जब लङ्काके युद्ध में मेघनाद ने नागपाश में श्रीराम को बाँध लिया, तब नारदजी ने पक्षिराज गरुड़ को वहाँ भेजा।
गरुड़जी ने नाग को भक्षण तो कर लिया, किंतु उन्हे सन्देह हो गया जिसे एक राक्षस बाँध ले, वे सर्वसमर्थ सर्वेश्वर कैसे हो सकते हे ।
अपने सन्देह को दूर करने के लिये वे कई स्थानों पर गये ।
अन्त में शङ्करजी ने उन्हें काकभुशुण्डिजी के आश्रम पर भेजा ।
उस आश्रमका प्रभाव ही ऐसा था कि वहाँ प्रवेश करते ही गरुडका मोह अपन आप दूर हो गया ।
गरुड़ ने वहां भुशुण्डि जी से पूरा रामचरित सुना ।
गरुड़जी के पूछने पर काकभुशुण्डि जी ने बताया कि पूर्व के किसी कल्प में मेरा जन्म अयोध्या में हुआ था ।
मैं जाति से शूद्र था।
जब देश में अकाल पड़ गया, तब जन्मभूमि छोड़कर मैं उज्जयिनी पहुँचा ।
वहाँ एक त्यागी, धर्मात्मा, भगवद्भक्त ब्राह्मण से मैने शिवमन्त्र की दीक्षा ली ।
उस समय मेरे मन में बड़ा भेदभाव था।
मैं शङ्करजी का भक्त होने पर भी भगवान् विष्णु तथा रामकृष्ण से द्वेष करता था।
श्रीनारायण की मैं निन्दा करता था ।
मेरे गुरुदेव सच्चे संत थे ।
मेरी इस द्वेपबुद्धि से उन्हें खेद होता था ।
मेरे कल्याण के लिये वे बार-बार समझाते थे - भगवान् शङ्कर और भगवान् विष्णु परस्पर अभिन्न है।
शङ्कर जी तो श्रीगम नाम का जप करते रहते हैं।
तुम द्वेष बुद्धि छोड़ दो ।
हरि और हर में भेद मानना तथा दोनों में से किसी भी एक की निन्दा करना बडा भारी अपराध है ।
इससे पतन होता है ।
पर मैं अहङ्कार के कारण गुरु की बात पर व्यान नहीं देता था ।
मैं गर्व में चूर होकर गुरुदेव की उपेक्षा करने लगा ।
एक दिन मैं भगवान् शङ्करके मन्दिर में बैठा शिव मन्त्र का जप कर रहा था।
उसी समय मेरे गुरु वहाँ आये, पर मैं ने न तो उन्हें प्रणाम किया और न उठकर खड़ा ही हुआ।
संत स्वभाव ब्राह्मण को तो कुछ भी बुरा नहीं लगा; किंतु भगवान् शंकर यह अपराध नहीं देख सके ।
उसी समय मन्दिर में आकाशवाणी ने शूद्रको शाप दिया- तुम्हें एक हजार बार कीट-पतंग आदि की योनियों में जन्म लेना पड़ेगा ।
यह आकाशवाणी सुनकर दयालु ब्राह्मण को बड़ी व्यथा हुई।
उन्होने बड़ी ही भक्ति से शङ्करजी की स्तुति करके प्रार्थना की -नाथ, यह तो अज्ञानी है। इसे क्षमा कर दें ।
भगवान् शङ्कर ब्राह्मण के इस दयाभाव से सन्तुष्ट हो गये ।
उन्हों ने आशीर्वाद दिया – इसे जन्म मरणका कष्ट नहीं होगा ।
जो भी देह इसे मिलेगी, उसे यह बिना कष्ट के शीघ्र ही छोड़ देगा ।
मेरी कृपा से इसे ये सब बातें स्मरण रहेगी ।
अन्तिम जन्म में यह ब्राह्मण होगा ।
उस समय श्रीराम में इसका अनुराग होगा और इसे अव्याहत गति भी प्राप्त होगी ।
शाप के अनुसार अनेक योनियों में भटकने के बाद मुझे ब्राह्मण गरीर मिला।
