Pratyangira Homa for protection - 16, December

Pray for Pratyangira Devi's protection from black magic, enemies, evil eye, and negative energies by participating in this Homa.

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अथर्ववेद का गो सूक्त

अथर्ववेद का गो सूक्त

अथर्ववेद का गो सूक्त गायों की पवित्रता, उपयोगिता और दिव्यता का प्रतीक है। इसमें गायों को जीवन का आधार, समृद्धि और धर्म का स्रोत बताया गया है। गायें न केवल भौतिक सुख-समृद्धि देती हैं, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होती हैं। गो सूक्त में गायों के संरक्षण, उनके प्रति करुणा और उनके सम्मान की महत्ता को दर्शाया गया है। यह सूक्त हमें गायों की शुद्धता, उनके कल्याणकारी स्वभाव और उनके संरक्षण की प्रेरणा देता है। गायों की रक्षा करना न केवल एक सामाजिक दायित्व है, बल्कि यह धार्मिक और आध्यात्मिक कर्तव्य भी है। गो सूक्त मानव और प्रकृति के बीच संतुलन और सामंजस्य स्थापित करने का संदेश देता है।

 

आ गावो अग्मन्न् उत भद्रमक्रन्त्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे ।

प्रजावतीः पुरुरूपा इह स्युरिन्द्राय पूर्वीरुषसो दुहानाः ॥१॥

गायें हमारे पास आएं, और शुभ कदम रखें। ये गोशाला में सुखपूर्वक बैठें और हमें आनंद प्रदान करें।
ये गायें प्रजावान (संतानवती) हों और विभिन्न रूपों में यहां फलदायक बनें। ये सुबह-सुबह इंद्र के लिए बहुत सारा दूध प्रदान करें।

 

इन्द्रो यज्वने गृणते च शिक्षत उपेद्ददाति न स्वं मुषायति ।

भूयोभूयो रयिमिदस्य वर्धयन्न् अभिन्ने खिल्ये नि दधाति देवयुम् ॥२॥

इंद्र उन यजमानों को शिक्षा प्रदान करते हैं जो यज्ञ करते हैं और उनकी स्तुति करते हैं। वे उन्हें धन, सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं और अपना कुछ भी छिपाते नहीं हैं। इंद्र बार-बार उस यजमान के धन और वैभव को बढ़ाते हैं। ये यज्ञ की अखंडता बनाए रखते हुए देवताओं को समर्पित वस्तुओं का उचित स्थान पर स्थापित करते हैं।

 

न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति ।

देवांश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित्ताभिः सचते गोपतिः सह ॥३॥

ये गायें नष्ट नहीं होतीं, न ही चोर उन्हें हानि पहुंचा सकता है। कोई शत्रु या दुष्ट व्यक्ति भी उनका अपमान या नुकसान नहीं कर सकता। गायों के द्वारा मनुष्य देवताओं की पूजा करता है और उन्हें दान देता है। उन गायों के साथ गोपालक (गायों का रक्षक) सदा जुड़ा रहता है और उनका सम्मान करता है।

 

न ता अर्वा रेणुककाटोऽश्नुते न संस्कृतत्रमुप यन्ति ता अभि ।

उरुगायमभयं तस्य ता अनु गावो मर्तस्य वि चरन्ति यज्वनः ॥४॥

गायों को कोई अशुभ या क्षुद्र चीज छू नहीं सकती। ये किसी भी प्रकार के संकट या बुराई के प्रभाव से दूर रहती हैं। जो यजमान उरुगाय (विष्णु) की शरण में है, उसके लिए ये गायें निर्भय होकर विचरण करती हैं और उसकी संपत्ति का विस्तार करती हैं।

 

गावो भगो गाव इन्द्रो म इच्छाद्गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः ।

इमा या गावः स जनास इन्द्र इच्छामि हृदा मनसा चिदिन्द्रम् ॥५॥

गायें धन की स्वरूप हैं, इंद्र भी गायों से प्रिय हैं। गायें सोमरस का प्रथम भक्षण करती हैं, ये पूजनीय और सम्माननीय हैं। ये गायें और वे लोग, जो इंद्र की भक्ति करते हैं, उन्हें मैं हृदय और मन से चाहता हूं।

 

यूयं गावो मेदयथ कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम् ।

भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु ॥६॥

हे गायों! आप कृशकाय (दुर्बल) व्यक्ति को भी हृष्ट-पुष्ट बनाती हैं। आप अश्रेष्ठ (क्लांत) को भी सुंदर और आकर्षक बना देती हैं।  आप हमारा घर शुभ और समृद्ध बनाएं। आपकी मधुर वाणी हमारे लिए मंगलमय हो। आपकी महिमा और गुणों का वर्णन सभाओं में किया जाता है।

 

प्रजावतीः सूयवसे रुशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः ।

मा व स्तेन ईशत माघशंसः परि वो रुद्रस्य हेतिर्वृणक्तु ॥७॥

जो गायें प्रजावान (संतानवती) हैं, हरे-भरे चारागाहों में विचरण करती हैं, और शुद्ध जल को अच्छे स्थानों से पीती हैं। आप पर कोई चोर या बुरे इरादे वाला व्यक्ति अधिकार न करे। रुद्र के बाणों (असुरक्षा) से आपकी रक्षा हो।

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