कारागार के अंदर भगवान कृष्ण के जन्म के पीछे की घटनाओं के बारे में जानें।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कारागार के अन्दर क्यों हुआ?
इसके पीछे की घटनाओं के क्रम को जरा देखते हैं।
उससे पहले -
भगवान श्रीहरि ने यदुकुल में अवतार क्यों लिया?
श्रीमद्देवीभागवत के अनुसाए इसके दो कारण हैं -
१ - महर्षि भृगु का श्राप।
२ - देवी योगमाया की इच्छा।
इन दोनों में प्रबल योगमाया की इच्छा ही है।
सभी प्रकार के लोग देवी की पूजा करते हैं - सुख या मोक्ष प्राप्त करने के लिए।
देवी महामाया की पूजा असाधारण है क्योंकि इसमें थोडी सी भक्ति की ही आवश्यकता होती है।
बदले में, माता आपको सब कुछ दे देती हैं।
जब आप किसी समस्या में हो, डरे हुए या निराशा महसूस कर रहे हो, तो बस एक बार पुकारें - माँ, मुझे बचा लो।
बच्चे की सुरक्षा माँ की जिम्मेदारी है।
मां शब्द सुनने पर ही मां आपको सुरक्षा भी देगी, ऐश्वर्य भी दे देगी।
तो बाकी का क्या? मुझे बचा लो - इसका क्या?
माता आपकी ऋणी बन जाएगी।
सुनिश्चित रखेगी कि भविष्य में भी आपको कोई परेशानी न आयें।
पर देवी के बारे में एक बात जान लेना जरूरी है।
बन्धन में डालनेवाली भी देवी हैं और उद्धार करनेवाली भी देवी हैं।
जिसने जन्म लिया है उसे मरना ही है।
मरे हुए को फिर से जन्म लेना है।
यह प्रकृति का नियम है।
ब्रह्मा सहित सब की एक सीमित आयु होती है।
अगर विधि ने लिखकर रखा है कि किसी के हाथों किसी की मृत्यु होगी तो वह होगी ही होगी।
जन्म, मरण, बुढापा, रोग, सुख, दुख - जिसके लिए जो लिखा है, वह उसे भोगना ही पडेगा।
सूर्यदेव को देखिए, समस्त जगत को जलाने की शक्ति है उनमें, लेकिन उन्हें राहु पकड लेता है।
सबको अपनी चांदनी से सुख देनेवाले चंद्रदेव स्वयं कलंकी और क्षयरोगी हैं।
लेकिन भगवती की बात ही कुछ अलग है।
उनकी इच्छा से ही भगवान अवतार लेते हैं।
माता ही भगवान से लीलाएं कराती हैं।
यमुना के तट पर एक बडा वन था, मधुवन।
वहां लवणासुर नामक एक महाप्रतापी असुर रहता था।
वर प्राप्ति से उसका बडा घमंड हो गया था और वह सबको परेशान करता था।
श्रीराम जी का छोटा भाई शत्रुघ्न ने उसे मार डाला।
मधुवन के स्थान पर शत्रुघ्न ने वहीं मथुरा नामक सुंदर नगरी बसायी।
शत्रुघ्न के दो पुत्र मथुरा के शासक बन गये।
काल के अनुसार सूर्यवंशी चले गये और यादव कुल मथुरा के शासक बन गये।
जब उग्रसेन मथुरा के राजा बने, उनके मंत्री थे शूर॒सेन।
शूरसेन के पुत्र थे वसुदेव जी।
वसुदेव वैश्यों की वृत्ति करते थे।
उग्रसेन के भाई थे देवक।
उग्रसेन का पुत्र था कंस।
देवकी देवक की पुत्री थी।
देवक ने अपनी पुत्री का विवाह वसुदेव के साथ कराया।
देवकी के विदा होते समय एक आकाशवाणी सुनायी दी।
“कंस, इस देवकी का आठवां पुत्र तुम्हें मार डालेगा।”
कंस ने सोचा - अगर मैं देवकी को अभी इसी वक्त मार डालूंगा तो मैं मृत्यु से बच जाउंगा।
लेकिन देवक जी मेरे पिता के समान हैं।
देवकी मेरी बहन जैसी है।
उसे कैसे मारूं?
लेकिन बचना है तो मारना तो पडेगा।
बाद में कुछ प्रायश्चित्त करके पाप को भी धो देंगे।
कंस ने अपना तलवार निकाला और देवकी को बाल से पकड लिया।
जनता के बीच हाहाकार मचने लगा।
केवल एक आकाशवाणी के आधार पर कंस ऐसे क्यों कर सकता है?