माता पिता बचपन में ही परलोक चले गये थे।
शङ्कर जी की कृपामे अव्याहत गति थी।
अब एक ही इच्छा मन में थी कि किसी भी प्रकार सर्वेश्वर सर्वाधार श्रीराम के दर्शन हो ।
ऋषि-मुनियों के आश्रमों में घूमने लगा | सभी लोग निर्गुण, निराकार, सर्वव्यापी ब्रह्म का मुझे उपदेश करते थे, पर मेरा हृदय तो त्रिभुवनसुन्दर साकार ब्रह्मके दर्शन को छटपटा रहा था।
घूमता हुआ मैं महर्षि लोमश के पास पहुँचा ।
महर्षि ने भी मुझ विरक्त ब्राह्मणबालक को परम अधिकारी समझकर ब्रह्मज्ञान का उपदेश देना प्रारम्भ किया ।
महर्षि निर्गुणतत्त्व का प्रतिपादन करने लगे तो मैं उसका खण्डन करके सगुणका समर्थन करने लगा ।
बार-बार लोमश जी निर्गुण ब्रह्म को समझाना चाहते और प्रत्येक बार मै उसका खण्डन करके सगुण की प्राप्ति का उपाय पूछता ।
अन्त में महर्षि को क्रोध आ गया। उन्होने शाप दिया - दुष्ट! तुझे अपने पक्ष पर बडा दुराग्रह है, अतः तू पक्षियों में अधम कौआ हो जा ।
तुरंत मैं काकदेहधारी हो गया, किंतु इसका मुझे कोई खेद नहीं हुआ ।
ऋषि को प्रणाम करके मैं उड़कर जाने लगा ।
मुझ जैसे क्षमाशील, नम्रको शाप देनेका ऋषि के मन में पश्चात्ताप हुआ ।
उन्होंने स्नेहपूर्वक पास बुलाकर मुझको राम-मन्त्र दिया और श्रीराम के बालरूपका ध्यान बताया तथा आशीर्वाद दिया - तुम्हारे हृदय में श्रीराम की अविचल भक्ति निवास करे।
मेरे आशीर्वाद से तुम अब इच्छानुसार रूप धारण कर सकोगे और मृत्यु भी तुम्हारी इच्छा के वश रहेगी ।
तुम में ज्ञान और वैराग्य पूर्णरूप से रहेंगे ।
तुम जिस आश्रम में रहोगे, वहाँ एक योजन तक अविद्याका प्रभाव नहीं रहेगा ।
गुरु- आज्ञा लेकर मैं नीलाचल पर चला आया ।
जब कभी रामावतार होता है, तब मैं श्रीराम की पाँच वर्ष की आयु तक उनकी बाललीलाओं का दर्शन करता हुआ अयोध्या में रहता हूँ ।
भगवन्नामका जप, ध्यान, मानसिक पूजा और दिव्य राजहंसो को भगवान की कथा सुनाना, यही मेरा नित्य का कर्म है ।
स्वयं भगवान् शङ्कर राजहंस बनकर मेरे आश्रम में रामकथा सुननेके लिये निवास कर चुके हैं ।
गरुड़जी को श्रीकाकजी ने श्रीराम की भक्ति का जो उपदेश किया, वह श्रीरामचरितमानस के उत्तरकाण्ड में देखने योग्य है ।
Please wait while the audio list loads..
Ganapathy
Shiva
Hanuman
Devi
Vishnu Sahasranama
Mahabharatam
Practical Wisdom
Yoga Vasishta
Vedas
Rituals
Rare Topics
Devi Mahatmyam
Glory of Venkatesha
Shani Mahatmya
Story of Sri Yantra
Rudram Explained
Atharva Sheersha
Sri Suktam
Kathopanishad
Ramayana
Mystique
Mantra Shastra
Bharat Matha
Bhagavatam
Astrology
Temples
Spiritual books
Purana Stories
Festivals
Sages and Saints