम ने तुरत कही यह बात- मैया, मैया क्या बतलाऊँ ? अब तो विचार ऐसा ही है। मुझको तो जैसा राजतिलक, वन जाना भी वैसा ही है ॥ मुझको भी अधिक चाकरी को है भरत आपका दास यहाँ । दुख क्या है ?
वन जा रहा एक दूसरा पुत्र है पास यहाँ ॥
यह सच है पर एक भी वह क्यों वन को जाय ? लगीं सोचने- उसी क्षण - माता उचित उपाय |
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