अरुण, गरुड और नागों की उत्पत्ति

वासुकि की बहन जरत्कारु और मुनि जरत्कारु  इनका विवाह संपन्न हुआ।

इसके दो उद्देश्य थ॥

पहला - इनकी पुत्रोत्पत्ति द्वारा मुनि जरत्कारु के पुर्वजों का उद्धार होगा।

दूसरा - इनका पुत्र आस्तीक अपनी मां के कुल को सर्प यज्ञ में उन्मूलन होने से बचाएगा।

इसलिए आस्तीक को मातृपितृभयापहः कहते हैं।

अपने माता और पिता दोनों तरफ के भय को मिटानेवाले।

आस्तिक बहुत ही अच्छा पुत्र निकला, आदर्श पुत्र, आदर्श मानव भी।

वेदों का और शास्त्रों का अध्ययन करके आस्तिक ने अपने आप को ऋषि ऋण से मुक्त किया।

यज्ञादि देवता पूजन करके अपने आप को देव ऋण से मुक्त किया।

सही समय पर विवाह करके अपने वंश को आगे बढाकर पितृऋण से भी अपने आपको मुक्त किया।

अपने ही कर्म के अनुसार और सत्पुत्र के गुणों के कारण भी जरत्कारु को स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

शौनक महर्षि सौति से कहते हैं:

हमें ये सब विस्तार से सुनाइए।

कद्रू और विनता दक्ष प्रजापति की बेटियां थी।

इनके पति थे कश्यप।

दक्ष की तेरह पुत्रियों का विवाह कश्यप के साथ ही हुआ था।

पर इस कहानी के केन्द्र में कद्रू और विनता हैं।

कश्यप भी दक्ष जैसे प्रजापति थे।

प्रजापति सृष्टि के प्रवर्त्तक हैं।

सृष्टि का कार्य ब्रह्मा जी प्रजापतियों को ही सौंपते हैं।

जैसे देव, दैत्य, दानव इन सब की सृष्टि कश्यपजी ने की थी।

अदिति के साथ देव, दिति के साथ दैत्य, दनु के साथ दानव, कद्रू के साथ नाग, 

विनता के साथ गरुड और अरुण।

ये सारी दंपती के रुप में सृष्टि है।

एक दिन कश्यप जी ने कद्रू और विनता से कहा:

तुम्हें जो चाहिए मांगो।

कद्रू बोली: मुझे बहुत ही बलवान १००० नाग चाहिए पुत्रों के रूप में।

विनता बोली: मुझे दो ही पुत्र चाहिए, पर कद्रू के १००० पुत्रों से अधिक बलवान।

कश्यप जी ने उन दोनों को गर्भ का अनुग्रह दिया।

और बोले कि गर्भ को अच्छे से सम्हालना।

इन दोनों के बीच शुरू से ही मत्सर बुद्धि रही है।

आगे देखते जाइए मत्सर बुद्धि कैसी कैसी विपत्तियों को खडी कर देती है।

ज्यादा करके सब समझते हैं कि सिर्फ कद्रू को विनता के प्रति ईर्ष्या थी।

पर देखिए विनता ने क्या मांगा।

कद्रू के पुत्रों से भी ताकतवर दो पुत्र।

क्या यह मत्सर नही है ?

ईर्ष्या नही है ?

कुछ समय बाद कद्रू ने १००० अण्डे दिये और विनता ने दो।

अंडे सेने के लिए गर्म बर्तनों मे रख दिये गये।

५०० साल बीत जाने पर कद्रू के १००० पुत्र अंडों को फोडकर बाहर निकल आये।

विनता बेचैन हो गयी।

मेरे पुत्र क्यों नही बाहर आ रहे हैं?

विनता ने एक अण्डे को फोडकर देखा।

पर उसके अन्दर बच्चे के शरीर का कमर से नीचे का हिस्सा विकसित नही हुआ था, अधूरा था।

उस बच्चे ने अपनी मां को शाप दे दिया: 

तुम्हारी बहन के साथ स्पर्धा के कारण तुमने मुझे विकलांग बना दिया।

तुम्हें ५०० साल और रुकना चाहिए था।

तभी मेरा शरीर पूर्ण रूप से विकसित होता।

५०० साल तुम उस बहिन की दासी बनकर रहोगी।

मेरा भाई तुम्हें दासीपन से मुक्त कराएगा अगर तुम चुपचाप और ५०० साल प्रतीक्षा करोगी तो।

नही तो उसे भी तुम मेरे जैसे अंगहीन बना दोगी।

विनता के इस पहले पुत्र का नाम था अरुण।

वह सूर्यदेव का सारथी बन गया।

सूर्योदय से पहले आसमान के रंग को इसीलिए अरुणिमा कहते हैं क्यों कि रथ के आगे सारथी बैठता है, पहले सारथि दिखाई देता है।

पांच सौ साल तक विनता धीरज से बैठी।

अंडा फोडकर अपने आप गरुड बाहर निकल आये।

उनका आहार था सर्प, सांप।

जन्म लेते ही ही गरुड अपना आहार ढूंढकर आकाश में उड गया।

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