गणेशजी का आधा नर आधा गज रूप का तत्व क्या है ?
'तत् त्वं असि' – यह वाक्य छान्दोग्य उपनिषद के अन्तर्गत है।
'तत्' – मतलब 'वह' - परमात्मा।
'त्वं' – मतलब 'तुम' – जीवात्मा।
तुम जीवात्मा ही हो परमात्मा। परमात्मा तुमसे भिन्न नहीं है।
यह एक महान तत्व है; इस विश्व में भिन्न-भिन्न नाम और रूप वाले जितनी भी वस्तुएँ और जितने भी प्राणी हैं – ये सब परमात्मा ही हैं।
ये जो भिन्न-भिन्न जीवात्माएँ दिखाई देती हैं, ये सब परमात्मा के ही रूपांतर हैं, रूपभेद हैं – जैसे एक ही मिट्टी से अलग-अलग मूर्तियाँ बनी हों।
अगर तुम सोचते हो कि परमात्मा या ईश्वर कहीं और, सिर्फ देवलोक में या स्वर्गलोक में बैठे हैं, तो ऐसा नहीं है।
जो परमात्मा देवलोक या स्वर्गलोक में बैठे हैं, वही परमात्मा तुम्हारे अन्दर भी हैं। वह परमात्मा तुमसे अभिन्न है, वह परमात्मा तुम ही हो।
तत् त्वं असि।
'त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि' - इस तत्व का प्रत्यक्ष रूप आप ही हैं, ऐसा गणेशजी से कहा गया है।
इस महान तत्व का मूर्त रूप हैं – श्री गणेश।
गणेशजी का रूप जब देखते हैं, तो यही तत्व 'तत्वमसि' – यही तत्व मन में आता है।
परमात्मा और जीवात्मा भिन्न-भिन्न नहीं हैं – वे एक ही हैं।
गणेशजी के रूप का इस तत्व से क्या संबंध है?
गणेशजी का रूप है आधा मनुष्य और आधा गज, यानी हाथी।
'तत्वमसि' में 'तत्' का अर्थ है परमात्मा, और 'त्वं' का अर्थ है तुम – जीवात्मा।
आधा नराकार जीवात्मा का प्रतीक है, और आधा गजाकार परमात्मा का प्रतीक।
गज – परमात्मा को कैसे द्योतित करता है?
गज शब्द में दो अक्षर हैं – गकार और जकार।
'समाधिना योगिनो यत्र गच्छन्तीति गः' – 'गच्छन्ति गः' गकार।
समाधि द्वारा योगी जन जहाँ जाते हैं, जिसे पाते हैं, वह है 'गः' गकार।
'यस्माज्जगज्जायत इति जः' – 'जायते जः' जकार।
जिस तथ्य से जगत की उत्पत्ति होती है, वह है 'जः' जकार।
जहाँ योगी लोग जाते हैं – गः; जिससे विश्व का सृजन होता है – जः।
'गः जः' – गजः - गजः मतलब परमात्मा।
गौर से समझो – गज शब्द में जो गकार और जकार हैं, वे परमात्मा को सूचित करते हैं – जिसमें योगी जन समाधि के द्वारा विलीन हो जाते हैं और जिससे समस्त जगत की सृष्टि भी होती है।
जब भी हाथी को देखोगे या गज शब्द को सुनोगे, मन में परमात्म तत्व की याद आनी चाहिए।
इसीलिए गज की पूजा की जाती है। जैसे गोपूजा होती है, वैसे ही गजपूजा भी होती है।
गणेशजी के शरीर का गजवाला हिस्सा परमात्मा का प्रतीक है, और उनके शरीर का मनुष्य वाला हिस्सा जीवात्मा का प्रतीक है।
जीवात्मा का अर्थ है – जो भी पशु, पक्षी, प्राणी, पर्वत, समन्दर, धातु, ग्रह, नक्षत्र, बादल सब कुछ – जो भी दिखाई देता है – सगुण, साकार।
परमात्मा का अर्थ है वह निर्गुण तत्व, जिससे यह सब उत्पन्न होता है और प्रलय के समय जिसमें यह सब विलीन हो जाता है।
आधा परमात्मा – और आधा जीवात्मा, दोनों एक ही जगह पर, एक-दूसरे से अभिन्न।
इस रूप को स्वीकार करके भगवान श्री गणेश हमें बता रहे हैं कि परमात्मा और जीवात्मा एक-दूसरे से अभिन्न हैं।
परमात्मा ही जीवात्मा है, और जीवात्मा ही परमात्मा है।
निर्गुण और सगुण एक ही हैं।
इस तत्व को हमें दिखाने और सिखाने के लिए मंगलमूर्ति करुणामय श्री गणेशजी ने एक लीला के माध्यम से अपने आपको यह रूप दिया – आधा गज का और आधा मनुष्य का।