बिकानेर शहर से ३२ किलोमीटर दक्षिण में देशनोक पर करणी माता का मंदिर है। करणी माता मनुष्य देह में महामाया की अवतार है।
६०० वर्ष पूर्व जोधपुर राज्य के सुआप नामक गांव में मेहोजी नामक एक चारण रहते थे। वे सात्विक स्वभाव वाले और भगवती के उपासक थे। उनकी छः पुत्रियां थी लेकिन कोई पुत्र नहीं था।
पुत्र प्राप्ति के लिए वे माता भगवती से प्रार्थना किया करते थे और प्रतिवर्ष हिंगलाज जाकर दर्शन किया करते थे। कहते हैं, भगवती ने उन्हें दर्शन दिया और वर मांगने को कहा। मेहोजी न भगवती को प्रणाम कर प्रार्थना की कि ’मैं चाहता हूं कि मेरा नाम आगे चले ।' देवी तथास्तु कहकर अन्तर्धान हो गयी।
उसके बाद उनकी धर्मपत्नी देवलदेवी गर्भवती हो गई। पति-पत्नी को आशा थी कि देवी की कृपा से अवश्य ही इस बार पुत्र प्राप्त होगा। किन्तु माता कैसे नाम चलाना चाहती थी यह किसी को नहीं पता था। आश्विन शुक्ल ७ सन १४४४ को एक बालिका का जन्म हुआ और उसने जन्म होते ही अपनी माता को चतुर्भुजी देवी के रूप में दर्शन दिया ।
बालिका के जन्म के समय पर मेहोजी की बहिन भी वहीं वर्तमान थी। उसने बालिका को देखकर तुरन्त अपने भाई के पास जाकर हाथ की उंगली टेढी कर कहा - ’फिर से पत्थर आ पडा।’ यह सुनकर मेहोजी उदास हो गये और बहिन की उंगली जो उसने टेढी की थी, वह वैसी ही रह गयी। उस समय लोगों ने समझा, उंगली में वात रोग आ गया है।
बालिका के जन्म के बाद से मेहोजी के दिन बदल गये। उनका घर धन-धान्य और पशुओं से भर गया मानो उनके घर साक्षात् लक्ष्मी जी पधारी हो। उन्होंने नवजात बालिका का नाम रिधुबाई रखा और उनका लालन-पालन बडे प्रेम के साथ करने लगे । रिधुबाई बहुत सुंदर थी और उनके चेहरे पर एक अपूर्व तेज दिखाई पड़ता था ।
जब रिधुबाई छः-सात वर्ष की थी, उनकी बुआ आयी ओर उनके लिए कुछ गहने और कपड़े भी लायी। वह अपनी भतीजी को प्यार से देखती थी और उन्हें खिलाने-पिलाने आदि का ख्याल रखती थी। एक दिन वह रिधुबाई को नहलाकर उनके सिर के बाल गूथ रही थी, उस समय उनकी टेढ़ी उंगली बार-बार बालिका के सिर में लगती थी। उन्होने पूछा- बुआ मेरे सिर में बार-बार टक्क - टक्क क्या लग रहा है ? बुआ ने अपनी उंगली की सारी पुरानी कहानी सुना दी। इस पर उन्होंने उंगली दिखाने को कहा और बुआ के दिखाते ही उंगली को अपने कोमल कर स्पर्श द्वारा ठीक कर दिया। यह देखकर बुआ बड़ी चकित हुई। किन्तु बालिका ने अपने दांत दिखाकर मना किया कि यह बात किसी से कहना नहीं, अन्यथा इन्ही दांतो से तुम्हे चबा डालूंगी। उनके शेरनी जैसे दांत देखकर उनकी बुआ कांप गई और उसने वचन दिया कि मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी। उसके बाद ही रिधुवाई का नाम करणी पड गया जो आज तक प्रसिद्ध है।
एक दिन करणी माता कुछ भोजन की सामग्री लेकर अपने खेत जा ही थी। रास्ते में जैसलमेर के महाराज शेखाजी अपनी सेना के साथ मिले। राजा ने उन्हें देखकर उनसे प्रार्थना की कि मैं और मेरी सेना भूख से पीडित हैं । यदि आप कुछ भोजन दे तो बड़ी कृपा होगी । यह सुनकर देवी जी ने कहा कि सेना सहित आप बैठकर भोजन कर लीजिए। उस थोड़ी-सी सामग्री से ही माता जी ने सेना सहित राजा को भरपेट भोजन करा दिया। यह देखकर राजा विस्मित रह गये । राजा को इस प्रकार देखकर देवी जी ने कहा कि आश्चर्य की कोई बात नहीं है, संकट काल में मेरा स्मरण करना, मैं अवश्य तुम्हारी सहायता करूंगी।
राजा शेखाजी वहां से चलकर युद्धक्षेत्र में पहुचे और उस युद्ध मैं उनकी सेना हारने लगी । उनके रथ का एक घोड़ा भी मारा गया। राजा को करणी माता की बात याद आई और उन्होंने तुरन्त उनका स्मरण किया। देवी जी तुरन्त सिंह के रूप में प्रकट होकर रथ में जुत गयी और उनकी कृपा से अन्त में शेखाजी को विजय प्राप्त हुआ।
एक बार करणी देवी के पिता को सर्प ने डस लिया। तब देवी ने उन्हें केवल अपने स्पर्श से अच्छा कर दिया।
