शक्तिशाली आई माता के इतिहास में गहराई से गोता लगाएँ, उनके प्राकट्य से लेकर उनकी आधुनिक समय की प्रासंगिकता तक।
आई माता सीरवी समाज की कुलदेवी है।
आई माता मंदिर, बिलाडा, जोधपुर, राजस्थान। यहां के ज्योत से काजल जैसे केसर निकलता है।
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श्री आई माता का संक्षिप्त इतिहास
संवत् 1250 के पास-पास ब्रह्मा की खेड़ नामक राज्य पर गोहिलों का शासन था। डाबी जाति का सांवतसिंह था
गोहिल राजा का मंत्री किसी कारण राजा से अनबन हो जाने से मंत्री सांवतसिंह पासवानजी से मिलकर
खेड़ पर हमला करा आसमानजी का शासन छोड मांडू (मांडवगड) से दिया। गोहिलों की हार हुई व राव हो गया। तब डाबी सांवतसिंह खेड़ 20 मील दूर अम्बापुर नामक गांव में आकर बस गया। उसी डाबी जाति के सांवतसिंह के वंश में अनुमानतः संवत् 1440 के आस-पास बीका का जन्म हुआ। बीका डाबी बचपन से ही अम्बा माता का भक्त था। धम्बापुर में मां अम्बा का मंदिर था। उसी मंदिर में जाकर बीका हमेशा अम्बा माता की भक्ति किया करता था। बीकाजी के ब्याह के कई वर्ष बीतने के बाद भी उनके कोई सन्तान नहीं हुई तो वे हमेशा मां चम्बा से सन्तान प्राप्ति की आराधना किया करता था। बीकाजी की घटूट यास्ता व भक्ति देख एक रात मां अम्बा ने स्वपन में दर्शन देकर बीका को वरदान दिया कि मैं तेरी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ तेरी मनोकामना पूर्ण होगी, मैं तेरे घर कन्या रूप में पाऊंगी। यह वरदान दे मां अम्बा लोप हुई। सुबह उठ कर बीकाजी ने अपनी पत्नी को स्वपन की बात बताई । मां अम्बा की कृपा देख दोनों पति पत्नि बहुत खुश हुवे । संवत् 1472 के पास पास मां अम्बा के दिये वरदान से बीका के घर एक कन्या का जन्म हुआ। कन्या के जन्म से बीकोजी प्रति प्रसन्न हुवे कन्या का नाम जोजी रखा। जोजो तो माँ सम्बा का ही रूप थी। अतः बाल्य काल से ही भक्ति में लीन रहती थी।
जब जीजी की अवस्था बारह बरस की हुई उस समय उसका रूप इतना मोहक था कि लोग कहते बीका के घर रत्न घाया है। ऐसा रूप हमने आज तक न तो कहीं देखा और न ही कहीं सुना। जीजी के रूप की खबर ग्रास पास फैलने लगी। उन्ही दिनों मांडू (मांडवगढ) राज्य का शासक महमूद शाह था। महमूद शाह अति दुष्ट व हिन्दुओं पर अत्याचार किया करता था। हिन्दुओं की बहू बेटियों को जबरदस्ती अपने महलों में डाल देता था। जब बादशाह ने जीजी के रूप की खबर सुनी तो उसकी लालसा जीजी को प्राप्त करने बढी उसी समय 'अपनी सांत नोकरानियों को अम्बापुर जीजी को देखने हेतु भेजी । नोकरानियां अम्बापुर पहुंच कर जीजी का तेज रूप देख बहुत आश्चर्य चकित हुई तुरन्त वापस मांडू (मांडवगड) आकर बादशाह से की कि आपके महलों में जितनी हरमें हैं, उनमें से शायद ही कोई ऐसी हो जो जीजी के रूप का मुकाबला कर सके। ऐसी नारी हमने बाज तक नहीं देखी। नोकरानियों के मुह से जीजी की इतनी तारीफ सुन बादशाह की लालसा अति प्रबल हुई। तुरन्त अपने मन्त्री को बुलाकर प्राज्ञा दी कि शिघ्रता शिघ्र जैसे जैसे अम्वापुर के बीका डावी की पुत्री जीजी को महलों में डाली जाय मंत्री बुद्धिमान था। उसने बादशाह से निवेदन किया कि बीका जाति का क्षत्री है। जीते जी अपनी पुत्री को कैसे लाने देगा। आप बीका को बुला कर जीजी के साथ विवाह करने की बात करो। यदि वीका मान जाय तब तो ठीक अन्यथा धोर सोचा जायेगा। बादशाह ने मंत्री की बात मानकर एक घुड़सवार को थम्बापुर बीका को बुलाने भेजा। घुड़सवार तुरन्त धम्यापुर जाकर बीका को ला बादशाह के सामने उपस्थित किया। बादशाह ने बीका से जीजी के साथ विवाह करने की बात कही। बीकाजी बात सुन कर शोकाकुल हवे और बादशाह से कहा कि मैं अपनी पत्नि व पुत्री को पूछ कर जवाब दूंगा। क्योंकि यह काम पुत्री पर ही निर्भर है यह सुन बादशाह ने बोका से कहा तुरन्त जाकर अपनी पुत्री से पूछ कर मुझे जबाब दो । बीकाजी बादशाह से विदा ले शोक सिन्धु में डूबे अपने घर पहुंचे चेहरा उतरा हुवा देख उनकी पत्नि ने पूछा कि आपकी यह दशा क्यों कर है। इस पर बीकाजी ने अपनी पत्नि को सारा हाल सुनाया और कहा कि मेरे जीते जी यह बात असम्भव है। मैं प्रपना सिर काट कर मां अम्बा के चरणों में अर्पित कर दूँ और तू मेरे पीछे सती हो जाना।
माता पिता की घास में हो रही बातें जब जीजी ने सुनी तो अपने पिता से कहा कि आप मन में किसी प्रकार की चिन्ता न रखें। धाप जाकर उस दुष्ट बादशाह से कह दें कि जीजी आप निडर ब्याहने को तैयार है। तू' विवाह करने बाजा । होकर जाइये। साथ में यह भी बता देना कि विवाह हिन्दू रीति से होगा व विवाह के पहले का भोजन ( कंवारा भात) यहां आकर करना होगा। साथ में किसी प्रकार की साथ सामग्री नहीं लायें। आप विवाह का दिन निश्चित कर था जायें। बीकाजी ने जीजी की बात अंगिकार कर बादशाह के पास जाकर विवाह की बात कही व साथ में जोजी द्वारा बताई शर्तें भी बतादी। यह सुन बादशाह ने कहा तू गरीब आदमी है। मेरी लाखों की फोज हेतु भोजन का सामान कहाँ से लायेगा। जिस वस्तु की आवश्यकता हो वो यहां से ले जा । बीकाजी साफ इन्कार कर विवाह की तिथि मुकर्र कर वापिस अपने घर आ गये।
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