Special - Hanuman Homa - 16, October

Praying to Lord Hanuman grants strength, courage, protection, and spiritual guidance for a fulfilled life.

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मारवाड़ी भजन लिखित में

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मेरो मन गमहि गम रटै रे।

गम नाम जप लीजै प्राणी, कोटिक पाप कटै रे।

जनम जनम के खत जु पुराने, नामहि लेत फटै रे।

कनक-कटोरे अमृत भरियो, पीबत कौन नटै रे।

मीग कह प्रभु हरि अविनाशी, तन मन ताहि पटै रे।

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मुझे देशी वीणा भजन बहुत ही अच्छा लगता है -वागाराम H चौधरी भादरूणा

वेद पाठशालाओं और गौशालाओं का समर्थन करके आप जो प्रभाव डाल रहे हैं उसे देखकर खुशी हुई -समरजीत शिंदे

बहुत प्रेरणादायक 👏 -कन्हैया लाल कुमावत

आपकी वेबसाइट बहुत ही अनोखी और ज्ञानवर्धक है। 🌈 -श्वेता वर्मा

वेदधारा के प्रयासों के लिए दिल से धन्यवाद 💖 -Siddharth Bodke

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कठोपनिषद में यम प्रेय और श्रेय के बीच अंतर के बारे में क्या सिखाते हैं?

कठोपनिषद में, यम प्रेय (प्रिय, सुखद) और श्रेय (श्रेष्ठ, लाभकारी) के बीच के अंतर को समझाते हैं। श्रेय को चुनना कल्याण और परम लक्ष्य की ओर ले जाता है। इसके विपरीत, प्रेय को चुनना अस्थायी सुखों और लक्ष्य से दूर हो जाने का कारण बनता है। समझदार व्यक्ति प्रेय के बजाय श्रेय को चुनते हैं। यह विकल्प ज्ञान और बुद्धि की खोज से जुड़ा है, जो कठिन और शाश्वत है। दूसरी ओर, प्रेय का पीछा करना अज्ञान और भ्रांति की ओर ले जाता है, जो आसान लेकिन अस्थायी है। यम स्थायी भलाई को तत्काल संतोष के ऊपर रखने पर जोर देते हैं।

आर्यावर्त की मूल सीमाएँ

आर्यावर्त आर्य संस्कृति का केंद्र था। इसकी मूल सीमाएँ थीं - उत्तर में कुरुक्षेत्र, पूर्व में गया, दक्षिण में विरजा (जाजपुर, ओडिशा), और पश्चिम में पुष्कर।

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गणेशजी का ऐसा कौन सा स्वरूप है जिसकी साधना में शरीर की स्वच्छता मुख्य नहीं है ?

२७६-प्रभुजीकी लीला प्रभुजीकी लीला को लग वरचूं,मेरी बुध कछु नाहिं । तीन लोक त्रिभुवनके ठाकुर व्यापै घट घट मांहि ॥ किसी ने पार न पायाजी, रूप अनेक दिखायाजी ॥ १ ॥ गऊ रूप धर चली पृथ्वी, पहुंची ब्रह्मा पास । मो पर भार बध्यो अतिभारी, सुण कर भये उदास ।। शङ्कर पास बठावोजी, जीवका कष्ट मिटावोजी ॥२॥ शंकर ब्रह्मा करी जात्रा हरिसे करी पुकार । निराकार निरगुण म्हारा प्रभुजी संकट मेटणहार ।। ऐसो नाम तुम्हारोजी, पृथ्वीको भार उतारोजी ॥ ३ ॥ जोग मायाने आज्ञा दीनी, तूं तो नंद घर जाय । म्हे तो जन्मां वासुदेवके, करां विरजकी सहाय ॥ पापी मार विडारांजी, पृथ्वीको मार उतारांजी ॥४॥
उग्रसेनजी व्याव स्वायो, सुत अपनो समझाय । दान मान और दई हेवता, वासुदेव के हाथ ॥ आछा दान दिया है जी, पाछा सुफल किया है जी ॥ ५ ॥ कंसो बहन पुंचावण चाल्यो, बाणी भई अकाश ।
कासुत तो तने मारे, करे अपणो परकाश ॥ मनमें निश्चय जाणोजी, अबस्था एक न मानोजी ॥ ६ ॥ इतणी सुन कंसो झुझलायो, खड़ग लियो निकाल । जढ़ वसुदेवजी यूं उठ बोल्या, मत कर पापी पाप ॥ इसका फल ले लीजोजी, जीवण मत ना दीजोजी ॥ ७ ॥ या सोच समझकर कंसेने, पण्डित लिये बुलाय । झूठ कहोगा बुरा लगोगा, हमरो काल बताय ॥ हमरो काल बतावो जी, कहतां मत पिस्तावोजी ॥ ८ ॥ पण्डित कहन लगे भई कंसा, आठ पिछलो वालक वो वलवन्तो, वो मनमें निश्चय जाणोजी, अवस्था एक न मानोजी ॥ ६ ॥ इतनेमें नारद मुनि आये, सुण कंसा मेरी बात | आठोंमेंसे एक न राखो, आठों कर द्यो घात ॥ आठूं वैरी थारा जी, गिणती मांहि बिचाराजी ॥१०॥ नारद मुनीको को मान कर, बालक माया सात । पिछलो वालक प्राण घातमें, कदेन आवे हाथ ॥ दिन दिन - सूकन लाग्योजी, वस्त्र त्यागन लाग्योजी ॥ ११ ॥ कंसरायने बहन बहनोई, कैद किया तत्काल ।
भाणजा होय । मारेगो तोय ||
दरवाजा सब मुंद दिया है, फेर दुई हड़ताल || ताली आप मंगाई जी, चौकी बार बैठाई जी ॥१२॥ भक्त एक मथुराके वासी, वासुदेवके काज । भयो भादुवो रैन अंधेरी, प्रगटे जादूराय ।। चतर्भज रूप दिखायोजी, पिताने सख दिखलायो जी ॥१३॥ देवकी कहन लगी पतिने, सुनो पती मेरी बात । यो बालक गोकुलको वासी, वेगा द्यो पूंचाय ।। घड़ियन बार लगावोजी, जसोदा पास पूंचावोजी ॥१४॥ मंदिरसे बसुदेवजी निकले, ताला खुल गया सात । पहरवान सब सो गया, प्रभु निकले आधी रात ।। जमना जाय जगाईजी, कँवर खारीके मांही जी ।।१५।। जमना माता चली यात्रा, चरण छुवनके काज । वसुदेवजी सिरसे ऊँचा राख लिया पृथ्वी राज ॥ बेहद गाजन लाग्याजी, उलटा भागण लाग्याजी ॥१६।। कालिंदीसे करुणा करके, कहन लगे बसुदेव । हमतो आये शरण तुमारी, पूरण करदो सेव ।। प्रभुजी का चरण पखालोजी, जमना नीर घटाल्योजी ॥१७॥ जमुना चरण लाग रही है, मारग दियो वताय । यो मारग तो भूलो मतना सीधो गोकुल जाय ॥ धन धन भाग हमाराजी, प्रगटा पुत्र तुम्हाराजी ॥१८॥ मथुरासे चल गोकुल आये, गये जसोदा पास । भात जसोदा अति सुख माने, मनमें करे मिलाप ॥

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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