शायद कोई शत्रु माया से आकाश में छिप कर ऐसे कर रहा हो।
कंस पीछे नहीं हट रहा था।
उस समय वसुदेव जी कंस को बोले, “देखो, देवकी के जितने बच्चे होंगे उन्हें मैं तुम्हें सौंप दूंगा, यह मेरा वादा है।”
कंस मान गया।
इस प्रकार देवकी कंस से बचकर वसुदेव जी के साथ रहने लगी।
दस महीनों बाद देवकी ने एक पुत्र को जन्म दिया।
वसुदेव जी उस बच्चे को लेकर कंस के पास जाने लगे और उन्होंने देवकी से कहा कि यह विधि का विधान है, इससे कोई बच नही सकता।
देवकी बोली, “अगर सब कुछ विधि का विधान है तो फिर धार्मिक अनुष्ठानों से क्या फायदा? प्रायश्चित्तों से क्या फायदा? ऋषि जनों के आप्तवाक्यों से क्या फायदा? हमें कुछ न कुछ उपाय सोचना चाहिए।”
उद्यम कर सकते हैं, पर फल मिलना भगवान की कृपा पर आश्रित है।
हर प्राणि के पास अनेक जन्मों से संचित कर्म रहता है।
इनमें से कुछ कर्म वर्तमान जन्म में अपने फल देने के लिए तैयार रहते हैं, इन्हें कहते हैं प्रारब्ध कर्म।
मृत्यु के बाद कर्मानुसार मानव स्वर्ग जैसे लोकों में सुख को पाता है या नरकों में यातनाओं को।
इसके बाद पुनर्जन्म लेकर वह फिर से भूमि पर चला आता है।
जितने पहले के शुभ और अशुभ कर्म हैं, शरीर से भोगने से ही वे समाप्त होते हैं।
जो कर्म वर्तमान जन्म में फल देना शुरू नहीं किया हो, उसे प्रायश्चित्त द्वारा नष्ट किया जा सकता है।
पर, जिसका फल आना शुरू हो गया है, वह किसी प्रकार रुकता नहीं है।
उसे भोगना ही पडेगा।
मैं ने कंस को वचन दिया है।
अगर मैं उसका पालन नहीं करता तो मैं झूठा कहलाऊंगा।
सर्वदा सच की रक्षा करनी चाहिए।
इसी में कल्याण है।
जगत सत्य के आधार पर ही स्थित है।
अगर हर कोई झूठ बोलता है, विश्वास तोडता है, चोरी करता है तो इस जगत का क्या होगा?
ऐसा कहकर वसुदेव जी ने कंस के पास जाकर बच्चे को सौंप दिया।
कंस प्रसन्न हो गया और बोला, “तुम बडे अच्छे भले हो, इसलिए अपने वचन का पालन किया।”
“यह बालक मेरी मृत्यु नहीं है।”
“इसे घर ले जाओ।”
“देवकी के आठवें पुत्र को मेरे पास ला दो।”
उस अमय नारद जी वहां चले आये।
नारद जी ने कहा, “कंस यह तुम क्या कर रहे हो? आकाशवाणी का तुमने गलत अर्थ निकाल लिया है।”
“इस बच्चे का जन्म पहले जरूर हुआ होगा, लेकिन अंत से पीछे की तरफ गिना जाएं तो यह आठवां भी हो सकता है।”
“संख्यानां वामतो गतिः इस प्रमाण के अनुसार किसी भी शब्द संबन्धित अंतिम अक्षर उसके संख्या रूप में सबसे पहले आता है, यह तो तुम्हें पता ही होगा।”
“तुम्हारे प्राण की बात है, उपेक्षा नहीं करना चाहिए।”
इस बात को सुनकर कंस ने उस बच्चे को पत्थर पर पटककर मार दिया।
अब वह जरा भी जोखिम नहीं उठाना चाहता था।
इसलिए वसुदेव जी और देवकी जी को कारागर में बंद कर दिया।
यही है भगवान श्रीकृष्ण के कारागार में जन्म होने के पीछे का रहस्य।
Astrology
Atharva Sheersha
Bhagavad Gita
Bhagavatam
Bharat Matha
Devi
Devi Mahatmyam
Ganapathy
Glory of Venkatesha
Hanuman
Kathopanishad
Mahabharatam
Mantra Shastra
Mystique
Practical Wisdom
Purana Stories
Radhe Radhe
Ramayana
Rare Topics
Rituals
Rudram Explained
Sages and Saints
Shiva
Spiritual books
Sri Suktam
Story of Sri Yantra
Temples
Vedas
Vishnu Sahasranama
Yoga Vasishta