विवाह योग्य होने पर देवी जी का विवाह साठीका गांव के दीपोजी के साथ सम्पन्न हुआ । विवाह के बाद देवी जी ने अपने पतिदेव को साक्षात् भगवती रूप में दर्शन दिया और बताया कि मेरे गर्भ से आपकी कोई संतान नहीं हो सकती, इसलिए आप मेरी बहिन से भी विवाह कर लीजिए। दीपोजी ने देवी जी के बहिन के साथ भी विवाह किया और उनके चार पुत्र हुए । देवी जी और दीपोजी का सम्बन्ध माँ-बेटे के समान ही रहा।
ससुराल में भी देवी जी ने कई चमत्कार दिखाये। एक दिन उनकी सास ने कहा - देखो बहू। यहां खूब सावधानी के साथ रहना । यहां बहुत सारे बिच्छू हैं । इस पर देवी जी ने कहा- यहां तो एक भी बिच्छू दिखाई नहीं दिया। उस दिन के बाद वहां एक भी बिच्छू नही देखा गया। उसी दिन देवी जी ने अपनी सास को साक्षात् दर्शन भी दिया। एक बार देवी जी गाय दुह रही थी कि उसी समय मुल्तान के पास अपनी नौका डूबती देखकर सेठ झगड़साह ने उनका स्मरण किया । तत्क्षण देवीजी ने अपने हाथ फैलाकर नौका को बचा लिया। करणी माता ने इस प्रकार अनेक लीलाएं करती हुई ससुराल में पचास वर्ष बिताया ।
एक समय साठीका गांव में लगातार कई वर्षो तक वर्षा न होने के कारण भुखमरी पड गई। पीने के लिए पानी मिलना भी कठिन हो गया । गायों को पानी के लिए तरसते हुए देखकर करणी माता से रहा नहीं गया । वे गायों को लेकर निकल पडी और राठौर राजा कान्होजी की राजधानी जागलू पहुंची । वहां एक कुआं जल से भरा हुआ मिला। देवीजी ने राजकर्मचारियों से गायों को पानी पिलाने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने राजाज्ञा के बिना ऐसा करने से मना कर दिया। राजा से पूछने पर उन्होंने भी मना कर दिया। इसी बीच, राजा के कनिष्ठ भ्राता रणमलजी को इस बात की जानकारी हुई। उन्होंने देवी जी का अभिवादन किया और उनकी आज्ञा की प्रार्थना की। देवी जी ने उन्हें गायों को पानी पिलाने का आदेश दिया। रणमलजी ने तुरंत आज्ञा दी और गायों ने पानी पीकर अपनी प्यास बुझाई। कहते हैं कि गायों के पानी पीने के बाद भी कुएं में पानी का स्तर नहीं घटा।
बीकानेर का करणी माता मंदिर अपने चूहों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर परिसर में 25,000 से अधिक चूहे रहते हैं, जो दीवारों और फर्शों की दरारों से बाहर निकलते हैं और अक्सर आगंतुकों और भक्तों के पैरों के ऊपर से गुजरते हैं। इन चूहों को पवित्र माना जाता है और उन्हें प्रसाद के रूप में भोजन दिया जाता है। भक्तों का मानना है कि इन चूहों को चखकर उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं। सफेद चूहों को विशेष रूप से पवित्र माना जाता है और उन्हें करणी माता और उनके पुत्रों का अवतार माना जाता है। आगंतुक मिठाइयों की पेशकश करके सफेद चूहों को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। किसी भी चूहे को चोट पहुंचाना या मारना मंदिर में एक गंभीर अपराध है। इस अपराध को अंजाम देने वाले लोगों को प्रायश्चित के रूप में सोने से बना चूहा रखना होगा।
लंका के रहस्यों के बारे में विभीषण के गहन ज्ञान ने राम जी की रणनीतिक चालों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने रावण पर उनकी विजय में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कुछ उदाहरण हैं - रावण की सेना और उसके सेनापतियों की ताकत और कमजोरियों के बारे में विस्तृत जानकारी, रावण के महल और किलेबंदी के बारे में विवरण, और रावण की अमरता का रहस्य। यह जटिल चुनौतियों से निपटने के दौरान अंदरूनी जानकारी रखने के महत्व को दर्शाता है। आपके व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में, किसी स्थिति, संगठन या समस्या के बारे में विस्तृत, अंदरूनी जानकारी इकट्ठा करने से आपकी रणनीतिक योजना और निर्णय लेने में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
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